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Chandigarh-Haryana News: कानोड और सोहना किले की बदलेगी सूरत, राज्य संरक्षित स्थल में शामिल

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पुरातत्व विभाग के 6 प्रस्तावों को मुख्यमंत्री की मंजूरी के बाद प्रारंभिक अधिसूचना हुई जारी


पलवल के अहरवां, आशा खेडा और कोडला-खेडा की प्राचीन बस्तियों को भी मिलेगा संरक्षण

रेवाड़ी रियासत की प्राचीन छतरियों के समूह भी अब राज्य संरक्षित स्थल सूची में आए





अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। दिल्ली के साथ लगते दक्षिण हरियाणा में सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कानोड किला (महेंद्रगढ़ किला) और सोहना किला समेत आधा दर्जन ऐतिहासिक धरोहरों को राज्य संरक्षित स्थल की सूची में शामिल करने के पुरातत्व विभाग के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री नायब सैनी ने मंजूरी दे दी है। इस बारे में पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग की ओर से प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर दी गई है। इन धरोहर को अब संरक्षण एवं सौंदर्यीकरण का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
विरासत एवं पर्यटन मंत्री डाॅ. अरविंद शर्मा के मुताबिक महेंद्रगढ़ में 18वीं शताब्दी में मराठा सेनापति तात्या टोपे की ओर से तैयार किया गया कानोड किला, गुरुग्राम में भरतपुर राजा की ओर से तैयार सोहाना किला, पलवल में प्राचीन बस्तियां अहरवां, आशा खेडा व कोडला खेडा व रेवाड़ी रियासत की धरोहर पांच छतरियों के समूह को राज्य संरक्षित स्थल के तौर पर प्रदेश सरकार द्वारा मंजूरी प्रदान की गई है। शीघ्र इन धरोहरों के संरक्षण, सौंदर्यीकरण को लेकर विशेष कार्य योजना बनाई जाएगी ताकि सभी धरोहरों और इतिहास को देश, दुनिया के सामने प्रस्तुत किया जा सके।
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धरोहर का है ऐतिहासिक महत्व


कानोड किला उत्तर भारत में मराठा प्रभाव के विस्तार का प्रमाण है। 1860 में अंग्रेजों के शासन के दौरान किला व आसपास का इलाका पटियाला रियासत में शामिल होने के बाद पटियाला के महाराजा नरेंद्र सिंह ने अपने पुत्र महेन्द्र सिंह के नाम पर किले का नाम बदलकर महेंद्रगढ़ कर दिया था। यह किला राजपूत वास्तुकला, मुगल व मराठा शैलियों की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक प्रभाव को सजीवटता प्रदान करता है। इसी प्रकार हरियाणा के सबसे पुराने किलों में शामिल सोहना किला मध्यकाल के सामरिक महत्व को दर्शाता है। राजपूत व मुगल स्थापत्य शैली के मिश्रण के अवशेष सोहना किला में पाए गए हैं। रेवाड़ी रियासत में पांच छतरियों के समूह का निर्माण राव नंदराम के वंशजों ने कराया था। स्वतंत्रता सेनानी राजा राव तुलाराम के दादा राव तेज सिंह द्वारा वर्तमान छतरियों के स्थल पर उद्यान बनवाया गया था। पलवल के आशा खेडा स्थित पुरातात्विक स्थल पर प्राचीन काल में पांडवों की संस्कृति से जुड़ाव के साक्ष्य मिले हैं, जो कुषाण, गुप्त और मध्यकालीन काल के बाद से आधुनिक काल तक अस्तित्व में रहा। अहरवां में प्राचीन धूसर मृदभांड संस्कृति से पूर्व के लोगों के बसने की संभावना हैं। उन्होंने बताया कि कोडला खेडा में प्रारंभिक लौह युग के आवासों के संकेत और 1200-600 ईसा पूर्व के मिट्टी के बर्तन पाए जाते थे, जो बाद में चीनी मिट्टी की परंपराओं के माध्यम से विकसित हुए।




20 और धरोहर को राज्य संरक्षित स्थल में लाने का है प्रस्ताव : अरविंद शर्मा



कैबिनेट मंत्री डाॅ. अरविंद शर्मा ने कहा- अब प्रदेश में राज्य संरक्षित स्थलों की संख्या बढ़कर 66 हो गई है। वर्ष 2022 से अब तक 26 नई राज्य संरक्षित स्थल को मंजूरी मिली हैं, जबकि 20 धरोहरों को इस सूची में लाने के प्रस्ताव पर काम चल रहा है।
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