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Weather: 'धरती का स्वर्ग' और दुनिया की सबसे ठंडी जगह में गर्मी का कहर, कम बारिश और बर्फबारी से जन्नत बनी नर्क!
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सार
श्रीनगर में मौसम विभाग केंद्र के निदेशक डॉ. मुख्तार अहमद ने अमर उजाला से खास बातचीत में बताया कि श्रीनगर में इससे पहले 10 जुलाई, 1946 को सबसे ज्यादा तापमान 38.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। उसके बाद 9 जुलाई 1999 को यहां तापमान 37 डिग्री रहा।

जम्मू कश्मीर में बढ़ी गर्मी।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
देश के मैदानी इलाके जहां गर्मी की तपिश से झुलस रहे हैं, तो धरती का स्वर्ग कहने जाने वाला कश्मीर भी इन दिनों हीटवेव के कहर से जूझ रहा है। श्रीनगर से आगे काजीगुंड, कोकरनाग, गांदरबल, बारामुला में तापमान 28 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका है। वहीं, लद्दाख के द्वार के नाम से मशहूर, जहां 25 साल पहले इसी मौसम में पाकिस्तान के साथ जंग लड़ी गई थी, द्रास में भी गर्मी से हाल बेहाल हैं। द्रास वह इलाका है जहां सर्दियों में तापमान माइनस 60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, वहां लू के कहर के चलते बच्चों के गर्मियों की छुट्टियों का समय बढ़ा दिया गया है।
जन्नत पहुंचने की खुशी हुई गायब
पिछले दिनों कारगिल जंग के 25 साल पूरे होने पर कारगिल विजय दिवस रजत जयंती के मौके पर तीन दिन के लिए द्रास जाना हुआ। सुबह नौ बजे दिल्ली से श्रीनगर एयरपोर्ट पर पहुंचे। लेकिन श्रीनगर लैंड होते ही धरती के जन्नत पहुंचने की सारी खुशी उस समय काफूर हो गई, जब वहां खुशनुमा मौसम का अहसास होने की बजाय शरीर से पसीना बहने लगे। वहां का टैंपरेचर सुबह-सुबह 25 डिग्री के आसपास पहुंच चुका था। सूरज सिर पर था और गर्म-गर्म लपटें लग रही थीं। हालांकि यहां सेब से लदे बाग खूब दिखाई दिए। तोड़ कर एक सेब खाया तो वह काफी मीठा और रसीला था। पता नहीं मैदान तक पहुंचते-पहुंचते सेब का रसीलापन कहां जाता है। हो सकता है कि यह सेब एक्सपोर्ट के लिए भेज दिया जाता हो।
श्रीनगर में चल ही हीटवेव
डल लेक के किनारे श्रीनगर के कचरी मोहल्ले के रहने वाले शादाब शागू भी इस बरसती आग से परेशान दिखे। बातचीत करने पर बताया कि उन्होंने ऐसी गर्मी इससे पहले कभी देखी नहीं है। श्रीनगर में इन दिनों न्यूनतम तापमान 24.6 डिग्री सेल्सियस, जबकि अधिकतम तापमान 30-35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। पूरा हीटवेव का माहौल है। बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है। खुद मौसम विभाग के मुताबिक 132 साल के मौसम विज्ञान के इतिहास में यह तीसरा सबसे अधिक न्यूनतम तापमान रहा है। श्रीनगर का न्यूनतम तापमान सामान्य से 5.8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है। शादाब बताते हैं कि श्रीनगर में कभी पंखे चलाने तक की जरूरत नहीं पड़ती थी। लेकिन अब बिना पंखे के राहत नहीं मिल रही है। वहीं कुछ होटलों और होमस्टे में तो एसी तक चल रहे हैं।
डल झील और झेलम में जलस्तर घटा
