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Nipah Virus: निपाह से लड़ने के लिए भारत में बनेंगी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, हर सप्ताह तैयार होंगी एक लाख खुराक

परीक्षित निर्भय, नई दिल्ली Published by: शिवम गर्ग Updated Fri, 31 Oct 2025 04:49 AM IST
सार

भारत निपाह वायरस से लड़ाई में बड़ी उपलब्धि की ओर बढ़ रहा है। आईसीएमआर ने घोषणा की है कि देश में अब स्वदेशी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का उत्पादन किया जाएगा। हर सप्ताह एक लाख खुराक तैयार की जाएगी।

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India to Produce Indigenous Monoclonal Antibodies Against Nipah Virus; 1 Lakh Doses to Be Made Every Week
निपाह वायरस - फोटो : एएनआई
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विस्तार
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बार-बार लौट रहे निपाह वायरस के खिलाफ जल्द ही भारत में स्वदेशी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी बनेगीं। देश के अलग-अलग हिस्सों में हर सप्ताह एक लाख खुराक बनेगी, जो कोरोना से भी ज्यादा घातक निपाह संक्रमण को कमजोर करने में सक्षम हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) नई दिल्ली ने मोनोक्लोनल एंटीबॉडी बनाने के लिए साझेदारों से आवेदन मांगा है।



पुणे स्थित आईसीएमआर-नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिकों नै खोज के बाद बीएसएल-4 स्तर की प्रयोगशाला में निपाह के खिलाफ स्वदेशी, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी तैयार की है। दरअसल निपाह वायरस भारत के लिए गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है। जुलाई 2025 तक, केरल में कुल नौ मामलों की सूचना मिली है। आईसीएमआर के मुताबिक, देश में पहली बार यह संक्रमण 2001 में सिलीगुड़ी (प. बंगाल) में दर्ज हुआ और इसके बाद 2007 में नादिया में भी मामले सामने आए। 2018 में 23 लोग संक्रमित मिले, जिनमें 91% ने दम तोड़ दिया। इसके बाद आईसीएमआर की शर्तों के अनुसार, साझेदार कंपनियों के पास ऐसी क्षमता होनी चाहिए कि वे हर सप्ताह कम से कम एक लाख एक लाख खुराक खुराक का उत्पादन कर सकें और 400-500 खुराक आपातकालीन उपयोग के लिए भंडारित रखें।
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2019 में एक मरीज मिला लेकिन 2023 में दो मौत सहित छह मामले सामने आए। इसके बाद 2024 में दो मामले मिले। आईसीएमआर का कहना है कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ऐसी विशेष प्रोटीन अणु होते हैं जो वायरस के विशिष्ट हिस्से को निशाना बनाकर संक्रमण को रोकते हैं। निपाह वायरस के लिए अभी कोई टीका या दवा मौजूद नहीं है। ऐसे में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को सबसे प्रभावी जैव-चिकित्सीय उपाय माना जा रहा है।

भारत में इसका प्रभाव
निपाह वायरस जानवरों से इंसानों में फैलता है। इसलिए यह एक जूनोटिक वायरस है। इसका प्राकृतिक वाहक फल्न खाने वाले चमगादड़ होते हैं। इसका संक्रमण आमतौर पर संक्रमित चमगादड़ों या उनके मल-मूत्र से दूषित फलों के सेवन, संक्रमित पशुओं (जैसे सूअर) या संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क से फैलता है। कोरोना की तुलना में यह इसलिए ज्यादा घातक है क्योंकि निपाह की चपेट में आने वाले 75% को बचाया नहीं जा सका। निपाह संक्रमण की मृत्यु 40 से 75% तक होती है जो इसे सबसे घातक वायरल बीमारियों में शामिल करती है।

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