भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित प्रसिद्ध गायिका मालिनी अवस्थी आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने 'मिर्जापुर' और 'हीरामंडी' जैसी वेब सीरीज बनाने वाले निर्देशकों को खूब जमकर खरी खोटी सुनाई है।
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मालिनी अवस्थी
- फोटो : इंस्टाग्राम@maliniawasthi
यूपी से निकली मशहूर गायिका मालिनी अवस्थी की दमदार और बुलंद आवाज पूरे देश में गूंजती हैं। वो ऐसी लोक गायिका हैं, जिनका कोई सानी नहीं है। वह जब भी मंच पर आती हैं तो उनकी आवाज दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। मालिनी अवस्थी भोजपुरी इंडस्ट्री का जाना-माना चेहरा हैं। उन्होंने लोकगीत को अपनी आवाज में बुलंदियों पर पहुंचाया है। 57 साल की मालिनी ने 'दम लगाके हईशा' में 'सुंदर सुशील' गाना गाया। इसके अलावा वो 'बम बम बोले', 'एजेंट विनोद', 'इश्क' जैसी बॉलीवुड फिल्मों के लिए गाना गाया है। अब मालिनी ने 'मिर्जापुर' और 'हीरामंडी' जैसी वेब सीरीज बनाने वाले निर्देशकों की क्लास लगाई है।
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मालिनी अवस्थी
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मालिनी अवस्थी ने वेब सीरीज बनाने वाले निर्देशकों को लेकर लगाई क्लास
मालिनी ने वेब सीरीज 'हीरामंडी' और 'मिर्जापुर' को लेकर लिखा, ''हम तो यही समझते हुए बड़े हुए कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि! लेकिन आज ओटीटी प्लेटफार्म पर कवि और कलाकार, इन्हे किस नजरिए से दिखाया जा रहा है! यह बहुत गंभीर विषय है। मिर्जापुर हो या हीरामंडी... सब वास्तविकता से कोसों दूर। कहानी, कल्पना फितूर उसपर तो क्या टिप्पणी की जाए लेकिन इधर जो दिखा है उस पर खामोश रहना सही नही होगा। फिक्शन के नाम पर चल रहे इस अपमान के सामने किसी भी कलाकार और किसी भी कवि को चुप नही रहना चाहिए।''
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मालिनी अवस्थी
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आगे मालिनी ने कालीन भैया के किरदार के बारे में लिखा, ''मां विंध्यवासिनी के तीर्थ मिर्जापुर को बदनाम करती हुई कालीन की आड़ में अपराध की बैसिरपैर की कहानी बताना काफी नहीं था जो अब कला जगत को इस गंदगी में लपेट लिया गया है। मिर्जापुर सीरीज के तीसरे सीजन में कवि समाज की विद्रूपता की आड़ में कविता के नाम पर उत्श्रृंखलता और भौंडापन की सीमाएं पार कर गया है, यही नहीं, वह हत्यारा भी है, हत्या को जायज़ मानने वाला हृदयविहीन कवि! इसी तरह हीरामंडी में उस्ताद के नाम पर एक ऐसा घटिया किरदार परोसा गया है जो बाज़ार जमाता है। में तो समझती थी कि संजय लीला भंसाली कला को समझते हैं, लेकिन क्या वाकई!! तालीम देते हुए कोठों पर जिंदगी गुजार देने वाले उस्ताद इन गायिकाओं को शीर्ष मुकाम पर पहुंचाने के लिए अपना खून दे कर बरसों रियाज करवाते थे, सिखाते थे, मेहनत करवाते थे तब जाकर कोई सितारा निखरता था, लेकिन आठ घंटे लंबी सीरीज में एक भी जगह एक भी तवायफ न गाना सीखते दिखाई दी न कोई उस्ताद तालीम देते हुए। हीरामंडी में उस्ताद के नाम पर जो घटियापन दिखाया गया है वह अपमानजनक है, सारी हदें पार करने वाला अपमान!''
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इसके अलावा निर्देशकों के बारे में मालिनी ने लिखा, ''राजनीति, पुलिस, न्यायिक व्यवस्था, समाज सेवा सभी अंगों को विकृत कर समाज में परोसने वाले यह लोग कम से कम कला जगत को बक्श दें। कलाकार और कवि रचनाकार हैं,इन पर आगे की इबारत लिखी जाएगी, ये आने वाली पीढ़ी का हक हैं, वे इन्हे अपना हासिल मानकर कुछ सुनेंगी सीखेंगी, उनका यह हक उनसे मत छीनिए। अपनी अफलातूनी कहानियों में जो दिखाना हों वह दिखाएं लेकिन कम से कम कवि और कलाकार इनके संग क्रियेविटी के नाम पर यह गंदा खेल बंद कीजिए।''