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Supreme Court Updates: महिला वकीलों की POSH शिकायतों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, केंद्र और बार काउंसिल को नोटिस
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Fri, 21 Nov 2025 06:25 PM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट ने महिला वकीलों की पोश शिकायतों पर बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और BCI को नोटिस जारी किया है। हाई कोर्ट ने कहा था कि पोश एक्ट बार काउंसिल पर लागू नहीं होता, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने इसे महिला वकीलों के अधिकारों का उल्लंघन बताया।
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सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने महिला वकीलों की कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न संबंधी शिकायतों को लेकर एक अहम कदम उठाते हुए केंद्र सरकार और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को नोटिस जारी किया है। यह मामला बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले से जुड़ा है, जिसमें कहा गया था कि पोश कानून बार काउंसिल में वकीलों द्वारा वकीलों के खिलाफ की गई शिकायतों पर लागू नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से अब पूरे मामले पर व्यापक कानूनी समीक्षा का रास्ता खुल गया है।
जस्टिस बी वी नागरत्ना और आर महादेवन की बेंच ने नोटिस जारी करते हुए मामले को एक समान याचिका के साथ टैग कर लिया। यह अपील सुप्रीम कोर्ट वीमेन लॉयर्स एसोसिएशन ने दायर की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हाई कोर्ट के फैसले ने महिला वकीलों को पोश कानून के तहत राहत पाने से वंचित कर दिया है और इससे वे 'रेमेडीलेस' यानी बिना किसी कानूनी उपाय के रह जाती हैं।
हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल
याचिका में कहा गया कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने सात जुलाई के अपने आदेश में माना था कि पोश एक्ट, 2013 बार काउंसिल पर लागू नहीं होता। हाई कोर्ट का तर्क था कि महिला वकील चाहें तो एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 35 के तहत शिकायत दर्ज करा सकती हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट वीमेन लॉयर्स एसोसिएशन ने इस तर्क पर सवाल उठाया है और कहा कि धारा 35 ‘प्रोफेशनल मिसकंडक्ट’ से संबंधित है, न कि यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर मामलों से।
वकीलों की सुरक्षा को लेकर बढ़ी चिंता
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में कहा कि बार काउंसिल एक कार्यस्थल है, जहां महिला वकील पेशेवर रूप से कार्य करती हैं। ऐसे में पोश कानून का लागू न होना उनकी सुरक्षा और सम्मान दोनों को खतरे में डालता है। याचिका में यह भी दलील दी गई कि धारा 35 के तहत की जाने वाली कार्रवाई लंबी, जटिल और यौन उत्पीड़न के मामलों की संवेदनशीलता से मेल नहीं खाती। ऐसे में पोश कानून को ही लागू होना चाहिए।
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जस्टिस बी वी नागरत्ना और आर महादेवन की बेंच ने नोटिस जारी करते हुए मामले को एक समान याचिका के साथ टैग कर लिया। यह अपील सुप्रीम कोर्ट वीमेन लॉयर्स एसोसिएशन ने दायर की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हाई कोर्ट के फैसले ने महिला वकीलों को पोश कानून के तहत राहत पाने से वंचित कर दिया है और इससे वे 'रेमेडीलेस' यानी बिना किसी कानूनी उपाय के रह जाती हैं।
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हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल
याचिका में कहा गया कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने सात जुलाई के अपने आदेश में माना था कि पोश एक्ट, 2013 बार काउंसिल पर लागू नहीं होता। हाई कोर्ट का तर्क था कि महिला वकील चाहें तो एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 35 के तहत शिकायत दर्ज करा सकती हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट वीमेन लॉयर्स एसोसिएशन ने इस तर्क पर सवाल उठाया है और कहा कि धारा 35 ‘प्रोफेशनल मिसकंडक्ट’ से संबंधित है, न कि यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर मामलों से।
वकीलों की सुरक्षा को लेकर बढ़ी चिंता
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में कहा कि बार काउंसिल एक कार्यस्थल है, जहां महिला वकील पेशेवर रूप से कार्य करती हैं। ऐसे में पोश कानून का लागू न होना उनकी सुरक्षा और सम्मान दोनों को खतरे में डालता है। याचिका में यह भी दलील दी गई कि धारा 35 के तहत की जाने वाली कार्रवाई लंबी, जटिल और यौन उत्पीड़न के मामलों की संवेदनशीलता से मेल नहीं खाती। ऐसे में पोश कानून को ही लागू होना चाहिए।
अरावली की सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, अब ताजा खनन लीज पर प्रतिबंध
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित अरावली की एकसमान परिभाषा को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही अदालत ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में स्थित अरावली क्षेत्रों में नई खनन लीज़ देने पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है, जब तक विशेषज्ञ संस्थाओं की रिपोर्ट उपलब्ध नहीं हो जाती। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय की उस परिभाषा को स्वीकार किया, जिसमें 100 मीटर या उससे अधिक स्थानीय ऊंचाई वाले भू-आकार को अरावली पर्वत और 500 मीटर की दूरी के भीतर स्थित दो या अधिक ऐसे पहाड़ियों के समूह को अरावली रेंज माना गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह परिभाषा भूमि उपयोग, पर्यावरण संरक्षण और खनन गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
29 पन्नों के इस फैसले में अदालत ने कहा कि अरावली को कोर और 'इनवॉयलेट' क्षेत्रों में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा, और जहां वैज्ञानिक रूप से उचित हो, वहीं सीमित खनन की अनुमति भविष्य में दी जा सकती है। अदालत ने निर्देश दिया कि सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार की जाए, और तब तक किसी भी नए खनन पट्टे को स्वीकृति नहीं दी जाएगी। वहीं, पहले से चल रही खदानों को समिति की सिफारिशों का पालन करते हुए संचालन जारी रखने की अनुमति रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली को थार मरुस्थल के विस्तार को रोकने वाली ग्रीन बैरियर बताते हुए कहा कि इसकी वैज्ञानिक और स्पष्ट परिभाषा जैव-विविधता संरक्षण और अवैध खनन रोकने के लिए अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित अरावली की एकसमान परिभाषा को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही अदालत ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में स्थित अरावली क्षेत्रों में नई खनन लीज़ देने पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है, जब तक विशेषज्ञ संस्थाओं की रिपोर्ट उपलब्ध नहीं हो जाती। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय की उस परिभाषा को स्वीकार किया, जिसमें 100 मीटर या उससे अधिक स्थानीय ऊंचाई वाले भू-आकार को अरावली पर्वत और 500 मीटर की दूरी के भीतर स्थित दो या अधिक ऐसे पहाड़ियों के समूह को अरावली रेंज माना गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह परिभाषा भूमि उपयोग, पर्यावरण संरक्षण और खनन गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
29 पन्नों के इस फैसले में अदालत ने कहा कि अरावली को कोर और 'इनवॉयलेट' क्षेत्रों में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा, और जहां वैज्ञानिक रूप से उचित हो, वहीं सीमित खनन की अनुमति भविष्य में दी जा सकती है। अदालत ने निर्देश दिया कि सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार की जाए, और तब तक किसी भी नए खनन पट्टे को स्वीकृति नहीं दी जाएगी। वहीं, पहले से चल रही खदानों को समिति की सिफारिशों का पालन करते हुए संचालन जारी रखने की अनुमति रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली को थार मरुस्थल के विस्तार को रोकने वाली ग्रीन बैरियर बताते हुए कहा कि इसकी वैज्ञानिक और स्पष्ट परिभाषा जैव-विविधता संरक्षण और अवैध खनन रोकने के लिए अनिवार्य है।