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Khabaron Ke Khiladi: ट्रंप के टैरिफ से कैसे निपटेगा भारत, विश्लेषकों ने बताया क्या अब नए दोस्त ढूंढने का समय?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Sat, 16 Aug 2025 09:16 PM IST
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Khabaron Ke Khiladi US Tariffs Donald Trump India Expert analyse Russia friendship and Export scenarios news
खबरों के खिलाड़ी। - फोटो : अमर उजाला
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अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए अतरिक्त टैरिफ के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही चीन जाने वाले है। वहीं, रूसी राष्ट्रपति वाल्दीमिर पुतिन भारत आने वाले हैं। अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए अतरिक्त टैरिफ से भारत कैसे निपटेगा? इस वक्त प्रधानमंत्री मोदी का चीन दौरा और रूसी राष्ट्रपति का भारत दौरा दुनिया के मंच पर भारत के लिए कौन से नए रास्ते खोल सकता है? क्या अब भारत को नए दोस्तों को तलाशने की जरूरत है? कुछ इसी तरह के सवालों पर इस हफ्ते ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, अवधेश कुमार और अनुराग वर्मा मौजूद रहे।  

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रामकृपाल सिंह: जो कुछ दुनिया में हो रहा है वो ऑब्जेक्टिव कंडीशन्स हैं। भारत के जो हालात है, चाहे मोदी हों, चाहे नेहरू हों, इंदिरा हों या राहुल हों, कोई भी आए वो एग्रीकल्चर और डेयरी सेक्टर को नहीं छोड़ सकते हैं। हमारी स्थिति दुनिया के दूसरे देशों से बहुत भिन्न हैं। अमेरिका की दिक्कत ये है कि वो कोई प्रोडक्ट नहीं बनाता है। इस मामले में हम बहुत अच्छी स्थिति में हैं, क्योंकि हमारी 80 फीसदी अर्थव्यवस्था सेल्फ डिपेंडेंट है। अमेरिका की परेशानी ये है कि अमेरिका में कोई भी चीज बनाएंगे तो वहां भारत के टैरिफ के बाद भी खरीदी गई चीज से महंगी होगी। भारत में बना एपल का फोन टैरिफ लगने के बाद भी अमेरिका में बने फोन से सत्ता होगा। 

पूर्णिमा त्रिपाठी: जिस जमाने में हम रूस के करीब होते थे तब जो सरकार थी उसकी विचारधारा भी प्रो सोवियत संघ से प्रभावित थी। अमेरिका शुरू से पूंजीवादी राष्ट्र रहा है। हमने रूस की ओर अपना झुकाव ज्यादा रखा। 2014 के बाद हमारी नीति में बदलाव आया है और हमारा झुकाव अमेरिका की तरफ बढ़ा है। उसकी एक वजह रूस की स्थिति भी रही। इन स्थितियों की वजह से ही हमने अमेरिका से अपनी दोस्ती बढ़ाई और हमने इस्राइल से भी अपनी दोस्ती बढ़ाई। जिस तरह का बर्ताव अमेरिका रहा है उससे यह साफ हो गया है कि अमेरिका किसी का दोस्त या दुश्मन नहीं हो सकता है। इसलिए हमें अपनी कूटनीति पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। चीन हमारा एक मजबूत पड़ोसी है इसे भी मानना होगा। ये रिश्ता आगे भी ऐसा ही रहेगा। 

अनुराग वर्मा: गलवां के बाद से धीरे-धीरे चीन से हमारे संबंध बेहतर होने शुरू हुए हैं। इसमें जिस व्यक्ति को सबसे ज्यादा परेशानी है, वो डोनाल्ड ट्रंप हैं। ट्रंप राजनेता न होते हुए एक व्यापारी हैं। वो व्यापार के दृष्टिकोण से हर चीज को देखते हैं। पाकिस्तान के पक्ष में अमेरिका झुकता दिखता है तो इसकी वजह पाकिस्तान के मिनरल्स हैं। इसी तरह यूक्रेन में भी उन्हें मिनरल्स और रिकंस्ट्रक्शन का बाजार दिख रहा है। क्योंकि युद्ध के बाद जो रिकंस्ट्रक्शन होगा उसमें उन्हें बड़े ठेके मिलते दिख रहे हैं। क्योंकि खुद ट्रंप का बड़ा व्यापार रिकंस्ट्रक्शन का है। अर्थव्यस्था के आधार पर देखा जाए तो भारत, अमेरिका के लिए एक अहम साझेदार है ऐसे में उसे अमेरिका नजरअंदाज नहीं कर सकता है। 
 

विनोद अग्निहोत्री: हम भारतीय बहुत भावुक हैं और बहुत जल्दी भावनाओं में बह जाते हैं। भारत हमेशा अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे रिश्ते रखने की कोशिश करता रहा है। चाहे चीन हो या पाकिस्तान हो, लेकिन उसे हर बार धोखा मिलता रहा है। हमें अपनी विदेश नीति में भावनाओं में नहीं बहना चाहिए, बल्कि यथार्थवादी होना चाहिए। कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति बनने पर हमारे देश भावना में बह जाता है। तुलसी गबार्ड हों या ऋषि सुनक इनकी नियुक्तियों पर हमारे यहां जश्न होता है। जबकि इनसे हमें कूटनीतिक लाभ नहीं होता है। हमारा राष्ट्रीय हित कहां है, उन राष्ट्रीय हितों के हिसाब से हम फैसले लेंगे। 

अवधेश कुमार: चीन और अमेरिका के साथ जो आज की डिप्लोमेसी है, वो इतनी आसान नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा हो या पुतिन की भारत यात्रा इसका ट्रंप के टैरिफ से कोई संबंध नहीं है। ये दोनों दौरे पहले से तय थे। गलवां के बाद भारत और चीन के संबंध में काफी सुधार हुआ है। एससीओ को भारत ज्यादा महत्व नहीं देता और न ही दे सकता है। इसमें रूस और चीन का प्रभाव ज्यादा है। एससीओ में कोई बहुत बड़ी घोषणा होगी इसकी उम्मीद हमें नहीं करनी चाहिए।
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