हिमाचल प्रदेश: चालदा महासू के आगे-आगे चलता है न्याय का प्रतीक काडका, 70 बकरे भी साथ ही पहुंचे; जानें
उत्तराखंड के दसऊ गांव से पशमी पहुंची चालदा महासू महाराज की यात्रा में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र सबसे आगे चल रहे विशाल काडका (तांबे का बर्तन) रहा।
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उत्तराखंड के दसऊ गांव से पशमी पहुंची चालदा महासू महाराज की यात्रा ऐतिहासिक बन गई है। करीब एक सप्ताह तक चली यात्रा के एक लाख से अधिक श्रद्धालु प्रत्यक्षदर्शी बने। इसमें श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र सबसे आगे चल रहे विशाल काडका (तांबे का बर्तन) रहा। महाराज के साथ ही दसऊ से करीब 70 बकरे भी साथ पहुंचे हैं। साल भर तक इनकी देखभाल का जिम्मा स्थानीय परिवारों को दिया गया है।
प्रदेश के लोगों को यात्रा से साक्षी बनने पर पहली बार कई देव परंपराओं का पता चला है। इसमें चालदा महासू के आगे-आगे चलने वाले काडका (स्थानीय भाषा में तांबे के विशाल बर्तन) परंपरा का हिस्सा रहा। न्याय के देवता चालदा महासू अपनी पालकी में आते हैं। पालकी के आगे-आगे काडका और छत्र न्याय के प्रतीक के रूप में आगे रहता है। माना जाता है कि यह देव आगमन का संकेत देते हैं। रास्ते में आने वाली बाधाओं को भी दूर करते हैं।

पशमी मंदिर समिति के भंडारी रघुवीर सिंह, दिनेश चौहान, प्रकाश चौहान और प्रदीप सिंह ने बताया कि चालदा महासू महाराज की यात्रा में करीब 70 बकरे भी साथ पहुंचे हैं। इनकी सेवा के लिए गांव के ही परिवारों को जिम्मा दिया गया है। रोज एक परिवार इनको गांव के चरागाह और जंगल में ले जाते रहेंगे। चार-पांच बकरे मंदिर परिसर के आसपास ही रहते हैं।
मंदिर समिति सदस्य रघुवीर सिंह ने बताया कि महाराज की सेवा के लिए उत्तराखंड के जौंनसार के ग्राम चातर से पुजारी हरिचंद, मेदरथ से प्यारे लाल, निनुस से लायक राम और पुटाड़े से संतराम पुजारी शामिल हैं। जौंनसार से भंडारी जगत सिंह, अनिल चौहान और सुरेंद्र सिंह हैं। ठाणी (तिलक लगाने वाले) के लिए तरेपन सिंह, हैप्पी चौहान, विक्रम सिंह और हरदयाल सिंह महाराज के साथ सेवा को पशमी गांव में पहुंचे हैं।
भंडारी रघुवीर सिंह, दिनेश चौहान और प्रकाश चौधरी ने बताया कि रोज पशमी मंदिर में भंडारा होगा। पशमी गांव में महाराज के दर्शन को पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की सेवा के लिए मंदिर समिति प्रयासरत रहेगी।