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चारधामों की हेली सेवाएं: आस्था की उड़ान या जोखिम का सफर
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सार
2022 की एक घातक दुर्घटना के बाद उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण (UCADA) द्वारा मार्ग पर तीन निगरानी कैमरे लगाए गए और एक 'उड़ान उपयुक्तता निगरानी प्रणाली' की शुरुआत की गई।

केदारनाथ हेलिकॉप्टर हादसा।
- फोटो : पीटीआई
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विस्तार
उत्तराखंड के चारधामों में से एक केदारनाथ यात्रा में हेलीकॉप्टर सेवा तीर्थयात्रियों के लिए वरदान मानी जाती है। लेकिन दुखद यह है कि यह सेवा उन बुनियादी सुरक्षा इंतज़ामों से भी वंचित है जो भारत के किसी सामान्य हवाई अड्डे में होते हैं। यहां न कोई विमान यातायात नियंत्रण केंद्र है, न रडार प्रणाली और न ही मौसम की त्वरित निगरानी की व्यवस्था।

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पायलट केवल दृश्य संकेतों और रेडियो संपर्क के सहारे इस दुर्गम और उच्च हिमालयी क्षेत्र में उड़ान भरते हैं, जिससे हर यात्रा एक जोखिम बन जाती है। 2025 में 10 दिनों में तीन हादसे (8, 12, 17 मई) इस बात का प्रमाण हैं कि सुरक्षा प्रणाली चरमरा चुकी है। खराब हेलीपैड और अपर्याप्त मौसम निगरानी ने जोखिम को और बढ़ाया है। वर्ष 2025 में मई-जून के दौरान छह सप्ताह में पाँच गंभीर घटनाएं हुईं, जिनमें दो जानलेवा दुर्घटनाएं भी शामिल थीं।
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अधूरी घोषणाएं, अधर में लटकी योजनाएं
2022 की एक घातक दुर्घटना के बाद उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण (UCADA) द्वारा मार्ग पर तीन निगरानी कैमरे लगाए गए और एक 'उड़ान उपयुक्तता निगरानी प्रणाली' की शुरुआत की गई। लेकिन विमानन विशेषज्ञों का मानना है कि ये केवल प्रतीकात्मक उपाय हैं, जो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों से बहुत पीछे हैं।
हवाई दुर्घटना जांच ब्यूरो की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि केदारनाथ मार्ग पर मौसम का वैज्ञानिक पूर्वानुमान, उड़ान समन्वय की कोई केंद्रीय व्यवस्था या कोई वैधानिक नियंत्रण नहीं है। निजी कंपनियाँ अपने स्तर पर ही उड़ानों का प्रबंधन कर रही हैं, जिससे नियंत्रण की गंभीर कमी सामने आती है। इस बीच भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और UCADA के बीच प्रस्तावित समझौता-पत्र भी केवल फाइलों तक ही सीमित रह गया क्योंकि क्षेत्र में विमान यातायात नियंत्रण केंद्र न होने के कारण यह समझौता क्रियान्वित नहीं हो पाया।
पीड़ितों की पीड़ा: हादसे नहीं, प्रशासन की चूक
2022 की दुर्घटना में मारे गए पायलट कैप्टन अनिल सिंह की पत्नी रमनजीत सिंह का बयान बेहद मार्मिक था। उन्होंने कहा कि उनके पति बिना रडार, बिना स्थल मानचित्रण और बिना मौसम जानकारी के उड़ा रहे थे।
उनके अनुसार, "यह कोई संयोग नहीं था, हर उड़ान एक दांव पर लगी बाज़ी थी।" यह कथन इस बात को रेखांकित करता है कि यात्रियों और पायलटों की जान जोखिम में डालना केवल तकनीकी भूल नहीं, बल्कि एक बड़ी प्रशासनिक असफलता है।
एक दशक, कई हादसे: हवाई सेवाओं का काला इतिहास
चारधाम यात्रा मार्ग पर हेलीकॉप्टर हादसों की लंबी सूची रही है। नीचे बीते वर्षों की प्रमुख घटनाओं का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है:
चारधाम हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएं: एक दृष्टि
तिथि
विवरण
7 जून 2025
केस्टरल विमान सेवा का हेलीकॉप्टर गुप्तकाशी-गौरीकुंड मार्ग पर आपात लैंडिंग; पायलट घायल
12 मई 2025
बद्रीनाथ से लौटते हेलीकॉप्टर ने उखीमठ में आपात उतराव किया; दृश्यता खराब
