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Jaishankar: 'आतंक के पीड़ित और गुनहगार एक नहीं...', जयशंकर ने पाकिस्तान पर साधा निशाना; UN पर भी कही ये बात
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Fri, 24 Oct 2025 04:12 PM IST
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सार
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ पर कहा कि आतंकवाद के पीड़ित और गुनहगार समान नहीं हो सकते। उन्होंने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा कि जब एक सदस्य देश आतंकियों की रक्षा करता है, तो यह बहुपक्षीयता की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक
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विस्तार
संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को पाकिस्तान पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के पीड़ितों और गुनहगारों को एक तराजू में तोलना न केवल अन्याय है, बल्कि वैश्विक व्यवस्था के लिए खतरा भी है। जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की निष्क्रियता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब कोई सदस्य देश आतंकवादियों की रक्षा करता है, तब बहुपक्षीयता की विश्वसनीयता पर गंभीर आंच आती है।
जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान कार्यप्रणाली जमाव की स्थिति में है और सुधार की प्रक्रिया खुद ही सुधार के रास्ते में बाधा बन चुकी है। उन्होंने कहा कि जब पहलगाम जैसे जघन्य आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेने वाले संगठन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक सदस्य देश खुलकर बचाता है, तो यह संस्था की विश्वसनीयता पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। यह सीधा संकेत पाकिस्तान की ओर था, जिसने आतंकवादी संगठन टीआरएफ के नाम को यूएनएससी बयान से हटाने की कोशिश की थी।
पाकिस्तान की भूमिका और जयशंकर की प्रतिक्रिया
विदेश मंत्री ने कहा कि अगर आतंकवाद के पीड़ितों और गुनहगारों को वैश्विक रणनीति के नाम पर बराबरी पर रखा जा रहा है, तो यह दुनिया की सबसे बड़ी विडंबना है। उन्होंने आगे यह भी जोड़ा कि जब खुद-घोषित आतंकियों को प्रतिबंध सूची में शामिल होने से बचाया जाता है, तो यह साफ हो जाता है कि कुछ देश आतंकवाद के खिलाफ सच्चे नहीं हैं। जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे रवैये से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है और वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था कमजोर होती है।
ये भी पढ़ें- पीएम मोदी ने बोले- राजद-कांग्रेस ने बिहार के भविष्य को अधर में लटकाया, इनसे सावधान रहें
जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की बहसें अब अत्यधिक ध्रुवीकृत हो गई हैं और उसकी कार्यप्रणाली स्पष्ट रूप से जाम हो गई है। किसी भी सार्थक सुधार को सुधार प्रक्रिया के नाम पर ही रोका जा रहा है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना केवल ‘औपचारिकता’ बनकर रह गया है, जबकि विकास और आर्थिक प्रगति का संकट और गहराता जा रहा है।
ये भी पढ़ें- 60 दवाओं के सैंपल फेल, 52 मानक के नीचे... लैब रिपोर्ट से खुले फार्मा कंपनियों के काले कारनामे
जयशंकर की उम्मीद और संदेश
फिर भी जयशंकर ने कहा कि इतने बड़े अवसर पर हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र चाहे कितना भी त्रुटिपूर्ण क्यों न हो, इस कठिन समय में इसे मजबूत बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि एसडीजी एजेंडा 2030 की धीमी प्रगति यह दर्शाती है कि ग्लोबल साउथ कितनी गंभीर स्थिति में है। व्यापार, सप्लाई चेन निर्भरता और राजनीतिक नियंत्रण जैसे कई क्षेत्र संकट में हैं, और इन्हें संतुलित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को खुद को पुनर्गठित करना ही होगा।
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जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान कार्यप्रणाली जमाव की स्थिति में है और सुधार की प्रक्रिया खुद ही सुधार के रास्ते में बाधा बन चुकी है। उन्होंने कहा कि जब पहलगाम जैसे जघन्य आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेने वाले संगठन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक सदस्य देश खुलकर बचाता है, तो यह संस्था की विश्वसनीयता पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। यह सीधा संकेत पाकिस्तान की ओर था, जिसने आतंकवादी संगठन टीआरएफ के नाम को यूएनएससी बयान से हटाने की कोशिश की थी।
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पाकिस्तान की भूमिका और जयशंकर की प्रतिक्रिया
विदेश मंत्री ने कहा कि अगर आतंकवाद के पीड़ितों और गुनहगारों को वैश्विक रणनीति के नाम पर बराबरी पर रखा जा रहा है, तो यह दुनिया की सबसे बड़ी विडंबना है। उन्होंने आगे यह भी जोड़ा कि जब खुद-घोषित आतंकियों को प्रतिबंध सूची में शामिल होने से बचाया जाता है, तो यह साफ हो जाता है कि कुछ देश आतंकवाद के खिलाफ सच्चे नहीं हैं। जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे रवैये से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है और वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था कमजोर होती है।
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जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की बहसें अब अत्यधिक ध्रुवीकृत हो गई हैं और उसकी कार्यप्रणाली स्पष्ट रूप से जाम हो गई है। किसी भी सार्थक सुधार को सुधार प्रक्रिया के नाम पर ही रोका जा रहा है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना केवल ‘औपचारिकता’ बनकर रह गया है, जबकि विकास और आर्थिक प्रगति का संकट और गहराता जा रहा है।
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जयशंकर की उम्मीद और संदेश
फिर भी जयशंकर ने कहा कि इतने बड़े अवसर पर हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र चाहे कितना भी त्रुटिपूर्ण क्यों न हो, इस कठिन समय में इसे मजबूत बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि एसडीजी एजेंडा 2030 की धीमी प्रगति यह दर्शाती है कि ग्लोबल साउथ कितनी गंभीर स्थिति में है। व्यापार, सप्लाई चेन निर्भरता और राजनीतिक नियंत्रण जैसे कई क्षेत्र संकट में हैं, और इन्हें संतुलित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को खुद को पुनर्गठित करना ही होगा।
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