शादब का घर डल झील के पास ही है। वह बताते हैं कि डल झील में भी जलस्तर घट रहा है। यहां तक कि पानी में रहने वाली हाउसबोट भी जमीन पर खड़ी हैं। इस असर पर्यटन पर पड़ रहा है। पर्यटक पहले से कम हुए हैं। घाटी में इस महीने सूखे जैसी स्थिति हो गई है। झेलम नदी का सूखा तल कई स्थानों पर देखा जा रहा है। वह बताते हैं कि घाटी में झेलम नदी पानी का प्रमुख स्रोत है, लेकिन जलस्तर कम होने से पानी का संकट होने का डर सताने लगा है। वहीं, भीषण गर्मी के चलते कश्मीर स्कूल विभाग ने 30 जुलाई तक स्कूलों को बंद रखने का आदेश दिया है, जिसे मौसम को देखते हुए आगे भी बढ़ाया जा सकता है।
सोनमर्ग में खुशगवार मौसम
वहीं श्रीनगर से द्रास की दूरी तकरीबन 140 किमी पड़ती है। इस रूट पर रैनावाड़ी, सौरा, गांदरबल, गुजरबल, कंगन, गुंड, सोनमर्ग, बालटाल जैसे इलाके रास्ते में पड़ते हैं। पूरे सफर में कंगन के आगे सोनमर्ग में कुछ राहत मिली। यहां देसी सैलानी काफी संख्या में थे, जिनमें अधिकांश संख्या स्थानीय लोगों की थी, जो अपने-अपने परिवारों के साथ सोनमर्ग का लुत्फ उठाने पहुंचे हुए थे। श्रीनगर से सोनमर्ग तक का अधिकांश रास्ता मैदानी है। हालांकि सोनमर्ग में भी तापमान 22 डिग्री के आसपास था, लेकिन यहां मौसम खुशनुमा था। पसीने नहीं आ रहे थे। जम्मू और कश्मीर में समुद्र तल से 2800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण, सोनमर्ग अपने कई पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। यह झीलों और ग्लेशियरों से घिरा हुआ है और हरे-भरे नजारों से सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है। वहां तैनात एक वरिष्ठ सैन्य अफसर ने बताया कि मई-जून तक यहां अच्छी बर्फ थी, लेकिन अब केवल घास के मैदान ही दूर-दूर तक नजर आते हैं। सर्दियों में यहां इतनी बर्फबारी होती है कि 10-15 फीट तक बर्फ पड़ना आम बात है। सर्दियों में यहां हिमस्खलन होना आम बात है।
बालटाल में मौसम सुहावना, लेकिन जोजिला सूखा
सोनमर्ग से द्रास जाते हुए और वापसी पर भी मौसम बेहद सुहावना था। यहां से आगे बालटाल शुरू होता है। इन दिनों यहां अमरनाथ यात्रा जारी है औऱ बालटाल इसका बेसकैंप है। बालटाल में काफी संख्या में टैंट दिखे, लेकिन यात्रियों की संख्या उतनी नहीं दिखी, जितनी उम्मीद की जा रही थी। श्रीनगर से बालटाल तक पूरे रास्ते में शिवभक्तों की संख्या न के बराबर थी। पोस्टर, बैनर तो केवल बालटाल में ही दिखाई दिए। बालटाल में भी मौसम अच्छा था। वहां से आगे फिर जोजिला शुरू हो जाता है। जोजिला की ऊपरी चोटियों पर बर्फ दिखाई दी, लेकिन नीचे बर्फ का नामोनिशान तक नहीं था। ग्लेशियर सूखे पड़े थे। तेज हवा चल रही थी, लेकिन ठंड बहुत ज्यादा नहीं थी। सर्दियों में तो जोजिला का रास्ता पूरी तरह से बंद हो जाता है। सरकार यहां एक टनल भी बना रही है, जिसके 2027-28 तक पूरा होने का अनुमान है। यह टनल जोजिला से आगे शुरू होगी और सोनमर्ग खत्म होगी। रोहतांग टनल की तरह यह रास्ता भी 12 महीने खुला रहेगा।
द्रास धरती की दूसरी सबसे ठंडी जगह
जोजिला से आगे गुमरी और फिर उसके आगे द्रास का इलाका शुरू हो जाता है। कारगिल डिविजन में पड़ने वाले द्रास को लद्दाख का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। द्रास अपनी ठंड के लिए मशहूर है। साइबेरियाई शहर ओम्याकॉन के बाद द्रास धरती की दूसरी सबसे ठंडी जगह है। 9 जनवरी, 1995 को यहां का तापमान -60 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया था। जब 1999 मे कारगिल युद्ध शुरू हुआ था, तब भी यहं काफी ठंड थी। टेंपरेचर रात को जीरो डिग्री से नीचे पहुंच जाता था। लेकिन हमें यहां ठंड नहीं मिली। शाम के छह बज चुके थे। सूरज अभी भी ढला नहीं था, लेकिन तपिश थोड़ी कम थी। जैकेट की जरूरत नहीं पड़ रही थी, टीशर्ट में ही काम चल रहा था।
