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Adani Row: कांग्रेस बोली- अदाणी समूह-सरकार के संबंधों की 'दिन के उजाले' में हो जांच, समिति नहीं JPC का विकल्प

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Thu, 16 Feb 2023 06:30 PM IST
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सार

Adani Row: जयराम रमेश के मुताबिक, सॉलिसिटर जनरल ने यह सुझाव दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय के विचारार्थ, समिति के सदस्यों के नाम सरकार सीलबंद लिफाफे में देगी। विशेषज्ञों द्वारा विनियामक और वैधानिक तंत्र का मूल्यांकन किसी भी तरह से जेपीसी की जांच के बराबर नहीं हो सकता है...

Adani Row: Congress said, Adani Group-Government relations should be investigated in 'daylight'
Congress Leader Jairam Ramesh - फोटो : PTI (File Photo)
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विस्तार
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अदाणी मामले की जांच के लिए बनने वाली विशेषज्ञों की समिति के गठन से पहले ही कांग्रेस पार्टी ने उस पर कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं। पार्टी महासचिव (संचार) एवं सांसद जयराम रमेश का कहना है कि 13 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले पर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए, अडानी-हिंडनबर्ग प्रकरण के परिणामस्वरूप हुए भंडाफोड़ के आलोक में नियामक तंत्र की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर चर्चा की थी।

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इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने सरकार को 17 फरवरी तक अपना निवेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। बतौर जयराम रमेश, इस मामले में आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, यह अनिवार्य हो जाता है कि जनता के प्रति जवाबदेह निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा अदाणी और सत्तारूढ़ शासन के बीच संबंधों की जांच 'दिन के उजाले' में की जाए। किसी समिति में चाहे जितने भी सक्षम कर्मचारी हो, विशेषज्ञ हों, वह ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) का विकल्प नहीं बन सकती।

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गुरुवार को अपने एक बयान में जयराम रमेश ने कहा, मौजूदा परिस्थितियों में, जब सत्तारूढ़ व्यवस्था यानी भारत सरकार और अदाणी समूह के बीच घनिष्ठ, परस्पर निकटता के आरोप हैं, तो ऐसे में भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित कार्यक्षेत्र के साथ एक समिति का गठन, शायद ही किसी निष्पक्षता या पारदर्शिता का आश्वासन अथवा संकेत दे सकता है। यह प्रक्रिया, इस मामले में दो प्रमुख भूमिकाएं निभाने वालों, सरकार और अदाणी समूह की वास्तविक जांच पर पर्दा डालने का प्रयास है। इसे मामले को टालने, उससे बचने और दफनाने के लिए शुरू की गई एक कवायद कहा जाएगा। यह बिल्कुल स्पष्ट होता जा रहा है कि प्रस्तावित समिति, अदाणी समूह और सरकार के साथ संबंधों की किसी भी वास्तविक जांच को रोकने के लिए निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा सुनियोजित ढंग से आयोजित एक नाटकीय प्रपंच का हिस्सा है।

जयराम रमेश के मुताबिक, इस अवधारणा को इस तथ्य से भी पुष्टि मिलती है कि विदित समाचार रिपोर्टों के अनुसार, सॉलिसिटर जनरल ने यह सुझाव दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय के विचारार्थ, समिति के सदस्यों के नाम सरकार सीलबंद लिफाफे में देगी। विशेषज्ञों द्वारा विनियामक और वैधानिक तंत्र का मूल्यांकन किसी भी तरह से संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच के बराबर नहीं हो सकता है। इस तरह की समिति में चाहे जितने भी सक्षम कर्मचारी हों, लेकिन वह जेपीसी जांच का विकल्प नहीं हो सकती। इसके पास विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों की जांच करने के लिए प्राधिकार, संसाधन या अधिकार क्षेत्र नहीं है। अतीत में प्रतिभूतियों व बैंकिंग लेनदेन में अनियमितताओं और स्टॉक-मार्केट घोटाले की जांच के लिए जेपीसी गठित की गईं थी। इन समितियों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर ऐसे मामलों में हेराफेरी को प्रेरित करने वाली प्रथाओं को नियंत्रण करने में मदद मिली थी।

ऐसे मामलों में जेपीसी रिपोर्ट, दोषसिद्धी और अपेक्षित विधायी संशोधन लाने का महत्वपूर्ण आधार रहे हैं। यदि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को इस मामले में जवाबदेह ठहराया जाना है, तो जेपीसी के अतिरिक्त कोई भी अन्य समिति इस मामले में कारगर साबित नहीं हो सकती। अन्य सभी प्रयास सारे दोषों को वैध ठहराने और दोषियों को दोषमुक्त करने की कवायद के अलावा और कुछ नहीं होंगे।

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