Khabaron Ke Khiladi: ट्रंप के टैरिफ से कैसे निपटेगा भारत, विश्लेषकों ने बताया क्या अब नए दोस्त ढूंढने का समय?

अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए अतरिक्त टैरिफ के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही चीन जाने वाले है। वहीं, रूसी राष्ट्रपति वाल्दीमिर पुतिन भारत आने वाले हैं। अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए अतरिक्त टैरिफ से भारत कैसे निपटेगा? इस वक्त प्रधानमंत्री मोदी का चीन दौरा और रूसी राष्ट्रपति का भारत दौरा दुनिया के मंच पर भारत के लिए कौन से नए रास्ते खोल सकता है? क्या अब भारत को नए दोस्तों को तलाशने की जरूरत है? कुछ इसी तरह के सवालों पर इस हफ्ते ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी, अवधेश कुमार और अनुराग वर्मा मौजूद रहे।

पूर्णिमा त्रिपाठी: जिस जमाने में हम रूस के करीब होते थे तब जो सरकार थी उसकी विचारधारा भी प्रो सोवियत संघ से प्रभावित थी। अमेरिका शुरू से पूंजीवादी राष्ट्र रहा है। हमने रूस की ओर अपना झुकाव ज्यादा रखा। 2014 के बाद हमारी नीति में बदलाव आया है और हमारा झुकाव अमेरिका की तरफ बढ़ा है। उसकी एक वजह रूस की स्थिति भी रही। इन स्थितियों की वजह से ही हमने अमेरिका से अपनी दोस्ती बढ़ाई और हमने इस्राइल से भी अपनी दोस्ती बढ़ाई। जिस तरह का बर्ताव अमेरिका रहा है उससे यह साफ हो गया है कि अमेरिका किसी का दोस्त या दुश्मन नहीं हो सकता है। इसलिए हमें अपनी कूटनीति पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। चीन हमारा एक मजबूत पड़ोसी है इसे भी मानना होगा। ये रिश्ता आगे भी ऐसा ही रहेगा।
अवधेश कुमार: चीन और अमेरिका के साथ जो आज की डिप्लोमेसी है, वो इतनी आसान नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा हो या पुतिन की भारत यात्रा इसका ट्रंप के टैरिफ से कोई संबंध नहीं है। ये दोनों दौरे पहले से तय थे। गलवां के बाद भारत और चीन के संबंध में काफी सुधार हुआ है। एससीओ को भारत ज्यादा महत्व नहीं देता और न ही दे सकता है। इसमें रूस और चीन का प्रभाव ज्यादा है। एससीओ में कोई बहुत बड़ी घोषणा होगी इसकी उम्मीद हमें नहीं करनी चाहिए।
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