द्रास में भी तपिश
यहां जिस होमस्टे में ठहरे थे, उसके मालिक फरमान ने बताया कि यहां सुबह और रात की ठंड है। बारिश अभी तक नहीं पड़ी है। यहां सुबह तो तापमान 6-7 डिग्री रहता है, लेकिन दिन बढ़ते-बढ़ते वह 26 से 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। फरमान आगे बताते हैं कि पहले ऐसा नहीं होता था। जुलाई में बारिश हो जाती थी। लेकिन इस बार तपिश देखने को मिल रही है। पानी की बेहद कमी हो गई है। यहां अभी तक बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां चल रही हैं, जिन्हें तपती गर्मी को देखते हुए आगे बढ़ा दिया गया है। वह आगे बताते हैं कि खेत सूखे पड़े हैं। रात में भी यहां बहुत ठंड नहीं है, हल्की जैकेट में भी काम चल रहा था। कंबल में भी गर्मी लग रही थी।
लेह में कई फ्लाइट्स कैंसिल
कारगिल के रहने वाले इश्हाक बताते हैं कि इस बार मौसम का कुछ समझ नहीं आ रहा है। पहली बार वे इस तरह का मौसम देख रहे हैं। जब भी इतनी तेज गर्मी पड़ती है, तो क्लाउड बर्स्ट के चांस ज्यादा बढ़ जाते हैं। कारगिल के पास ही लामायुरू एक जगह पड़ती है, जो चांद जैसी सतह के लिए मशहूर है। वहां अभी बादल फटने की घटने हुई, जिससे राष्ट्रीय राजमार्ग कुछ समय के लिए बंद हो गया। वह बताते हैं कि द्रास क्या लेह में भी गर्मी से बुरा हाल है। वह एक दिन पहले ही लेह से हो कर आए हैं। लेह में दिन के समय तापमान 35-36 डिग्री सेल्सियस तक जा रहा है। लेह के लिए कई फ्लाइट्स रद्द करनी पड़ी हैं, क्योंकि गर्मी में हवा का घनत्व कम हो जाता है, जिससे हवाई जहाज का उड़ान भरना सुरक्षित नहीं रहता। वह कहते हैं कि दिल्ली से आई एक फ्लाइट तो लेह में लैंड ही नहीं कर पाई। लेह जैसी जगह पर इतना अधिक तापमान जलवायु परिवर्तन का संकेत है। ग्लोबल वार्मिंग का असर यहां तक पहुंचने लगा है। मौसम विभाग के अनुसार श्रीनगर में बीते 20 सालों में जुलाई महीने में पारा कभी भी इतना ऊपर नहीं गया है।
श्रीनगर में 36 डिग्री तापमान
श्रीनगर में मौसम विभाग केंद्र के निदेशक डॉ. मुख्तार अहमद ने अमर उजाला से खास बातचीत में बताया कि श्रीनगर में इससे पहले 10 जुलाई, 1946 को सबसे ज्यादा तापमान 38.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। उसके बाद 9 जुलाई 1999 को यहां तापमान 37 डिग्री रहा। जबकि 28 जुलाई 2024 को 36.2 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। वह बताते हैं कि इसके पीछे प्रमुख वजह जून में बारिश का न होना है, जिससे तापमान बढ़ गया है। वहीं ह्यूमिडिटी फैक्टर भी बड़ी वजह है। मासून हालांकि यहां अभी तक आया नहीं है, लेकिन यहां के मौसम में ह्यूमिडिटी बढ़ गई है। वह बताते हैं कि कम बारिश और कम बर्फबारी के वजह से इस इलाके में सूखे के हालात बन गए हैं। ग्लेशियर पूरी तरह से सूखे हुए हैं। पश्चिमी विक्षोभ (डब्ल्यूडी) बहुत कम और दूर-दूर तक रहे हैं, और शुष्क अवधि लंबे समय तक चली है।
लेह में भी कम बर्फबारी
