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Anuj Sachdeva: परिणीति चोपड़ा के पति से इंस्पायर है 'छल कपट' का ये किरदार, अनुज बोले- उनकी संसद वाली स्पीच देखी
सार
हाल ही में रिलीज हुए शो 'छल कपट' में एक्टर अनुज सचदेवा ने विक्रम शांडेल का किरदार निभाया है। खास बात ये है कि ये किरदार आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा से इंस्पायर है।
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शो 'छल कपट' में एक्टर अनुज सचदेवा ने निभाया विक्रम शांडेल का किरदार
- फोटो : एक्स (ट्विटर)
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विस्तार
हाल ही में अमर उजाला डिजिटल से बातचीत में अनुज सचदेवा ने बताया कि उन्होंने शो 'छल कपट' में विक्रम शांडेल का किरदार निभाया है। यह किरदार आम आदमी पार्टी के नेता और परिणीति चोपड़ा के पति राघव चड्ढा से इंस्पायर है। इस किरदार के लिए अनुज ने राघव चड्ढा की स्पीच तक देखीं, जिससे उनके बोलने के अंदाज और ठहराव को पकड़ सकें। इस बातचीत में अनुज ने इंडस्ट्री में अपने एक्सपीरियंस, पॉलिटिक्स में दिलचस्पी और इंसानियत के मायने भी खुलकर बताए।
‘यह कोई सीधा-सादा किरदार नहीं’
शुरुआत में मुझे इस प्रोजेक्ट के बारे में थोड़ा-बहुत बताया गया था कि कहानी किस डायरेक्शन में जाएगी। लेकिन असली दिलचस्पी तब पैदा हुई जब मेरी मुलाकात हमारे प्रोड्यूसर समर खान जी से हुई। हम पहले एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'दुपट्टा किलर' के प्रीमियर पर मिले थे, जिसे उन्होंने प्रोड्यूस किया था। वहीं उन्होंने मुझे 'छल कपट' के बारे में बताया कि वो इस प्रोजेक्ट की शुरुआत करने जा रहे हैं। जब मुझे इस किरदार को लेकर डिटेल में बताया गया, तो मुझे लगा कि इसमें निभाने के लिए बहुत कुछ है। यह कोई सीधा-सादा किरदार नहीं है। इसमें कई रंग हैं, कुछ चौंकाने वाले मोड़ हैं और एक गहराई वाला ग्राफ है। मुझे लगा कि एक एक्टर के तौर पर यह मेरे लिए एक अच्छा मौका है कुछ अलग और चुनौती भरा करने का। इसलिए मैंने तुरंत इस प्रोजेक्ट के लिए हां कर दी।
‘मैंने राघव चड्ढा की स्पीच देखी, वही टोन पकड़नी थी’
सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहूंगा कि हमारे डायरेक्टर अजय सर ने मुझे इस रोल को अपने अंदाज में निभाने की पूरी छूट दी। अगर कहीं सुधार की जरूरत होती थी तो वो गाइड कर देते थे। जहां तक लुक और अंदाज की बात है, तो मुझे बताया गया था कि ये किरदार एक पॉलिटिशियन का बेटा है, नाम है विक्रम शांडेल। और ये रोल राघव चड्ढा से थोड़ा इंस्पायर है। मैंने उनका बोलने का तरीका, बॉडी लैंग्वेज सब कुछ थोड़ा बहुत देखा और समझा। खासकर उनकी संसद वाली स्पीच देखी ताकि किरदार में वो ठहराव और अंदाज आ सके। इस किरदार की सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि मैं इसमें ज्यादा एक्सप्रेशन या गुस्सा नहीं दिखा सकता था। किरदार बाहर से बहुत शांत और सुलझा हुआ है। लेकिन अंदर से बहुत कुछ सोचता और प्लान करता है। तो मुझे सिर्फ बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग के जरिए सारी चालाकी दिखानी थी। और यही थोड़ा मुश्किल भी था। इस किरदार से बहुत कुछ सीखने को भी मिला। जिस तरह राघव चड्ढा सादगी से अपनी बात रखते हैं, वैसा टोन लाने की कोशिश की।
