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बांके बिहारी मंदिर: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, 'असंयमित' भाषा पर सवाल उठाए
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: राहुल कुमार
Updated Fri, 08 Aug 2025 04:28 PM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर पर एक जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों पर नाराजगी व्यक्त की और उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ “असंयमित भाषा” के इस्तेमाल पर सवाल उठाया।
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सुप्रीम कोर्ट (फाइल)
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वृंदावन स्थित ऐतिहासिक बांके बिहारी मंदिर से संबंधित एक जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों पर नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ "असंयमित भाषा" के इस्तेमाल पर सवाल भी उठाए हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा 21 जुलाई और 6 अगस्त को दिए गए आदेशों का अवलोकन किया और उनमें की गई टिप्पणियों पर रोक लगा दी।
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उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने पीठ को बताया कि हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर समानांतर कार्यवाही की और आदेश में कुछ अनुचित टिप्पणियां कीं।
पीठ ने कहा, हाईकोर्ट किस तरह की असंयमित भाषा का इस्तेमाल कर रहा है? जैसे राज्य सरकार ने अध्यादेश पारित करके कोई पाप किया हो। यह सब क्या है? क्या हाईकोर्ट को यह जानकारी नहीं दी गई कि यह मामला उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में है?
न्यायमूर्ति कांत ने आगे कहा कि किसी कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं हमेशा खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध होती हैं, लेकिन वर्तमान मामले में एकल न्यायाधीश ने आदेश पारित किया। पीठ ने 21 जुलाई के आदेश में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट में आगे की कार्यवाही पर भी रोक लगा दी।
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इसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि वह अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को अन्य याचिकाओं के साथ एक खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने पर विचार करें।
हाईकोर्ट ने छह अगस्त को ऐतिहासिक बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन के लिए एक वैधानिक न्यास के प्रस्ताव के साथ अध्यादेश लाने के राज्य सरकार के कदम की आलोचना की थी और कहा था कि राज्य ने ‘पाप’ किया है। सुनवाई के दौरान एकल न्यायाधीश ने राज्य सरकार द्वारा मंदिर का प्रशासन अपने हाथ में लेने के प्रयास पर तीखी टिप्पणी की और सरकार से कहा कि वह मंदिर को छोड़ दे।