BSP: मायावती 2.0 में कितनी मजबूत होगी बसपा, भाजपा-सपा का कितना खिसकेगा जनाधार?
पिछले तीन लोकसभा चुनावों और तीन यूपी विधानसभा चुनावों में बसपा लगातार कमजोर होती गई है। उसके परंपरागत वोट बैंक का एक छोटा हिस्सा ही उसके साथ रह गया है। बसपा के खराब प्रदर्शन से निराश दलित और अति पिछड़े मतदाताओं ने धीरे-धीरे भाजपा और सपा की ओर रुख कर लिया है। लेकिन अब बसपा खुद को मजबूत करने में जुटी हुई है।

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बहुजन समाज पार्टी यूपी की सियासत में एक बार फिर अपने लिए मजबूत भूमिका की तलाश में है। इसके लिए पार्टी नौ अक्टूबर को लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर बड़ी जनसभा करने की तैयारी कर रही है। बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में लाखों लोगों के पहुंचने की संभावना है। यूपी की राजधानी में बड़ी रैली कर मायावती अपनी वापसी के मजबूत संकेत देना चाहती हैं। इसे मायावती के द्वारा 2027 के यूपी चुनाव की शंखनाद भी माना जा रहा है। बड़ा प्रश्न यह है कि मायावती की ये कोशिशें कितनी सफल होंगी? बसपा के मजबूत होने से भाजपा के समीकरणों पर क्या असर पड़ेगा? अखिलेश यादव ने जिस पीडीए समीकरण के सहारे पिछले लोकसभा चुनाव में सफलता पाई है, उन समीकरणों में नई परिस्थितियों में क्या परिवर्तन आ सकता है?

पिछले तीन लोकसभा चुनावों और तीन यूपी विधानसभा चुनावों में बसपा लगातार कमजोर होती गई है। उसके परंपरागत वोट बैंक का एक छोटा हिस्सा ही उसके साथ रह गया है। बसपा के खराब प्रदर्शन से निराश दलित और अति पिछड़े मतदाताओं ने धीरे-धीरे भाजपा और सपा की ओर रुख कर लिया है। इन समर्थकों में एक बड़ा वर्ग आज भी ऐसा है जो दिल से बसपा से जुड़ा हुआ है, लेकिन अपना वोट खराब न करने के कारण दूसरे दलों के साथ जुड़ गया है। यदि मायावती इस वर्ग के लोगों के बीच यह भरोसा पैदा करने में सफल हो जाती हैं कि वे पूरी मजबूती के साथ वापसी करने के लिए तैयार हैं तो पहली कोशिश में ही इस वर्ग का एक हिस्सा वापस उनके साथ जुड़ सकता है।
दलितों के सम्मान और पहचान की बात करेगी असर
बसपा दलित मतदाताओं के स्वाभिमान के तौर पर उभरी थी। दलित मतदाता बसपा को अपनी पहचान के तौर पर देखता था। वह दूसरे दलों की ओर गया है, लेकिन उसके मन में अपनी पहचान को लेकर एक छटपटाहट आज भी साफ महसूस की जा रही है। यदि मायावती और आकाश आनंद इस वर्ग में अपनी पहचान का मुद्दा फिर से जीवित कर सकें तो वह उनके साथ वापस आ सकता है और यह बसपा की वापसी का मजबूत आधार बन सकता है। यदि बसपा अपना यह कोर वोट बैंक अपने साथ वापस लाने में सफल रही तो गैर यादव अति पिछड़ा ओबीसी वर्ग भी उसके साथ वापस आ सकता है।
अपने आपको मजबूत करने के लिए बसपा ब्राह्मण सम्मेलन दुबारा करने की योजना बना चुकी है। इसकी शुरुआत जल्द ही सतीश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में की जाएगी। इसके अलावा वह मुसलमानों, अति पिछड़ों को अपने साथ वापस लाने पर काम कर रही है।
भाजपा पर क्या पड़ेगा असर
भाजपा सरकारों ने गैर यादव ओबीसी जातियों और गैर जाटव दलित जातियों को साधने का काम बहुत ही प्रभावशाली तरीके से किया है। भाजपा ने इनके मन में यह भाव पैदा करने में सफलता पाई है कि समाजवादी पार्टी का पूरा लाभ यादव समाज के बीच बंट जाता है, जबकि बसपा के मजबूत होने पर यही लाभ जाटव वर्ग ले जाता है और अति पिछड़े ओबीसी वर्ग और गैर जाटव दलितों को कुछ नहीं मिलता है।
भाजपा ने बड़ी ही खूबसूरती से इन वर्गों को अपने पार्टी संगठन से लेकर सरकारों तक में उनकी जातिगत भागीदारी सुनिश्चित की है। इससे भाजपा की स्वीकार्यता हर वर्ग में बढ़ी है। भाजपा की सरकारों ने इन वर्गों तक विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाकर उन्हें अपने मजबूत वोट बैंक के रूप में परिवर्तित कर लिया है। यही वर्ग केंद्र के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में बार-बार भाजपा सरकारों की वापसी का कारण बना है।
लेकिन राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि अति दलित जातियों में 'जातीय पहचान का मुद्दा' इन सभी समीकरणों पर भारी पड़ सकता है। भाजपा को मायावती के मजबूत होने से कितना नुकसान होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मायावती इस वर्ग के बीच अपने मजबूत होने का कितना मजबूत संदेश दे पाती हैं।
भाजपा को कोई नुकसान नहीं- राकेश त्रिपाठी
यूपी भाजपा के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने अमर उजाला से कहा कि बसपा की लखनऊ रैली एक प्रतीकात्मक संदेश से अधिक कुछ नहीं है। दलित समुदाय का मतदाता जानता है कि मायावती अब यूपी की सियासत में बीता हुआ समय हो चुकी हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में केवल अपने लिए काम किया है। उन्होंने कहा कि मोदी-योगी सरकार ने जाति और संप्रदाय के नाम पर राजनीति करने वालों की राजनीति की छुट्टी कर दी है। दलित-अति पिछड़ा मतदाता अब अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए भाजपा की ओर देखता है। उन्होंने कहा कि मायावती जिस राजनीति की प्रतीक हैं, उस राजनीति के दिन अब लद चुके हैं।
सपा के पीडीए समीकरण पर कितना असर...?