8 मई 2025
उत्तरकाशी में दुर्घटनाग्रस्त हुआ हेलीकॉप्टर; पायलट सहित 6 की मृत्यु, 1 घायल
15 जून 2025
आर्यन विमान सेवा का हेलीकॉप्टर केदारनाथ घाटी में दुर्घटनाग्रस्त; सभी 7 यात्रियों की मृत्यु
31 अगस्त 2024
वायु सेना का परिवहन हेलीकॉप्टर हवा की दिशा बदलने से मलबा गिरा; कोई जनहानि नहीं
23 अप्रैल 2023
वित्त नियंत्रक अमित सैनी की टेल रोटर की चपेट में आने से मृत्यु
18 अक्टूबर 2022
आर्यन सेवा का हेलीकॉप्टर केदारनाथ में दुर्घटनाग्रस्त; 7 की मृत्यु
9 जून 2017
बद्रीनाथ में उड़ान भरते समय निजी हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त; फ्लाइट इंजीनियर की मृत्यु
24 जुलाई 2013
राहत सामग्री लाते समय निजी हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त; पायलट व सह-पायलट की मृत्यु
25 जून 2013
बाढ़ राहत के दौरान वायुसेना का हेलीकॉप्टर गुप्तकाशी के पास गिरा; 20 लोगों की मृत्यु
21 जून 2013
रामबाड़ा के पास प्रभातम विमान सेवा का हेलीकॉप्टर गिरा; जनहानि का विवरण अस्पष्ट
इन घटनाओं के प्रमुख कारणों में घना कोहरा, खराब मौसम, तकनीकी खामियाँ, दृश्यता की कमी और ऊँचाई वाला जटिल स्थलचिह्न शामिल हैं। कई बार एक ही निजी कंपनी एक से अधिक दुर्घटनाओं में शामिल पाई गई है, जो चिंता का विषय है।
पर्यावरण और वन्यजीवों पर संकट
उत्तराखंड सरकार की नीतियां, जो तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ाने पर केंद्रित हैं, हिमालय के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर रही हैं। हेलीकॉप्टर उड़ानें, जो सिटी बसों की तरह लगातार चल रही हैं, ध्वनि प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को बढ़ा रही हैं। विशेष रूप से केदारनाथ यात्रा में, हेलीकॉप्टर वन्यजीव विहार के ऊपर से गुजरते हैं, जिससे वन्यजीवों को गंभीर नुकसान हो रहा है।
इन उड़ानों की कंपन से ग्लेशियर अस्थिर हो रहे हैं, जिसके कारण बार-बार हिमस्खलन (अव्लांच) की घटनाएं हो रही हैं। गंगोत्री और केदारनाथ जैसे क्षेत्र, जो पहले से ही भूस्खलन और ग्लेशियर पिघलने से प्रभावित हैं, अनियंत्रित पर्यटन के दबाव में और बिगड़ रहे हैं। पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन के बिना उड़ानों की बढ़ती संख्या जैव-विविधता को खतरे में डाल रही है।
क्या अब भी किसी अगली दुर्घटना का इंतज़ार करेंगे?
हादसों की बढ़ती संख्या DGCA, उत्तराखंड सरकार, और हेलीकॉप्टर ऑपरेटरों की लापरवाही का परिणाम है। DGCA के ढीले नियम और अपर्याप्त निरीक्षण ने सिंगल-इंजन हेलीकॉप्टरों के उपयोग और खराब रखरखाव को बढ़ावा दिया। उत्तराखंड सरकार की अत्यधिक भीड़ को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों ने हेलीकॉप्टर सेवाओं पर भारी दबाव डाला है।
ऑपरेटर, मुनाफे की होड़ में, सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर रहे हैं। कंपनियों पर वीआईपी और रसूखदार लोगों का दबाव भी है, जो प्राथमिकता की मांग करते हैं, जिससे हेलीकॉप्टर इंजनों और पायलटों को विश्राम का समय नहीं मिलता। यह थकान और तकनीकी खराबी हादसों का प्रमुख कारण है।
अब समय आ गया है कि राज्य सरकार और नागरिक उड्डयन विभाग इस विषय को गंभीरता से लें। तीर्थ यात्रियों की आस्था को सुरक्षा की मजबूत आधारशिला प्रदान की जाए। केदारनाथ, सिरसी और फाटा में स्थायी विमान यातायात नियंत्रण इकाइयाँ स्थापित की जानी चाहिए।
रडार कवरेज, त्वरित मौसम सूचना केंद्र और उड़ानों का केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष बनाना नितांत आवश्यक है। पर्वतीय उड़ानों के लिए पायलटों को विशेष प्रशिक्षण मिलना चाहिए और हेलीकॉप्टरों की नियमित तकनीकी जांच अनिवार्य होनी चाहिए।
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