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OPS Vs UPS: यूपीएस लेने को राजी नहीं कर्मचारी, 24 लाख NPS कर्मियों में से महज 97 हजार ने चुना यूपीएस का विकल्प
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सार
केंद्र सरकार की पेंशन योजना 'यूपीएस' को लेकर कर्मचारी, ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रहे। इस वर्ष एक अप्रैल से यूपीएस को लागू किया गया था। प्रारंभ में एनपीएस वाले केंद्रीय कर्मियों को 30 जून तक यूपीएस का विकल्प चुनने का समय दिया गया। नतीजे, उत्साहवर्धक नहीं रहे, इसलिए सरकार ने आखिरी तिथि को 30 सितंबर तक बढ़ा दिया। वित्त राज्य मंत्री ने 28 जुलाई को लोकसभा में बताया था कि 20 जुलाई तक 31,555 कर्मचारियों ने ही यूपीएस को चुना है।

एनपीएस और यूपीएस?
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई 'एकीकृत पेंशन योजना' (यूपीएस) में शामिल होने का विकल्प देने की आखिरी तिथि, जो पहले 30 सितंबर थी, उसे आगे दो माह के लिए बढ़ाया गया था। यानी आखिरी तारीख 30 नवंबर कर दी गई। इसके बावजूद केंद्रीय कर्मचारी, यूपीएस में आने के लिए राजी नहीं हैं। कर्मचारी संगठन, पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे हैं।
'पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी' (पीएफआरडीए) ने 22 अक्तूबर को आरटीआई के जवाब में बताया है कि 14 अक्तूबर तक 24 लाख एनपीएस कर्मियों में से मात्र 97094 ने यूपीएस का विकल्प चुना है। दूसरी तरफ केंद्र एवं राज्यों के कर्मचारी संगठनों ने पुरानी पेंशन बहाली के संघर्ष को तेज कर दिया है। 'नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत' के बैनर तले ओपीएस बहाली के लिए आगामी 9 नवंबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर बड़ी रैली आयोजित होगी। 'एनएमओपीएस' के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु 25 नवंबर को दिल्ली में ओपीएस बहाली की मांग को लेकर एक विशाल रैली करने जा रहे हैं। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ के महासचिव सी. श्रीकुमार भी इस मुद्दे पर लगातार मुखर हैं।
केंद्र सरकार की पेंशन योजना 'यूपीएस' को लेकर कर्मचारी, ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रहे। इस वर्ष एक अप्रैल से यूपीएस को लागू किया गया था। प्रारंभ में एनपीएस वाले केंद्रीय कर्मियों को 30 जून तक यूपीएस का विकल्प चुनने का समय दिया गया। नतीजे, उत्साहवर्धक नहीं रहे, इसलिए सरकार ने आखिरी तिथि को 30 सितंबर तक बढ़ा दिया। वित्त राज्य मंत्री ने 28 जुलाई को लोकसभा में बताया था कि 20 जुलाई तक 31,555 कर्मचारियों ने ही यूपीएस को चुना है। यह आंकड़ा, कुल पात्र केंद्रीय कर्मचारियों का सिर्फ 1.37 प्रतिशत रहा। आरटीआई से पता चला है कि 24 सितंबर तक महज 70670 केंद्रीय कर्मचारियों ने यूपीएस में शामिल होने का विकल्प प्रदान किया है। इनमें सिविल डिपार्टमेंट के 21366, डाक विभाग के 9996, टेलीकॉम के 130, रेलवे के 18024 और डिफेंस सिविल सेक्टर के 7058 कर्मचारियों ने यूपीएस का विकल्प चुना। इसके बाद यूपीएस चुनने की आखिरी तिथि 30 नवंबर तक बढ़ा दी गई।
अब दोबारा से आरटीआई लगाई गई, जिसका जवाब 22 अक्तूबर को मिला है। उसमें बताया गया है कि 30 सितंबर तक पीएफआरडीए का डेटा बताता है कि केंद्र सरकार में 2466314 कर्मचारी एनपीएस में शामिल हैं। उक्त तिथि तक 97094 कर्मचारी, यूपीएस में शामिल हुए हैं। इनमें सिविल डिपार्टमेंट के 38569, डाक विभाग के 18503, टेलीकॉम के 349, रेलवे के 28529 और डिफेंस सिविल सेक्टर के 11144 कर्मचारियों ने यूपीएस का विकल्प चुना है।
अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ के महासचिव सी. श्रीकुमार कहते हैं कि सरकार ने यूपीएस को एक वैकल्पिक अंशदायी पेंशन मॉडल के रूप में पेश किया था। इसमें शामिल होने की समय सीमा को सरकार, दो बार बढ़ा चुकी है। अब नवीनतम अंतिम तिथि 30 नवंबर, 2025 है। अगस्त 2024 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से यूपीएस शुरू करने के कैबिनेट के फैसले की घोषणा की थी। उन्होंने आश्वासन दिया कि यह केंद्र सरकार के कर्मचारियों की लंबे समय से चली आ रही मांगों को पूरा करेगा। यह घोषणा कर्मचारी नेताओं की उपस्थिति में की गई, जिन्होंने इस फैसले का स्वागत किया और प्रधानमंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया।
हालांकि, अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ ने बैठक का बहिष्कार किया था। एआईडीईएफ के पदाधिकारियों का कहना था कि उनकी मांग एनपीएस में किसी संशोधन की नहीं है, बल्कि गैर-अंशदायी और वैधानिक पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की पूर्ण बहाली की है। अब ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश कर्मचारी एआईडीईएफ के रुख के साथ हैं। व्यापक सरकारी अभियानों और विभिन्न क्षेत्रों से यूपीएस के समर्थन के बावजूद, कर्मचारियों ने नई योजना में बदलाव को भारी बहुमत से अस्वीकार कर दिया है। सरकार को कर्मचारियों के फैसले का सम्मान करना चाहिए।
कर्मचारियों ने यूपीएस में जाने की स्पष्ट अनिच्छा व्यक्त की है। एकमात्र उचित समाधान, पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करना है। आरटीआई के आंकड़ों के अनुसार, अर्धसैनिक बलों सहित लगभग 35 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारियों में से, लगभग 27 लाख कर्मचारी वर्तमान में एनपीएस के अंतर्गत हैं। सशस्त्र बलों में लगभग 12 लाख कार्मिक शामिल हैं, जिन्हें एनपीएस से छूट दी गई है। कर्मचारियों का तर्क है कि एनपीएस की तुलना में यूपीएस में कोई खास लाभ नहीं है। श्रीकुमार के मुताबिक, यूपीएस के तहत, पेंशन का भुगतान संचित पेंशन राशि से होता रहता है, लेकिन इस राशि का 90% हिस्सा सरकार द्वारा रोक लिया जाता है। उसे कर्मचारी या उनके आश्रितों को वापस नहीं किया जाता।
श्रीकुमार ने कहा, यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानूनी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जिसने स्पष्ट रूप से कहा है कि पेंशन कर्मचारी की संपत्ति है, एक आस्थगित वेतन है, और कड़ी मेहनत से अर्जित अधिकार है। केंद्र सरकार के कर्मचारी, जो केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों के अंतर्गत आते हैं, को ईमानदारी बनाए रखनी होती है। उन्हें हर समय सरकारी सेवा के लिए उपलब्ध रहना होता है। उनका तर्क है कि इसलिए, उनके वेतन से कटौती किए बिना पेंशन प्रदान करना सरकार का कानूनी और नैतिक दायित्व है। हम सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से योग्यता के आधार पर भर्ती हुए थे, ऐसे में हमें पेंशन से वंचित क्यों रखा गया है।
कर्मचारी नेता ने सवाल किया कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को गैर-अंशदायी पेंशन मिलती है, लेकिन हमें क्यों नहीं। उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पूरी पेंशन मिलती है, केंद्र सरकार के कर्मचारियों को क्यों नहीं। सशस्त्र बलों को एनपीएस से छूट दी गई है, नागरिक कर्मचारियों को इससे बाहर क्यों रखा गया है। अब तक, सरकार ने इन वैध प्रश्नों का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया है। सी. श्रीकुमार ने अपने स्वयं के कार्यबल के प्रति सरकार के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा, सरकार से एक आदर्श नियोक्ता होने की अपेक्षा की जाती है। इसके बजाय, वह तेजी से कॉर्पोरेट-शैली की प्रथाओं को अपना रही है। आउटसोर्सिंग, संविदा पर भर्ती, निश्चित अवधि के रोजगार और जनशक्ति में कटौती की जा रही है, जबकि ट्रेड यूनियनों के साथ बातचीत करने से सरकार बच रही है। यह बात कर्मचारियों की सुरक्षा और मनोबल को कम कर रहे हैं।
