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अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में तैनात 2.70 लाख जवानों का क्या हाल है

जितेंद्र भारद्वाज, नई दिल्ली Published by: अमर शर्मा Updated Thu, 08 Aug 2019 07:56 PM IST
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internet services suspended in kashmir security forces not connected to family article 370 scrapped
कश्मीर मे तैनात सुरक्षाकर्मी - फोटो : PTI
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जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में नई सुबह हो चुकी है। ये दोनों अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गए हैं। सुरक्षा को देखें तो वहां कर्फ्यू से भी सख्त 'धारा 144' लगी है। फोन सेवा और इंटरनेट, सब बंद हैं। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान की ओर से तरह-तरह की धमकियां आ रही हैं। बॉर्डर पर तनाव देखा जा रहा है। कश्मीरी जनता अभी घरों से बाहर नहीं निकली है। इन सबके बीच एक ऐसा वर्ग भी है जो अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा होने से तीन दिन पहले और उसके बाद यानी अभी तक (एक सप्ताह से) उनका अपने परिजनों से संपर्क कटा हुआ है। जम्मू-कश्मीर में फोन और इंटरनेट सेवा बंद होने के कारण सेना, अर्धसैनिक बल और जेएंडके पुलिस के 2.70 लाख जवान अपने परिवार से बात नहीं कर पा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में संचार सेवा के नाम पर केवल आठ सौ सेटेलाइट फोन चल रहे हैं। ये फोन सुरक्षा बलों के अधिकारियों और सिविल प्रशासन के पास हैं। घाटी में करीब 180 मोबाइल टावर तो पूरी तरह बंद हैं।

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बता दें कि जम्मू-कश्मीर में बॉर्डर एरिया को मिलाकर मौजूदा वक्त में करीब 2 लाख 70 हजार से अधिक जवान तैनात हैं। इनमें सेना की दो डिवीजन को मिलाकर करीब 50 हजार सैनिक, 30 हजार अन्य जवान, एक लाख से ज्यादा अर्धसैनिक बल और जम्मू-कश्मीर पुलिस के 90 हजार से अधिक कर्मी तैनात हैं। पिछले शुक्रवार से ही जेएंडके के अधिकांश इलाकों में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया था। केवल सुरक्षा बलों और सिविल प्रशासन के कुछ अधिकारियों को सेटेलाइट फोन प्रदान किए गए हैं। इनमें से अधिकांश फोन की सर्विलांस आर्मी व अर्धसैनिक बलों के पास है। 
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जम्मू में बीएसएनएल के एक अधिकारी के मुताबिक, सरकार का आदेश है कि जेएंडके में किसी भी दूरसंचार कंपनी के मोबाइल टावर पर आगामी आदेशों तक फोन रेंज शुरु न की जाए। खासतौर से गांदरबल, बांदीपोरा, बारामुला, पुलवामा और कुलगाम आदि इलाकों में लगे 156 मोबाइल टावर का बिजली कनेक्शन हटा दिया गया है। वहां सुरक्षा कर्मी तैनात हैं। जनरेटर सेट चालू करने की इजाजत नहीं है। राजौरी, कश्मीर, बनिहाल, अनंतनाग, शोपियां, बडगांव और कुपवाड़ा में भी यही हाल है। इन इलाकों में बीएसएनएल के अलावा प्राइवेट दूरसंचार कंपनियों के टावर भी लगे हैं। 

जवानों के परिजनों की नजरें टीवी पर लगी रहती हैं

जवानों का कहना है कि एक सप्ताह से हम घर पर बात नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली स्थित अर्धसैनिक बल के मुख्यालय से जब कश्मीर में तैनात एक अधिकारी से बातचीत की गई तो उन्होंने यह दिक्कत स्वीकार की है। उनका कहना था कि जवानों की एक कंपनी में मुश्किल से दो सेटेलाइट फोन हैं। इनमें एक फोन कमांडर के पास तो दूसरा फोन उनसे जूनियर अधिकारी अपने साथ रखता है। जवानों की ड्यूटी में कब कौन सा बदलाव होना है, ये सब जानकारी इसी फोन पर आती है। जम्मू क्षेत्र में तैनात जवानों के बाबत उन्होंने कहा, वहां कुछ इलाकों में टावर काम कर रहे हैं, लेकिन उनकी रेंज बिल्कुल कम कर दी गई है। अगर कोई फोन मिलाता है तो कम से कम उसे 18-20 प्रयास करने पड़ते हैं। अगर फोन मिल जाए तो यह पता नहीं होता कि बातचीत कब तक होगी। 


नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर पर तैनात जवानों के पास पहले से ही सेटेलाइट फोन हैं, लेकिन अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद उन्हें फोन करने की इजाजत नहीं दी जा रही है। अगर कोई ज्यादा इमरजेंसी होती है तो वह जवान अपने सीनियर के सामने दो मिनट के लिए बातचीत कर सकता है। जवानों का कहना है कि पहले वे ड्यूटी खत्म होने के बाद व्हाट्सएप पर परिवार का हाल जान लेते थे। अब इंटरनेट बंद होने के कारण व्हाट्सएप का इस्तेमाल भी संभव नहीं है। अगर किसी जवान की अपने घर बात होती है तो सामने से एक ही जवाब मिलता है कि हमारी नजरें टीवी पर लगी रहती हैं कि जम्मू-कश्मीर में क्या हो रहा है। जब वहां जवानों का वीडियो या फोटो दिखता है तो परिजन उसे गौर से देखते हैं कि उनका अपना कोई नजर आ जाए।

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