‘कुछ लोग दोस्त बनकर भी चाल चल जाते हैं’
अनुज सचदेव ने इंडस्ट्री में मौजूद पॉलिटिक्स पर भी बात की। वह कहते हैं, 'हमारी इंडस्ट्री में कॉम्पिटिशन बहुत है। एक एक्टर होने के नाते हम सभी थोड़ा असुरक्षित महसूस करते हैं और ऐसे में कई बार दोस्ती की आड़ में भी लोग चालें चल जाते हैं। जब मैंने मुंबई में शुरुआत की थी, तब कुछ दोस्त थे जो अब बहुत बड़े नाम बन चुके हैं। मैं नाम नहीं लूंगा, लेकिन उस समय हम साथ में ऑडिशन देते थे। कई बार ऐसा भी हुआ कि हम दोनों घर से निकले। मैंने पूछा, 'कहां जा रहे हो?' उन्होंने कहा, 'कहीं नहीं, घर ही जा रहा हूं।' और बाद में पता चला कि वो भी उसी ऑडिशन में गया था, जहां मैं भी गया था। लेकिन उसने बताया नहीं। ऐसी छोटी-छोटी बातें बाद में समझ आने लगीं। इस इंडस्ट्री में बहुत कम लोग हैं जो गहरी दोस्ती निभाते हैं। ज्यादातर लोग सिर्फ काम तक सीमित रहते हैं। मैं सबके साथ मिलना-जुलना पसंद करता हूं लेकिन अब मेरे बहुत कम दोस्त हैं। क्योंकि भरोसा करना आसान नहीं रहा।'
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‘यह कोई सीधा-सादा किरदार नहीं’
शुरुआत में मुझे इस प्रोजेक्ट के बारे में थोड़ा-बहुत बताया गया था कि कहानी किस डायरेक्शन में जाएगी। लेकिन असली दिलचस्पी तब पैदा हुई जब मेरी मुलाकात हमारे प्रोड्यूसर समर खान जी से हुई। हम पहले एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'दुपट्टा किलर' के प्रीमियर पर मिले थे, जिसे उन्होंने प्रोड्यूस किया था। वहीं उन्होंने मुझे 'छल कपट' के बारे में बताया कि वो इस प्रोजेक्ट की शुरुआत करने जा रहे हैं। जब मुझे इस किरदार को लेकर डिटेल में बताया गया, तो मुझे लगा कि इसमें निभाने के लिए बहुत कुछ है। यह कोई सीधा-सादा किरदार नहीं है। इसमें कई रंग हैं, कुछ चौंकाने वाले मोड़ हैं और एक गहराई वाला ग्राफ है। मुझे लगा कि एक एक्टर के तौर पर यह मेरे लिए एक अच्छा मौका है कुछ अलग और चुनौती भरा करने का। इसलिए मैंने तुरंत इस प्रोजेक्ट के लिए हां कर दी।
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‘मैंने राघव चड्ढा की स्पीच देखी, वही टोन पकड़नी थी’
सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहूंगा कि हमारे डायरेक्टर अजय सर ने मुझे इस रोल को अपने अंदाज में निभाने की पूरी छूट दी। अगर कहीं सुधार की जरूरत होती थी तो वो गाइड कर देते थे। जहां तक लुक और अंदाज की बात है, तो मुझे बताया गया था कि ये किरदार एक पॉलिटिशियन का बेटा है, नाम है विक्रम शांडेल। और ये रोल राघव चड्ढा से थोड़ा इंस्पायर है। मैंने उनका बोलने का तरीका, बॉडी लैंग्वेज सब कुछ थोड़ा बहुत देखा और समझा। खासकर उनकी संसद वाली स्पीच देखी ताकि किरदार में वो ठहराव और अंदाज आ सके। इस किरदार की सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि मैं इसमें ज्यादा एक्सप्रेशन या गुस्सा नहीं दिखा सकता था। किरदार बाहर से बहुत शांत और सुलझा हुआ है। लेकिन अंदर से बहुत कुछ सोचता और प्लान करता है। तो मुझे सिर्फ बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग के जरिए सारी चालाकी दिखानी थी। और यही थोड़ा मुश्किल भी था। इस किरदार से बहुत कुछ सीखने को भी मिला। जिस तरह राघव चड्ढा सादगी से अपनी बात रखते हैं, वैसा टोन लाने की कोशिश की।
‘कुछ लोग दोस्त बनकर भी चाल चल जाते हैं’
अनुज सचदेव ने इंडस्ट्री में मौजूद पॉलिटिक्स पर भी बात की। वह कहते हैं, 'हमारी इंडस्ट्री में कॉम्पिटिशन बहुत है। एक एक्टर होने के नाते हम सभी थोड़ा असुरक्षित महसूस करते हैं और ऐसे में कई बार दोस्ती की आड़ में भी लोग चालें चल जाते हैं। जब मैंने मुंबई में शुरुआत की थी, तब कुछ दोस्त थे जो अब बहुत बड़े नाम बन चुके हैं। मैं नाम नहीं लूंगा, लेकिन उस समय हम साथ में ऑडिशन देते थे। कई बार ऐसा भी हुआ कि हम दोनों घर से निकले। मैंने पूछा, 'कहां जा रहे हो?' उन्होंने कहा, 'कहीं नहीं, घर ही जा रहा हूं।' और बाद में पता चला कि वो भी उसी ऑडिशन में गया था, जहां मैं भी गया था। लेकिन उसने बताया नहीं। ऐसी छोटी-छोटी बातें बाद में समझ आने लगीं। इस इंडस्ट्री में बहुत कम लोग हैं जो गहरी दोस्ती निभाते हैं। ज्यादातर लोग सिर्फ काम तक सीमित रहते हैं। मैं सबके साथ मिलना-जुलना पसंद करता हूं लेकिन अब मेरे बहुत कम दोस्त हैं। क्योंकि भरोसा करना आसान नहीं रहा।'
‘पिछले पांच-छह साल से पॉलिटिक्स में दिलचस्पी है’
मुझे पिछले पांच-छह साल से पॉलिटिक्स में बहुत दिलचस्पी है। खासकर कोविड के समय, जब मैंने इन्वेस्टमेंट और दुनियाभर की खबरें पढ़नी शुरू कीं, तब समझ में आया कि देश और दुनिया कैसे चलती है। मुझे जानवरों से बहुत लगाव है। मैं हमेशा चाहता हूं कि उनके लिए कुछ किया जाए, ताकि उनकी जिंदगी थोड़ी बेहतर हो सके। गांधी जी भी कहते थे कि करुणा जरूरी है। अगर पॉलिटिक्स के जरिए मैं किसी बदलाव की तरफ कदम बढ़ा सका, तो मैं जरूर उस रास्ते पर चलना चाहूंगा।
मुझे पिछले पांच-छह साल से पॉलिटिक्स में बहुत दिलचस्पी है। खासकर कोविड के समय, जब मैंने इन्वेस्टमेंट और दुनियाभर की खबरें पढ़नी शुरू कीं, तब समझ में आया कि देश और दुनिया कैसे चलती है। मुझे जानवरों से बहुत लगाव है। मैं हमेशा चाहता हूं कि उनके लिए कुछ किया जाए, ताकि उनकी जिंदगी थोड़ी बेहतर हो सके। गांधी जी भी कहते थे कि करुणा जरूरी है। अगर पॉलिटिक्स के जरिए मैं किसी बदलाव की तरफ कदम बढ़ा सका, तो मैं जरूर उस रास्ते पर चलना चाहूंगा।