डॉ. मुख्तार अहमद बताते हैं कि कुछ ऐसे ही हालात लद्दाख में भी हैं। यहां इतना अधिक तापमान जलवायु परिवर्तन का संकेत है। लद्दाख में इस साल बेहद कम बर्फबारी हुई थी। वहां भी सूखे जैसे हालात हैं। बारिश का अभी वहां कोई नामोनिशान नहीं है। धरती पूरी तरह से सूखी हुई है, जिससे गर्मी बढ़ रही है। वहां भी तापमान 36 डिग्री तक पहुंचने के पीछे भी यही कारक जिम्मेदार हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले कुछ दिनों में बारिश होगी, जिससे थोड़ी तपिश कम होगी। मौसम विभाग ने कहा कि 30 जुलाई से दो अगस्त तक जम्मू और कश्मीर डिवीजन में हल्की से तेज बारिश के साथ पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन हो सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में तेज बारिश होने से नदी, नालों में बाढ़ भी आ सकती है।

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पिछले दिनों कारगिल जंग के 25 साल पूरे होने पर कारगिल विजय दिवस रजत जयंती के मौके पर तीन दिन के लिए द्रास जाना हुआ। सुबह नौ बजे दिल्ली से श्रीनगर एयरपोर्ट पर पहुंचे। लेकिन श्रीनगर लैंड होते ही धरती के जन्नत पहुंचने की सारी खुशी उस समय काफूर हो गई, जब वहां खुशनुमा मौसम का अहसास होने की बजाय शरीर से पसीना बहने लगे। वहां का टैंपरेचर सुबह-सुबह 25 डिग्री के आसपास पहुंच चुका था। सूरज सिर पर था और गर्म-गर्म लपटें लग रही थीं। हालांकि यहां सेब से लदे बाग खूब दिखाई दिए। तोड़ कर एक सेब खाया तो वह काफी मीठा और रसीला था। पता नहीं मैदान तक पहुंचते-पहुंचते सेब का रसीलापन कहां जाता है। हो सकता है कि यह सेब एक्सपोर्ट के लिए भेज दिया जाता हो।
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श्रीनगर में चल ही हीटवेव
डल लेक के किनारे श्रीनगर के कचरी मोहल्ले के रहने वाले शादाब शागू भी इस बरसती आग से परेशान दिखे। बातचीत करने पर बताया कि उन्होंने ऐसी गर्मी इससे पहले कभी देखी नहीं है। श्रीनगर में इन दिनों न्यूनतम तापमान 24.6 डिग्री सेल्सियस, जबकि अधिकतम तापमान 30-35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। पूरा हीटवेव का माहौल है। बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है। खुद मौसम विभाग के मुताबिक 132 साल के मौसम विज्ञान के इतिहास में यह तीसरा सबसे अधिक न्यूनतम तापमान रहा है। श्रीनगर का न्यूनतम तापमान सामान्य से 5.8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है। शादाब बताते हैं कि श्रीनगर में कभी पंखे चलाने तक की जरूरत नहीं पड़ती थी। लेकिन अब बिना पंखे के राहत नहीं मिल रही है। वहीं कुछ होटलों और होमस्टे में तो एसी तक चल रहे हैं।
डल झील और झेलम में जलस्तर घटा
शादब का घर डल झील के पास ही है। वह बताते हैं कि डल झील में भी जलस्तर घट रहा है। यहां तक कि पानी में रहने वाली हाउसबोट भी जमीन पर खड़ी हैं। इस असर पर्यटन पर पड़ रहा है। पर्यटक पहले से कम हुए हैं। घाटी में इस महीने सूखे जैसी स्थिति हो गई है। झेलम नदी का सूखा तल कई स्थानों पर देखा जा रहा है। वह बताते हैं कि घाटी में झेलम नदी पानी का प्रमुख स्रोत है, लेकिन जलस्तर कम होने से पानी का संकट होने का डर सताने लगा है। वहीं, भीषण गर्मी के चलते कश्मीर स्कूल विभाग ने 30 जुलाई तक स्कूलों को बंद रखने का आदेश दिया है, जिसे मौसम को देखते हुए आगे भी बढ़ाया जा सकता है।
सोनमर्ग में खुशगवार मौसम