उत्तर प्रदेश बसपा के अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने अमर उजाला से कहा कि अखिलेश यादव के 'पीडीए' का अर्थ 'परिवार दल एलायंस' था। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव के सत्ता में रहने पर पूरी सत्ता की बंदरबांट केवल उनके अपने परिवार तक सीमित थी। यादव समाज के लोगों तक भी इसका असर बहुत सीमित रहा। किसी दूसरी जाति का पिछड़ा या दलित सपा सरकार के दरवाजे से अंदर नहीं जा पाया। उन्होंने कहा कि, जबकि निषाद, चौरसिया, राजभर और पाल जैसी दूसरी जातियों के बड़े-बड़े नेता बसपा में रहकर ही मजबूत हुए और अपनी जातियों के बड़े नेता बनकर उभरे।
विश्वनाथ पाल ने कहा कि 2012-2017 में अखिलेश यादव और 2017 के बाद भाजपा की सरकारों ने यह दिखा दिया है कि उनकी सरकारों में यूपी का आम आदमी सुरक्षित नहीं है। सपा के काल में दिनदहाड़े सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं घटती थीं तो आज भी केवल कुछ अपराधियों का एनकाउंटर कर हवा बनाने की कोशिश की जा रही है, जबकि असलियत में आज यूपी में अपराध चरम पर है। उन्होंने कहा कि यूपी में हर जाति के लोग आज भी मायावती के उस दौर को याद करते हैं जब अपराध पर नियंत्रण था और अफसर सही समय पर ऑफिस आ जाते थे। उन्होंने कहा कि जनता मायावती को 2027 में वापस मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है और वे इसके लिए दिन रात काम कर रहे हैं।
मायावती का तिलिस्म बिखर चुका है- सपा
सपा प्रवक्ता मो. आजम खान ने अमर उजाला से कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में ही अखिलेश यादव ने समाज के सभी वर्गों को टिकट देकर यह साफ कर दिया है कि उनके पीडीए में हर जाति-हर वर्ग के लोगों की भागीदारी और सम्मान सुरक्षित है। भाजपा को रोकने के लिए आज हर वर्ग सपा पर भरोसा कर रहा है, जबकि मायावती ने बार-बार यही संदेश दिया है कि वे भाजपा के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अब कोई दलित-पिछड़ा मतदाता उनके साथ जाने के लिए तैयार नहीं है। दलित या मुसलमान बसपा को अपनी पार्टी के रूप में नहीं देख रहा है क्योंकि मायावती भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चुकी हैं।
दलित युवा अब कांग्रेस की ओर देख रहा है- विश्व विजय सिंह
यूपी कांग्रेस के उपाध्यक्ष विश्व विजय सिंह ने अमर उजाला से कहा कि बसपा के राजनीतिक उदय से पहले जाटव-गैर जाटव दलित समाज कांग्रेस का परंपरागत वोटर था। लेकिन जातीय राजनीति के बढ़ते प्रभाव के कारण इस वर्ग का एक हिस्सा मायावती और अन्य लोगों के साथ चला गया। लेकिन दलित युवाओं ने देखा कि बाबा साहब अंबेडकर के जिस आदर्श को लेकर वे चले थे, मायावती जैसे नेताओं ने उसके साथ ही समझौता कर लिया। इससे पूरे दलित आंदोलन को गहरी चोट लगी है।
विश्व विजय सिंह ने कहा कि राहुल गांधी आज हर मंच से जिस तरह संविधान और बाबा साहब अंबेडकर के आदर्शों का मुद्दा उठा रहे हैं, दलित युवा आज उन्हें अपने आदर्श के रूप में देख रहा है। वह समझ रहा है कि यदि संविधान और अंबेडकर का आदर्श कोई सुरक्षित रख सकता है तो वह कांग्रेस और राहुल गांधी ही हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति में दलित अब बसपा की ओर नहीं, कांग्रेस की ओर वापसी करेगा क्योंकि मुसलमान हो या दलित, दोनों ही वर्गों को पता है कि उसके अधिकार की लड़ाई आज केवल कांग्रेस लड़ रही है।