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Om Birla: लोकसभा अध्यक्ष ने महिला सशक्तीकरण पर दिया जोर, कहा- सभी राज्यों में बनें महिलाओं की विधायी समितियां
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, तिरुपति
Published by: बशु जैन
Updated Mon, 15 Sep 2025 05:40 PM IST
सार
संसद और राज्य विधानसभाओं की महिला सशक्तिकरण समितियों के दो दिवसीय सम्मेलन के समापन समारोह में ओम बिरला ने कई विधानसभाओं में महिला सशक्तीकरण समितियों के अभाव पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कुल 29 राज्यों में से केवल 16 राज्यों में महिला सशक्तीकरण पर विधायी समितियां हैं।
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लोकसभा स्पीकर ओम बिरला।
- फोटो : Youtube/@SansadTV
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विस्तार
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सोमवार को महिला सशक्तीकरण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बजटीय आवंटन में लैंगिक जवाबदेही जैसे मुद्दों के समाधान के लिए सभी राज्यों में महिला सशक्तीकरण पर विधायी समितियां गठित करने की जरूरत है। संसद और राज्य विधानसभाओं की महिला सशक्तिकरण समितियों के दो दिवसीय सम्मेलन के समापन समारोह में ओम बिरला ने कई विधानसभाओं में महिला सशक्तीकरण समितियों के अभाव पर चिंता जताई।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि मैं विधानसभाओं के पीठासीन अधिकारियों को पत्र लिखूंगा कि वे महिला एवं बाल विकास के सशक्तीकरण पर विधायी समितियां गठित करें। कुल 29 राज्यों में से केवल 16 राज्यों में महिला सशक्तीकरण पर विधायी समितियां हैं और शेष राज्यों के लिए ऐसी समितियों का गठन करना आवश्यक है, ताकि वे संबंधित विधानसभाओं और राज्य सरकारों को महिलाओं के मुद्दों पर सुझाव दे सकें।
बिरला ने कहा कि हम लखनऊ में आगामी अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। जिस प्रकार लोक लेखा समिति वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करती है, उसी प्रकार महिला सशक्तीकरण समितियां भी बजटीय आवंटन में लैंगिक जवाबदेही सुनिश्चित कर सकती हैं। एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की जरूरत है जहां एक युवा महिला बिना किसी डर के शिक्षा प्राप्त करने, नौकरशाही बाधाओं के बिना व्यवसाय शुरू करने और बिना किसी पूर्वाग्रह के नेतृत्व करने का सपना देख सके।
उन्होंने कहा कि स्वदेशी उत्पादों के निर्माण में महिलाओं की भागीदारी बढ़नी चाहिए। महिलाएं पहले से ही स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आर्थिक सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि किसी राष्ट्र को सही मायने में तभी विकसित कहा जा सकता है जब उसकी आधी आबादी विकास की मुख्यधारा में पूरी तरह से और सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम हो।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि महिलाओं के नेतृत्व में विकास कोई विकल्प नहीं है। यह एक आवश्यकता है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो महिलाओं को न केवल लाभार्थी के रूप में स्थापित करता है, बल्कि विकास की प्रक्रिया के चालक, निर्माता और नेता के रूप में भी स्थापित करता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि बजट का आवंटन इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि वे स्वास्थ्य, शिक्षा, बाल देखभाल और रोजगार के अवसरों जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को सीधे तौर पर लाभ दे सकें।
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लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि मैं विधानसभाओं के पीठासीन अधिकारियों को पत्र लिखूंगा कि वे महिला एवं बाल विकास के सशक्तीकरण पर विधायी समितियां गठित करें। कुल 29 राज्यों में से केवल 16 राज्यों में महिला सशक्तीकरण पर विधायी समितियां हैं और शेष राज्यों के लिए ऐसी समितियों का गठन करना आवश्यक है, ताकि वे संबंधित विधानसभाओं और राज्य सरकारों को महिलाओं के मुद्दों पर सुझाव दे सकें।
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बिरला ने कहा कि हम लखनऊ में आगामी अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। जिस प्रकार लोक लेखा समिति वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करती है, उसी प्रकार महिला सशक्तीकरण समितियां भी बजटीय आवंटन में लैंगिक जवाबदेही सुनिश्चित कर सकती हैं। एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की जरूरत है जहां एक युवा महिला बिना किसी डर के शिक्षा प्राप्त करने, नौकरशाही बाधाओं के बिना व्यवसाय शुरू करने और बिना किसी पूर्वाग्रह के नेतृत्व करने का सपना देख सके।
उन्होंने कहा कि स्वदेशी उत्पादों के निर्माण में महिलाओं की भागीदारी बढ़नी चाहिए। महिलाएं पहले से ही स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आर्थिक सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि किसी राष्ट्र को सही मायने में तभी विकसित कहा जा सकता है जब उसकी आधी आबादी विकास की मुख्यधारा में पूरी तरह से और सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम हो।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि महिलाओं के नेतृत्व में विकास कोई विकल्प नहीं है। यह एक आवश्यकता है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो महिलाओं को न केवल लाभार्थी के रूप में स्थापित करता है, बल्कि विकास की प्रक्रिया के चालक, निर्माता और नेता के रूप में भी स्थापित करता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि बजट का आवंटन इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि वे स्वास्थ्य, शिक्षा, बाल देखभाल और रोजगार के अवसरों जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को सीधे तौर पर लाभ दे सकें।