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SC: 'विवाहघर बनाने के लिए श्रद्धालु मंदिरों को दान नहीं देते', सुप्रीम कोर्ट की तमिलनाडु सरकार को फटकार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: बशु जैन
Updated Tue, 16 Sep 2025 04:35 PM IST
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सार
तमिलनाडु के मंत्री ने विधानसभा में बजट भाषण के दौरान 80 करोड़ रुपये की मंदिर निधि खर्च करके 27 मंदिरों में विवाह हॉल के निर्माण की घोषणा की थी। इस सरकारी आदेश को मद्रास हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर आपत्ति जताई है।

सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के दान से विवाहघर बनाने को लेकर तमिलनाडु सरकार को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि श्रद्धालु विवाह घर बनाने के लिए मंदिरों में दान नहीं देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि मंदिर के धन को सार्वजनिक या सरकारी धन नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने भी तमिलनाडु में विभिन्न स्थानों पर पांच मंदिरों के धन से विवाह हॉल के निर्माण की अनुमति देने वाले सरकारी आदेश को रद्द कर दिया था।
मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि भक्त इन विवाह हॉलों की स्थापना के लिए मंदिर को अपना धन नहीं देते हैं। यह मंदिर के सुधार के लिए हो सकता है। अगर मंदिर परिसर में विवाह समारोह चल रहा है और अश्लील गाने बजाए जा रहे हैं, तो क्या मंदिर की भूमि का यही उद्देश्य है? शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि इस धन का उपयोग शिक्षा जैसे धर्मार्थ कार्यों और चिकित्सा संस्थानों के लिए किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि मुद्दा यह है कि सरकार द्वारा लिया गया निर्णय सही था या गलत। इसके बाद कोर्ट ने चुनौती पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए मामले की सुनवाई 19 नवंबर के लिए स्थगित कर दी। पीठ ने कहा कि हम इस मामले पर सुनवाई करेंगे। हम याचिकाकर्ताओं को कोई स्थगन आदेश नहीं दे रहे हैं।
मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला मंदिर निधि से विवाह हॉल के निर्माण की अनुमति देने वाले सरकारी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आया। हाईकोर्ट ने 19 अगस्त के अपने आदेश में कहा था कि विवाह समारोहों के लिए किराये पर विवाह हॉल बनाने का सरकार का निर्णय धार्मिक उद्देश्यों की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता।
सरकारी आदेश में क्या कहा गया
सरकारी आदेश में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के मंत्री के बयान का खुलासा किया गया है। उन्होंने विधानसभा में बजट भाषण के दौरान 80 करोड़ रुपये की मंदिर निधि खर्च करके 27 मंदिरों में विवाह हॉल के निर्माण की घोषणा की थी। इस हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम और उसके नियमों के प्रावधानों के तहत सरकार को विवाह हॉल के निर्माण के लिए मंदिर के धन या अधिशेष धन का उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है।
याचिका में कहा गया कि मंदिर का धन व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए नहीं है और ये सरकारी आदेश तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1959 की धारा 35, 36 और 66 का उल्लंघन है। वहीं राज्य के वकील ने उच्च न्यायालय को बताया कि हिंदू विवाह एक धार्मिक गतिविधि है। हिंदुओं को कम खर्च में विवाह संपन्न कराने में सहायता करने के लिए सरकार ने विवाह हॉल बनाने का निर्णय लिया।

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मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि भक्त इन विवाह हॉलों की स्थापना के लिए मंदिर को अपना धन नहीं देते हैं। यह मंदिर के सुधार के लिए हो सकता है। अगर मंदिर परिसर में विवाह समारोह चल रहा है और अश्लील गाने बजाए जा रहे हैं, तो क्या मंदिर की भूमि का यही उद्देश्य है? शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि इस धन का उपयोग शिक्षा जैसे धर्मार्थ कार्यों और चिकित्सा संस्थानों के लिए किया जाना चाहिए।
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पीठ ने कहा कि मुद्दा यह है कि सरकार द्वारा लिया गया निर्णय सही था या गलत। इसके बाद कोर्ट ने चुनौती पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए मामले की सुनवाई 19 नवंबर के लिए स्थगित कर दी। पीठ ने कहा कि हम इस मामले पर सुनवाई करेंगे। हम याचिकाकर्ताओं को कोई स्थगन आदेश नहीं दे रहे हैं।
मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला मंदिर निधि से विवाह हॉल के निर्माण की अनुमति देने वाले सरकारी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आया। हाईकोर्ट ने 19 अगस्त के अपने आदेश में कहा था कि विवाह समारोहों के लिए किराये पर विवाह हॉल बनाने का सरकार का निर्णय धार्मिक उद्देश्यों की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता।
सरकारी आदेश में क्या कहा गया
सरकारी आदेश में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के मंत्री के बयान का खुलासा किया गया है। उन्होंने विधानसभा में बजट भाषण के दौरान 80 करोड़ रुपये की मंदिर निधि खर्च करके 27 मंदिरों में विवाह हॉल के निर्माण की घोषणा की थी। इस हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम और उसके नियमों के प्रावधानों के तहत सरकार को विवाह हॉल के निर्माण के लिए मंदिर के धन या अधिशेष धन का उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है।
याचिका में कहा गया कि मंदिर का धन व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए नहीं है और ये सरकारी आदेश तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1959 की धारा 35, 36 और 66 का उल्लंघन है। वहीं राज्य के वकील ने उच्च न्यायालय को बताया कि हिंदू विवाह एक धार्मिक गतिविधि है। हिंदुओं को कम खर्च में विवाह संपन्न कराने में सहायता करने के लिए सरकार ने विवाह हॉल बनाने का निर्णय लिया।