GoodBye Review: अमिताभ बच्चन का बर्थडे पर एडवांस रिटर्न गिफ्ट, विकास बहल से नहीं संभली लीक से इतर कहानी
लेखक, निर्देशक विकास बहल की फिल्म में अमिताभ बच्चन का किरदार 'बागबान' की याद दिलाता है जिसमें अमिताभ बच्चन इसी तरह अपने बच्चों को सख्त अंदाज में सीख देते नजर आए थे। विचार के स्तर पर कहानी रुचिकर लगती है लेकिन लेखन के स्तर पर विकास बहल फिल्म में चूक गए दिखते हैं।

विस्तार
इंसान की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार उसकी इच्छा के अनुसार किया जाए या हजारों साल से जो रीति रिवाज और परंपराएं चली आ रही है उसके मुताबिक, आज की नई पीढ़ी का इस पर अपना अलग तर्क है और वर्षो से चली आ रही रीति रिवाज और परम्पराओं का अपना अलग मत। लेखक, निर्देशक विकास बहल ने इसी बहस पर अपनी नई फिल्म 'गुडबाय' का निर्माण किया है। फिल्म में अमिताभ बच्चन का किरदार 'बागबान' की याद दिलाता है जिसमें अमिताभ बच्चन इसी तरह अपने बच्चों को सख्त अंदाज में सीख देते नजर आए थे। मंगलवार को 80 साल के होने जा रहे अमिताभ बच्चन की कंपनी सरस्वती एंटरटेनमेंट इस फिल्म की निर्माता भी है।

मित्र से सुनी कहानी पर फिल्म
फिल्म 'गुडबाय' के लेखक निर्देशक विकास बहल ने चार साल पहले बेंगलुरु के अपने एक मित्र से सुना कि उनके पिताजी को मृत्यु का भय नहीं था। वह तो इस बात से खुश थे कि मृत्यु के बाद वह भगवान कृष्ण के पास चले जाएंगे। उन्होंने कहा कि मेरे मरने के बाद तुमको जो भी करना होगा एक ही दिन कर देना। हर साल मेरा श्राद्ध मत करना क्योंकि मैं ठीक उसी तरह से डिस्टर्ब हो जाऊंगा जिस तरह से अगर तुम किसी पार्टी में इंजॉय कर रहे हो और मैं बार बार फोन करूं।’ इसी थीम पर विकास बहल ने 'गुडबाय' बनाई और पिता के बजाय कहानी के केंद्रबिंदु में मां को रख दिया। विचार के स्तर पर कहानी रुचिकर लगती है लेकिन लेखन के स्तर पर विकास बहल फिल्म में चूक गए दिखते हैं।
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रीति रिवाज को लेकर बाप बेटी में टकराव
मृत शरीर को नहलाकर उसके कान और नाक में रुई डाली जाती है। इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता यह है कि मृतक के शरीर के अंदर कोई कीटाणु ना जा सके। पैर के दोनों अंगूठों को बांध दिया जाता है ताकि शरीर की दाहिनी नाड़ी व बाईं नाड़ी के सहयोग से मृत शरीर सूक्ष्म कष्टदायक वायु से मुक्त हो जाए। बेटी को यह सब अंधविश्वास लगता है। उनका मानना है कि मां को यह सब पसंद नहीं था। उसकी अपने पिता से बहस हो जाती है। पिता का कहना है कि हजारों साल से चले आ रहे रीति रिवाज अंधविश्वास कैसे हो सकते हैं? वह अपने बच्चों को डांटते हुए कहते हैं, 'हजारों सालों से ये रीति रिवाज चले आ रहे हैं, अगर तुम्हें उनमें विश्वास नहीं है तो, इसमें दुनिया की गलती नहीं है।' बाद में उन्हें भी एहसास होता है कि उन्होंने यह कभी जानने की कोशिश ही नहीं की कि आखिर में उनकी पत्नी क्या चाहती थी?
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कहानी के किरदारों का कन्फ्यूजन
इंसान अपनी मौत किस तरह से चाहता है और, मौत के बाद परिवार वाले किस रीति रिवाज से मृतक का दाह संस्कार करते हैँ? रीति रिवाज के वैज्ञानिक कारण क्या हैं? इस विषय के इर्द गिर्द विकास बहल ने फिल्म बनाने की कोशिश की है। लेकिन वह लेखन और निर्देशन दोनों स्तर पर चूक गए हैं। फिल्म के एक सीन में दिखाया गया है कि अमिताभ बच्चन और नीना गुप्ता अनाथालय में एक सिख बच्चे को गोद लेने जाते है। मां कहती है कि बच्चे पाने का यह तरीका बहुत अच्छा है। इससे फीगर भी ठीक रहता है और बच्चा भी मिल जाता है। लेकिन, पूरी फिल्म में इस बात का कहीं भी जिक्र नहीं है कि दंपती के बाकी तीन बच्चे भी गोद लिए गए हैं या उनकी खुद की संतानें हैं।
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अमिताभ बच्चन का दमदार अभिनय
अभिनय के लिहाज से रश्मिका मंदाना को इस फिल्म से बहुत आस रही होगी। फिल्म 'पुष्पा: द राइज' के जरिए पैन इंडिया स्टार बनी रश्मिका मंदाना ने इस फिल्म से हिंदी सिनेमा डेब्यू किया है। लेकिन, एक डेब्यू फिल्म के लिए जैसा किरदार और जैसा अभिनय उनका होना चाहिए था, वैसा असरदार ये किरदार नहीं है। बीती सदी के महानायक कहलाए अमिताभ बच्चन के अभिनय में भी ऐसा कुछ नहीं है जो वह पहले न कर चुके हों। अभिनय उनका शानदार है लेकिन ऐसा ही अभिनय वह पहले भी कर चुके हैं। हां, अस्थि विसर्जन के बाद वाले दृश्य में जरूर वह दर्शकों को रुला देते हैं। फिल्म में बड़े छोटे कलाकारों की भरमार है जिनमें नीना गुप्ता, आशीष विद्यार्थी और सुनील ग्रोवर अपना अपना काम ढंग से निभा जाते हैं। पावेल गुलाटी, एली अवराम और साहिल मेहता का अभिनय भी बस ठीक ठाक सा ही है।
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तकनीकी रूप से कमजोर फिल्म
कहानी से लेकर निर्देशन, अभिनय और गीत-संगीत के स्तर पर अंत तक समझ नहीं आता कि आखिर विकास बहल कहना क्या चाहते हैं? बेटी अपनी जीत की खुशी अपनी मां से नहीं शेयर कर पाई, इसका उसे दुख होता है। लेकिन, ये जीत क्या थी, इसका फिल्म में कहीं भी जिक्र नहीं है। फिल्म में कहने को नौ गाने हैं, लेकिन 'जय काल महाकाल' के अलावा ऐसा कोई गीत नहीं, जो आपको याद रह सके। फिल्म की शूटिंग देहरादून और ऋषिकेश में भी की गई है लेकिन यहां की खूबसूरती परदे पर अपने नैसर्गिक रूप में नजर नहीं आती। फिल्म का संपादन भी और चुस्त हो सकता था।