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‘सवाल उठे तो समझें दर्शक फिल्म से जुड़े हैं’, निर्देशक आदित्य सरपोतदार ने बताया कैसे हुई ‘थामा’ की शुरुआत

Kiran Jain किरण जैन
Updated Fri, 31 Oct 2025 07:00 AM IST
सार

Aditya Sarpotdar Exclusive Interview: ‘थामा’ के निर्देशक आदित्य सरपोतदार ने फिल्म की शुरुआत और हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स के बारे में बात की। साथ ही बताया कि कहां से आया फिल्म का आईडिया?

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Aditya Sarpotdar Exclusive Director Reveals Where Is The Idea Of Thamma Comes He Talks About Stree Universe
आदित्य सरपोतदार - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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मराठी सिनेमा से अपने करिअर की शुरुआत करने वाले निर्देशक आदित्य सरपोतदार की हालिया रिलीज फिल्म ‘थामा’ ने बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ का कारोबार कर लिया है। फिल्म रिलीज के 10 दिनों बाद भी अच्छी कमाई कर रही है। अब अमर उजाला से खास बातचीत में आदित्य सरपोतदार ने बताया कि कैसे ‘थामा’ उनके लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी थी। साथ ही उन्होंने मैडॉक के हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स को लेकर भी बात की।

जब आपने पहली बार 'थामा' की कहानी सुनी तो क्या प्रतिक्रिया रही?
मैं उस वक्त ‘मुंज्या’ की शूटिंग कर रहा था, जब अमर कौशिक ने मुझे ‘थामा’ का आइडिया बताया। इसे सुनकर मेरे अंदर एक रोमांचक जिज्ञासा उठी। मैंने उनसे समय मांगा और करीब एक साल तक शोध किया। लोककथाएं और पुराण पढ़ते हुए मुझे बेताल के बारे में कई दिलचस्प बातें पता चलीं। कई लेखों में लिखा था कि बेताल भारत का पहला वैम्पायर कहा जा सकता है। खासकर बंगाल की फोक कहानियों में बेताल और काली मां की सेना की कथाएं मुझे झकझोर गईं। मुझे एहसास हुआ कि यह डर की कहानी नहीं, बल्कि दिव्यता और बलिदान की कहानी है। वहीं से ‘थामा’ का बीज बोया गया।

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‘स्त्री’ यूनिवर्स का हिस्सा बनना कितना चुनौतीपूर्ण रहा?
‘स्त्री’ यूनिवर्स की सबसे अच्छी बात यह है कि यहां हर निर्देशक को पूरी आजादी मिलती है। जब मैं ‘मुंज्या’ के वक्त इस यूनिवर्स से जुड़ा तब अमर और निरेन (लेखक) पहले से तय कर चुके थे कि कौन सी फिल्म कब आएगी और कैसे जुड़ेगी। मुझे भी यूनिवर्स-बेस्ड फिल्में हमेशा आकर्षक लगती हैं क्योंकि इनमें किरदारों की दुनिया बढ़ती जाती है। वहीं जब आपके साथ आयुष्मान, रश्मिका और परेश रावल जैसे कलाकार हों तो सोच को साकार करना और आसान हो जाता है। ये कलाकार सिर्फ एक्टिंग नहीं करते, कहानी में जान डाल देते हैं।

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थामा - फोटो : एक्स

फिल्म को दर्शकों का मिला-जुला रिस्पॉन्स मिला है। कुछ ने इसे बेहतरीन कहा तो कुछ ने कमजोर भी बताया। आप इसे किस तरह देखते हैं?
मुझे लगता है कि ये फिल्म का हिस्सा है। जब दर्शक सवाल पूछते हैं तो समझिए वे इसे जुड़ गए हैं। मुझे खुद ऐसी फिल्में पसंद हैं जिन्हें बच्चे और परिवार साथ देख सकें। अगर बहुत डरावनी फिल्म बनाऊं तो बच्चे पहले ही थिएटर से भाग जाएंगे। मुझे याद है जब मैंने ‘थामा’ का फुटेज आयुष्मान को दिखाया था। उन्होंने कहा कि उनकी बेटी किसी फिल्म को लेकर इतनी एक्साइटेड पहले कभी नहीं रही। यही मेरे लिए असली इनाम है। मेरे लिए हॉरर का मतलब इमोशन और एंटरटेनमेंट का बैलेंस है। डर तभी असर करता है जब उसके पीछे भावना हो। और यही ‘थामा’ की आत्मा है।