वहीं श्रीनगर से द्रास की दूरी तकरीबन 140 किमी पड़ती है। इस रूट पर रैनावाड़ी, सौरा, गांदरबल, गुजरबल, कंगन, गुंड, सोनमर्ग, बालटाल जैसे इलाके रास्ते में पड़ते हैं। पूरे सफर में कंगन के आगे सोनमर्ग में कुछ राहत मिली। यहां देसी सैलानी काफी संख्या में थे, जिनमें अधिकांश संख्या स्थानीय लोगों की थी, जो अपने-अपने परिवारों के साथ सोनमर्ग का लुत्फ उठाने पहुंचे हुए थे। श्रीनगर से सोनमर्ग तक का अधिकांश रास्ता मैदानी है। हालांकि सोनमर्ग में भी तापमान 22 डिग्री के आसपास था, लेकिन यहां मौसम खुशनुमा था। पसीने नहीं आ रहे थे। जम्मू और कश्मीर में समुद्र तल से 2800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण, सोनमर्ग अपने कई पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। यह झीलों और ग्लेशियरों से घिरा हुआ है और हरे-भरे नजारों से सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देता है। वहां तैनात एक वरिष्ठ सैन्य अफसर ने बताया कि मई-जून तक यहां अच्छी बर्फ थी, लेकिन अब केवल घास के मैदान ही दूर-दूर तक नजर आते हैं। सर्दियों में यहां इतनी बर्फबारी होती है कि 10-15 फीट तक बर्फ पड़ना आम बात है। सर्दियों में यहां हिमस्खलन होना आम बात है।
बालटाल में मौसम सुहावना, लेकिन जोजिला सूखा
सोनमर्ग से द्रास जाते हुए और वापसी पर भी मौसम बेहद सुहावना था। यहां से आगे बालटाल शुरू होता है। इन दिनों यहां अमरनाथ यात्रा जारी है औऱ बालटाल इसका बेसकैंप है। बालटाल में काफी संख्या में टैंट दिखे, लेकिन यात्रियों की संख्या उतनी नहीं दिखी, जितनी उम्मीद की जा रही थी। श्रीनगर से बालटाल तक पूरे रास्ते में शिवभक्तों की संख्या न के बराबर थी। पोस्टर, बैनर तो केवल बालटाल में ही दिखाई दिए। बालटाल में भी मौसम अच्छा था। वहां से आगे फिर जोजिला शुरू हो जाता है। जोजिला की ऊपरी चोटियों पर बर्फ दिखाई दी, लेकिन नीचे बर्फ का नामोनिशान तक नहीं था। ग्लेशियर सूखे पड़े थे। तेज हवा चल रही थी, लेकिन ठंड बहुत ज्यादा नहीं थी। सर्दियों में तो जोजिला का रास्ता पूरी तरह से बंद हो जाता है। सरकार यहां एक टनल भी बना रही है, जिसके 2027-28 तक पूरा होने का अनुमान है। यह टनल जोजिला से आगे शुरू होगी और सोनमर्ग खत्म होगी। रोहतांग टनल की तरह यह रास्ता भी 12 महीने खुला रहेगा।
द्रास धरती की दूसरी सबसे ठंडी जगह
जोजिला से आगे गुमरी और फिर उसके आगे द्रास का इलाका शुरू हो जाता है। कारगिल डिविजन में पड़ने वाले द्रास को लद्दाख का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। द्रास अपनी ठंड के लिए मशहूर है। साइबेरियाई शहर ओम्याकॉन के बाद द्रास धरती की दूसरी सबसे ठंडी जगह है। 9 जनवरी, 1995 को यहां का तापमान -60 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया था। जब 1999 मे कारगिल युद्ध शुरू हुआ था, तब भी यहं काफी ठंड थी। टेंपरेचर रात को जीरो डिग्री से नीचे पहुंच जाता था। लेकिन हमें यहां ठंड नहीं मिली। शाम के छह बज चुके थे। सूरज अभी भी ढला नहीं था, लेकिन तपिश थोड़ी कम थी। जैकेट की जरूरत नहीं पड़ रही थी, टीशर्ट में ही काम चल रहा था।
द्रास में भी तपिश
यहां जिस होमस्टे में ठहरे थे, उसके मालिक फरमान ने बताया कि यहां सुबह और रात की ठंड है। बारिश अभी तक नहीं पड़ी है। यहां सुबह तो तापमान 6-7 डिग्री रहता है, लेकिन दिन बढ़ते-बढ़ते वह 26 से 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। फरमान आगे बताते हैं कि पहले ऐसा नहीं होता था। जुलाई में बारिश हो जाती थी। लेकिन इस बार तपिश देखने को मिल रही है। पानी की बेहद कमी हो गई है। यहां अभी तक बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां चल रही हैं, जिन्हें तपती गर्मी को देखते हुए आगे बढ़ा दिया गया है। वह आगे बताते हैं कि खेत सूखे पड़े हैं। रात में भी यहां बहुत ठंड नहीं है, हल्की जैकेट में भी काम चल रहा था। कंबल में भी गर्मी लग रही थी।
