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चिंता: गांवों की हवा अब शहरों जितनी ही जहरीली, तेजी से घट रही उम्र; औसतन 5 साल की जिंदगी छीन रहा प्रदूषण

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: शिव शुक्ला Updated Mon, 27 Oct 2025 05:16 AM IST
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सार

भारत के ग्रामीण इलाके अब गंभीर वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में PM 2.5 का स्तर अब शहरी क्षेत्रों के बराबर हो गया है। साल 2022 में ग्रामीण इलाकों में औसत 46.4 माइक्रोग्राम/घनमीटर, जबकि शहरों में 46.8 माइक्रोग्राम/घनमीटर दर्ज किया गया। यह राष्ट्रीय मानक 40 माइक्रोग्राम से अधिक है।

Concern: Village air is now as toxic as urban air, life expectancy is rapidly declining
सांकेतिक तस्वीर। - फोटो : सांकेतिक तस्वीर
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विस्तार
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भारत के गांवों में अब हवा पहले जैसी नहीं रही। वह धीरे-धीरे जानलेवा होती जा रही है। भारत का ग्रामीण इलाका जिसे अब तक स्वच्छ हवा और सुकून की जमीन माना जाता था, आज वायु प्रदूषण के सबसे गंभीर संकट में घिर चुका है।



नए आंकड़े यह भी कहते हैं कि गांवों में रहने वाले लोग अब शहरों की तुलना में ज्यादा तेजी से अपनी उम्र खो रहे हैं।  सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की  किताब सांसों का आपातकाल ने जो तस्वीर दिखाई है, वह चौंकाने वाली है। इसमें बताया गया है कि क्लाइमेट ट्रेंड्स और आईआईटी -दिल्ली के संयुक्त अध्ययन से सामने आया है कि ग्रामीण भारत में अल्ट्राफाइन पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 2.5 का स्तर अब शहरी भारत के बराबर हो गया है। साल 2022 में ग्रामीण इलाकों में पीएम 2.5 का औसत 46.4 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज किया गया, जबकि शहरों में यह 46.8 माइक्रोग्राम रहा यानी फर्क एकदम नगण्य रहा। राष्ट्रीय मानक 40 माइक्रोग्राम है, जो दोनों ही जगहों पर लगातार टूट रहा है। सीएसई के मुताबिक इस विषैली हवा का सबसे बड़ा असर जीवन प्रत्याशा पर पड़ा है। गांवों में रहने वालों की औसतन 5 साल 2 महीने की जिंदगी वायु प्रदूषण के कारण कम हो रही है, जबकि शहरों में यह 4 साल 5 महीने है। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में यह गिरावट 8 साल से भी ज्यादा है, जबकि बिहार और हरियाणा के गांवों में औसतन 7 साल की उम्र कम हो रही है।
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62% लोग किसी भी प्रकार की वायु गुणवत्ता अलर्ट से वंचित
 भारत में लगभग 62 प्रतिशत लोग किसी भी प्रकार के वायु गुणवत्ता अलर्ट से वंचित हैं। ग्रामीण भारत में पीएम 2.5 का स्तर शहरी औसत से सिर्फ 0.4 माइक्रोग्राम कम। वायु प्रदूषण से महिलाओं की मृत्यु दर शहरी पुरुषों से कई गुना अधिक है।

कृषि अवशेषों का जलना मुख्य कारण
किताब के अनुसार ग्रामीण भारत में प्रदूषण का मुख्य कारण है ठोस ईंधन का प्रयोग, कृषि अवशेषों का जलाना, धूल और ईंट-भट्ठों का धुआं। यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के अध्ययन में पाया गया कि गांवों के घरों में इस्तेमाल होने वाले गोबर के कंडे और लकड़ी के चूल्हे न केवल महिलाओं के फेफड़ों को जला रहे हैं, बल्कि दो साल से छोटे बच्चों के मस्तिष्क के विकास को भी प्रभावित कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के शिवगढ़ गांव में किए गए शोध में पाया गया कि जिन घरों में ठोस ईंधन का उपयोग होता था, वहां बच्चों की विजुअल मेमोरी और प्रोसेसिंग स्पीड कम थी।

सीएसई की वरिष्ठ निदेशक अनुता राय चौधरी के शब्दों में, यह संकट अब केवल शहरों का नहीं, बल्कि गांवों की चौपालों तक पहुंच चुका है। महिलाएं चूल्हे की धुआं भरी रसोई में संघर्ष कर रही हैं, बच्चे जन्म से पहले ही प्रदूषण की मार झेल रहे हैं और सरकार के पास गांवों की हवा को मापने का कोई पुख्ता तंत्र ही नहीं।

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