रश्मिका की हिंदी को लेकर भी कई लोगों ने चर्चा की। आप इस पर क्या कहेंगे?
अगर किसी दर्शक को लगे कि किसी कलाकार की हिंदी में सुधार की गुंजाइश है, तो यह राय वाजिब है। लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि किरदार की भाषा और पृष्ठभूमि क्या है? हमने स्क्रिप्ट में पहले ही तय किया था कि रश्मिका का किरदार दक्षिण भारतीय हिस्से से आता है, इसलिए उसकी बोली स्पष्ट हिंदी नहीं रखी जा सकती थी। रश्मिका ने अपने किरदार और भाषा पर बहुत मेहनत की है। कभी-कभी आलोचना भी एक तरफा होती है, खासकर तब जब कोई एक्ट्रेस कुछ अलग करने की कोशिश करती है। रश्मिका बेहद मेहनती और समझदार हैं।

यह खबर भी पढ़ेंः ‘थामा’ के सामने भी डटकर खड़ी है ‘एक दीवाने की दीवानियत’, 10वें दिन रहा ऐसा कलेक्शन

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थामा - फोटो : इंस्टाग्राम-@aditya_a_sarpotdar

मराठी सिनेमा से हिंदी के 100 करोड़ क्लब तक का सफर कैसा रहा?
यह सफर मेरे लिए इमोशनल भी है और प्रेरणादायक भी। मैं मराठी सिनेमा की चौथी पीढ़ी से आता हूं। हमारे घर में फिल्मों का संस्कार बचपन से रहा है। मेरी कहानियां हमेशा मेरी मिट्टी से जुड़ी रहीं। ‘मुंज्या’ महाराष्ट्र की लोककथाओं से निकली थी और हमें नहीं लगा था कि यह पैन इंडिया हिट बनेगी। लेकिन जब दिल्ली, पंजाब, गुजरात और साउथ तक लोगों ने इसे अपनाया, तब समझ आया कि लोककथाएं किसी एक प्रदेश की नहीं होतीं। ‘थामा’ ने उसी विश्वास को और मजबूत किया। दोनों फिल्मों का 100 करोड़ क्लब में शामिल होना मेरे लिए दर्शकों के प्यार का प्रमाण है।

2017 में आपने हिंदी फिल्म की थी, फिर इतना लंबा गैप क्यों आया?
2017 में मेरी पहली हिंदी फिल्म शुरू हुई थी, लेकिन वह पूरी नहीं हो पाई। उस अनुभव ने मुझे सिखाया कि सिर्फ फिल्म बनाना काफी नहीं, उसे पूरा करना जरूरी है। इसलिए मैं वापस मराठी सिनेमा लौटा। वहां की कहानियों ने मुझे दिशा दी। फिर 'जोम्बीवली' आई, जो मेरी पहली हॉरर कॉमेडी थी। लोगों ने इसे बहुत पसंद किया और दिलचस्प बात यह थी कि नॉन-मराठी दर्शकों ने भी इसे अपनाया। फिर ‘काकूडा’, ‘मुंज्या’ और अब ‘थामा’। हर फिल्म ने यह यकीन और मजबूत किया कि जड़ों से जुड़कर भी पैन इंडिया कहानियां कही जा सकती हैं।

बैक टू बैक 100 करोड़ क्लब में आने के बाद अब दबाव महसूस होता है?
नंबर मेरे लिए दबाव नहीं हैं, वे ऑडियंस का प्यार हैं। ‘मुंज्या’ के बाद ‘थामा’ के साथ वही एहसास दोहराया गया। आज जब लोग सोशल मीडिया पर सीन शेयर करते हैं, मीम बनाते हैं या चर्चाएं करते हैं, वही मेरे लिए सबसे बड़ा रिवॉर्ड है। मेरे लिए हर वो दर्शक जो टिकट खरीदकर फिल्म देखने आता है, सम्मान है। यही मेरे लिए किसी भी बॉक्स ऑफिस नंबर से बड़ी बात है।

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