केंद्रीय कर्मचारी संगठन, 'कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स' के महासचिव एसबी यादव ने बताया, सरकार को पुरानी पेंशन बहाली सहित दूसरी मांगें माननी पड़ेंगी। सरकार ने कर्मियों के हितों की तरफ ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में केंद्रीय कर्मचारी संगठन, कोई भी कठोर निर्णय ले सकते हैं। सरकार को अंशदायी एनपीएस और यूपीएस, ये दोनों योजनाएं वापस लेनी पड़ेंगी। पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना होगा। यादव ने कहा, सरकार ने यूपीएस को जबरदस्ती कर्मचारियों पर थोपा है।

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'पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी' (पीएफआरडीए) ने 22 अक्तूबर को आरटीआई के जवाब में बताया है कि 14 अक्तूबर तक 24 लाख एनपीएस कर्मियों में से मात्र 97094 ने यूपीएस का विकल्प चुना है। दूसरी तरफ केंद्र एवं राज्यों के कर्मचारी संगठनों ने पुरानी पेंशन बहाली के संघर्ष को तेज कर दिया है। 'नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत' के बैनर तले ओपीएस बहाली के लिए आगामी 9 नवंबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर बड़ी रैली आयोजित होगी। 'एनएमओपीएस' के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु 25 नवंबर को दिल्ली में ओपीएस बहाली की मांग को लेकर एक विशाल रैली करने जा रहे हैं। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ के महासचिव सी. श्रीकुमार भी इस मुद्दे पर लगातार मुखर हैं।
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केंद्र सरकार की पेंशन योजना 'यूपीएस' को लेकर कर्मचारी, ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रहे। इस वर्ष एक अप्रैल से यूपीएस को लागू किया गया था। प्रारंभ में एनपीएस वाले केंद्रीय कर्मियों को 30 जून तक यूपीएस का विकल्प चुनने का समय दिया गया। नतीजे, उत्साहवर्धक नहीं रहे, इसलिए सरकार ने आखिरी तिथि को 30 सितंबर तक बढ़ा दिया। वित्त राज्य मंत्री ने 28 जुलाई को लोकसभा में बताया था कि 20 जुलाई तक 31,555 कर्मचारियों ने ही यूपीएस को चुना है। यह आंकड़ा, कुल पात्र केंद्रीय कर्मचारियों का सिर्फ 1.37 प्रतिशत रहा। आरटीआई से पता चला है कि 24 सितंबर तक महज 70670 केंद्रीय कर्मचारियों ने यूपीएस में शामिल होने का विकल्प प्रदान किया है। इनमें सिविल डिपार्टमेंट के 21366, डाक विभाग के 9996, टेलीकॉम के 130, रेलवे के 18024 और डिफेंस सिविल सेक्टर के 7058 कर्मचारियों ने यूपीएस का विकल्प चुना। इसके बाद यूपीएस चुनने की आखिरी तिथि 30 नवंबर तक बढ़ा दी गई।
अब दोबारा से आरटीआई लगाई गई, जिसका जवाब 22 अक्तूबर को मिला है। उसमें बताया गया है कि 30 सितंबर तक पीएफआरडीए का डेटा बताता है कि केंद्र सरकार में 2466314 कर्मचारी एनपीएस में शामिल हैं। उक्त तिथि तक 97094 कर्मचारी, यूपीएस में शामिल हुए हैं। इनमें सिविल डिपार्टमेंट के 38569, डाक विभाग के 18503, टेलीकॉम के 349, रेलवे के 28529 और डिफेंस सिविल सेक्टर के 11144 कर्मचारियों ने यूपीएस का विकल्प चुना है।
अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ के महासचिव सी. श्रीकुमार कहते हैं कि सरकार ने यूपीएस को एक वैकल्पिक अंशदायी पेंशन मॉडल के रूप में पेश किया था। इसमें शामिल होने की समय सीमा को सरकार, दो बार बढ़ा चुकी है। अब नवीनतम अंतिम तिथि 30 नवंबर, 2025 है। अगस्त 2024 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से यूपीएस शुरू करने के कैबिनेट के फैसले की घोषणा की थी। उन्होंने आश्वासन दिया कि यह केंद्र सरकार के कर्मचारियों की लंबे समय से चली आ रही मांगों को पूरा करेगा। यह घोषणा कर्मचारी नेताओं की उपस्थिति में की गई, जिन्होंने इस फैसले का स्वागत किया और प्रधानमंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया।