लेह में कई फ्लाइट्स कैंसिल
कारगिल के रहने वाले इश्हाक बताते हैं कि इस बार मौसम का कुछ समझ नहीं आ रहा है। पहली बार वे इस तरह का मौसम देख रहे हैं। जब भी इतनी तेज गर्मी पड़ती है, तो क्लाउड बर्स्ट के चांस ज्यादा बढ़ जाते हैं। कारगिल के पास ही लामायुरू एक जगह पड़ती है, जो चांद जैसी सतह के लिए मशहूर है। वहां अभी बादल फटने की घटने हुई, जिससे राष्ट्रीय राजमार्ग कुछ समय के लिए बंद हो गया। वह बताते हैं कि द्रास क्या लेह में भी गर्मी से बुरा हाल है। वह एक दिन पहले ही लेह से हो कर आए हैं। लेह में दिन के समय तापमान 35-36 डिग्री सेल्सियस तक जा रहा है। लेह के लिए कई फ्लाइट्स रद्द करनी पड़ी हैं, क्योंकि गर्मी में हवा का घनत्व कम हो जाता है, जिससे हवाई जहाज का उड़ान भरना सुरक्षित नहीं रहता। वह कहते हैं कि दिल्ली से आई एक फ्लाइट तो लेह में लैंड ही नहीं कर पाई। लेह जैसी जगह पर इतना अधिक तापमान जलवायु परिवर्तन का संकेत है। ग्लोबल वार्मिंग का असर यहां तक पहुंचने लगा है। मौसम विभाग के अनुसार श्रीनगर में बीते 20 सालों में जुलाई महीने में पारा कभी भी इतना ऊपर नहीं गया है।
श्रीनगर में 36 डिग्री तापमान
श्रीनगर में मौसम विभाग केंद्र के निदेशक डॉ. मुख्तार अहमद ने अमर उजाला से खास बातचीत में बताया कि श्रीनगर में इससे पहले 10 जुलाई, 1946 को सबसे ज्यादा तापमान 38.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। उसके बाद 9 जुलाई 1999 को यहां तापमान 37 डिग्री रहा। जबकि 28 जुलाई 2024 को 36.2 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। वह बताते हैं कि इसके पीछे प्रमुख वजह जून में बारिश का न होना है, जिससे तापमान बढ़ गया है। वहीं ह्यूमिडिटी फैक्टर भी बड़ी वजह है। मासून हालांकि यहां अभी तक आया नहीं है, लेकिन यहां के मौसम में ह्यूमिडिटी बढ़ गई है। वह बताते हैं कि कम बारिश और कम बर्फबारी के वजह से इस इलाके में सूखे के हालात बन गए हैं। ग्लेशियर पूरी तरह से सूखे हुए हैं। पश्चिमी विक्षोभ (डब्ल्यूडी) बहुत कम और दूर-दूर तक रहे हैं, और शुष्क अवधि लंबे समय तक चली है।
लेह में भी कम बर्फबारी
डॉ. मुख्तार अहमद बताते हैं कि कुछ ऐसे ही हालात लद्दाख में भी हैं। यहां इतना अधिक तापमान जलवायु परिवर्तन का संकेत है। लद्दाख में इस साल बेहद कम बर्फबारी हुई थी। वहां भी सूखे जैसे हालात हैं। बारिश का अभी वहां कोई नामोनिशान नहीं है। धरती पूरी तरह से सूखी हुई है, जिससे गर्मी बढ़ रही है। वहां भी तापमान 36 डिग्री तक पहुंचने के पीछे भी यही कारक जिम्मेदार हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले कुछ दिनों में बारिश होगी, जिससे थोड़ी तपिश कम होगी। मौसम विभाग ने कहा कि 30 जुलाई से दो अगस्त तक जम्मू और कश्मीर डिवीजन में हल्की से तेज बारिश के साथ पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन हो सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में तेज बारिश होने से नदी, नालों में बाढ़ भी आ सकती है।