हालांकि, अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ ने बैठक का बहिष्कार किया था। एआईडीईएफ के पदाधिकारियों का कहना था कि उनकी मांग एनपीएस में किसी संशोधन की नहीं है, बल्कि गैर-अंशदायी और वैधानिक पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की पूर्ण बहाली की है। अब ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश कर्मचारी एआईडीईएफ के रुख के साथ हैं। व्यापक सरकारी अभियानों और विभिन्न क्षेत्रों से यूपीएस के समर्थन के बावजूद, कर्मचारियों ने नई योजना में बदलाव को भारी बहुमत से अस्वीकार कर दिया है। सरकार को कर्मचारियों के फैसले का सम्मान करना चाहिए।
कर्मचारियों ने यूपीएस में जाने की स्पष्ट अनिच्छा व्यक्त की है। एकमात्र उचित समाधान, पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करना है। आरटीआई के आंकड़ों के अनुसार, अर्धसैनिक बलों सहित लगभग 35 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारियों में से, लगभग 27 लाख कर्मचारी वर्तमान में एनपीएस के अंतर्गत हैं। सशस्त्र बलों में लगभग 12 लाख कार्मिक शामिल हैं, जिन्हें एनपीएस से छूट दी गई है। कर्मचारियों का तर्क है कि एनपीएस की तुलना में यूपीएस में कोई खास लाभ नहीं है। श्रीकुमार के मुताबिक, यूपीएस के तहत, पेंशन का भुगतान संचित पेंशन राशि से होता रहता है, लेकिन इस राशि का 90% हिस्सा सरकार द्वारा रोक लिया जाता है। उसे कर्मचारी या उनके आश्रितों को वापस नहीं किया जाता।
श्रीकुमार ने कहा, यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानूनी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जिसने स्पष्ट रूप से कहा है कि पेंशन कर्मचारी की संपत्ति है, एक आस्थगित वेतन है, और कड़ी मेहनत से अर्जित अधिकार है। केंद्र सरकार के कर्मचारी, जो केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों के अंतर्गत आते हैं, को ईमानदारी बनाए रखनी होती है। उन्हें हर समय सरकारी सेवा के लिए उपलब्ध रहना होता है। उनका तर्क है कि इसलिए, उनके वेतन से कटौती किए बिना पेंशन प्रदान करना सरकार का कानूनी और नैतिक दायित्व है। हम सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से योग्यता के आधार पर भर्ती हुए थे, ऐसे में हमें पेंशन से वंचित क्यों रखा गया है।
कर्मचारी नेता ने सवाल किया कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को गैर-अंशदायी पेंशन मिलती है, लेकिन हमें क्यों नहीं। उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पूरी पेंशन मिलती है, केंद्र सरकार के कर्मचारियों को क्यों नहीं। सशस्त्र बलों को एनपीएस से छूट दी गई है, नागरिक कर्मचारियों को इससे बाहर क्यों रखा गया है। अब तक, सरकार ने इन वैध प्रश्नों का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया है। सी. श्रीकुमार ने अपने स्वयं के कार्यबल के प्रति सरकार के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा, सरकार से एक आदर्श नियोक्ता होने की अपेक्षा की जाती है। इसके बजाय, वह तेजी से कॉर्पोरेट-शैली की प्रथाओं को अपना रही है। आउटसोर्सिंग, संविदा पर भर्ती, निश्चित अवधि के रोजगार और जनशक्ति में कटौती की जा रही है, जबकि ट्रेड यूनियनों के साथ बातचीत करने से सरकार बच रही है। यह बात कर्मचारियों की सुरक्षा और मनोबल को कम कर रहे हैं।
केंद्रीय कर्मचारी संगठन, 'कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स' के महासचिव एसबी यादव ने बताया, सरकार को पुरानी पेंशन बहाली सहित दूसरी मांगें माननी पड़ेंगी। सरकार ने कर्मियों के हितों की तरफ ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में केंद्रीय कर्मचारी संगठन, कोई भी कठोर निर्णय ले सकते हैं। सरकार को अंशदायी एनपीएस और यूपीएस, ये दोनों योजनाएं वापस लेनी पड़ेंगी। पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना होगा। यादव ने कहा, सरकार ने यूपीएस को जबरदस्ती कर्मचारियों पर थोपा है।