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Nagaland: DGP ने नशीली दवाओं के खतरे से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की दी चेतावनी, पूर्वोत्तर से एकता की अपील
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, दीमापुर
Published by: पवन पांडेय
Updated Thu, 13 Nov 2025 01:52 PM IST
सार
गुरुवार को चुमौकेदीमा में आयोजित 'पूर्वोत्तर क्षेत्रीय एंटी-नारकोटिक्स टास्क फोर्स सम्मेलन' के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए नगालैंड के डीजीपी रूपिन शर्मा ने कहा कि वक्त आ गया है कि पूरे पूर्वोत्तर को मिलकर, तकनीक और समन्वय की मदद से भारत में बढ़ते ड्रग्स के खतरे लड़ना होगा।
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नगालैंड डीजीपी ने नशीली दवाओं के खतरे को लेकर दी चेतावनी
- फोटो : ANI / police.nagaland.gov.in
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विस्तार
नगालैंड के पुलिस महानिदेशक रूपिन शर्मा ने पूर्वोत्तर भारत में बढ़ते ड्रग्स के खतरे को 'सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल' और 'राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा' बताया है। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है जब पूरे पूर्वोत्तर को मिलकर, तकनीक और समन्वय की मदद से इस समस्या से लड़ना होगा। इस दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) और नगालैंड पुलिस ने संयुक्त रूप से किया है, जिसमें सिक्किम और पश्चिम बंगाल के अधिकारी भी शामिल हैं।
'पूर्वोत्तर अब भारत की नशे के खिलाफ लड़ाई का केंद्र बिंदु'
डीजीपी ने कहा कि भारत-म्यांमार सीमा, जो ज्यादातर खुली और बिना बाड़ की है, ड्रग तस्करों के लिए बड़ी आसान राह बन गई है। 'फ्री मूवमेंट रीजीम' के तहत सीमा पार लोग आसानी से आते-जाते हैं, जिससे मादक पदार्थों की तस्करी पर नियंत्रण कठिन हो गया है। उन्होंने कहा, 'ड्रग तस्करी और नशे की लत अब सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि आंतरिक सुरक्षा और युवाओं के भविष्य का सीधा खतरा बन चुके हैं।'
यह भी पढ़ें - SC: राष्ट्रीय उद्यानों-अभयारण्यों के 1 किमी के दायरे में खनन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया प्रतिबंध, जानें मामला
नगालैंड में करीब 1.2 लाख नशेड़ी- डीजीपी
डीजीपी के अनुसार, केवल नगालैंड में ही करीब 1.2 लाख ड्रग्स उपभोक्ता हैं, जिनमें से अधिकांश 'शानफ्लावर' नाम से जानी जाने वाली हेरोइन का सेवन करते हैं। उन्होंने अनुमान लगाया कि 'अगर इनमें से आधे लोग रोजाना सिर्फ आधा ग्राम लेते हैं, तो नगालैंड में हर साल करीब 10,000 किलो हेरोइन की खपत होती है, जबकि पूरे पूर्वोत्तर में यह आंकड़ा एक लाख किलो तक जा सकता है।' उन्होंने बताया कि ड्रग्स की अवैध कमाई से न केवल संगठित अपराध बल्कि उग्रवाद और नार्को-टेररिज्म को भी बढ़ावा मिल रहा है। उन्होंने कहा, 'कई उग्रवादी गुटों के सदस्य खुद ड्रग तस्करी में शामिल हैं।' उनके शब्दों में, 'ड्रग कार्टेल को खत्म करना यानी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना।'
तीन-स्तरीय रणनीति: समन्वय, प्रवर्तन और जवाबदेही
डीजीपी ने कहा कि भारत की ड्रग्स-विरोधी लड़ाई की सबसे बड़ी कमजोरी 'समन्वय की कमी' है। उन्होंने कहा, 'हमें 'जरूरत पड़ने पर साझा करने' की मानसिकता से निकलकर 'साझा करना हमारा कर्तव्य है' की सोच अपनानी होगी।' उन्होंने सुझाव दिया कि राज्यों के बीच गिरफ्तार आरोपियों की 24 घंटे के भीतर संयुक्त पूछताछ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि ड्रोन और सैटेलाइट मैपिंग से अफीम की खेती और छिपी हुई ड्रग लैब्स को खोजकर नष्ट किया जा सकता है।
'कमजोर अभियोजन हमारी सबसे बड़ी कमजोरी'
उन्होंने कहा, 'अगर कानूनी प्रक्रिया में हम कमजोर हैं, तो सारी मेहनत व्यर्थ हो जाती है।' डीजीपी ने सुझाव दिया कि एनडीपीएस मामलों में साजिश, तैयारी और प्रयास से जुड़े सबूतों का बेहतर दस्तावेजीकरण किया जाए और साझा अपराधी डाटाबेस तैयार हो जिसमें बायोमैट्रिक और फोटो जैसी जानकारी सभी एजेंसियों को उपलब्ध हो।
कानून और नीति में सुधार की मांग
उन्होंने एनडीपीएस अधिनियम, 1985 में समग्र संशोधन की जरूरत बताई ताकि आधुनिक चुनौतियों को शामिल किया जा सके और सज़ाओं को गंभीरता के आधार पर वर्गीकृत किया जाए। साथ ही उन्होंने 'पूर्वोत्तर एंटी-ड्रग ट्रैफिकिंग एजेंसी' बनाने का प्रस्ताव दिया जो क्षेत्रीय स्तर पर अभियानों का समन्वय करे। हर राज्य में समर्पित नारकोटिक्स फॉरेंसिक लैब और मोबाइल फॉरेंसिक यूनिट स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया।
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जनता की भागीदारी और हेल्पलाइन योजना
डीजीपी ने 'नशा मुक्त भारत हेल्पलाइन और इनाम प्रणाली' शुरू करने का सुझाव दिया ताकि लोग गुप्त रूप से ड्रग से जुड़ी गतिविधियों की जानकारी दे सकें। उन्होंने यह भी कहा कि पीआईटीएनडीपीएस कानून के तहत रोकथामात्मक हिरासत के लिए एक समान दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं ताकि इसका गलत इस्तेमाल न हो।
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'पूर्वोत्तर अब भारत की नशे के खिलाफ लड़ाई का केंद्र बिंदु'
डीजीपी ने कहा कि भारत-म्यांमार सीमा, जो ज्यादातर खुली और बिना बाड़ की है, ड्रग तस्करों के लिए बड़ी आसान राह बन गई है। 'फ्री मूवमेंट रीजीम' के तहत सीमा पार लोग आसानी से आते-जाते हैं, जिससे मादक पदार्थों की तस्करी पर नियंत्रण कठिन हो गया है। उन्होंने कहा, 'ड्रग तस्करी और नशे की लत अब सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि आंतरिक सुरक्षा और युवाओं के भविष्य का सीधा खतरा बन चुके हैं।'
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नगालैंड में करीब 1.2 लाख नशेड़ी- डीजीपी
डीजीपी के अनुसार, केवल नगालैंड में ही करीब 1.2 लाख ड्रग्स उपभोक्ता हैं, जिनमें से अधिकांश 'शानफ्लावर' नाम से जानी जाने वाली हेरोइन का सेवन करते हैं। उन्होंने अनुमान लगाया कि 'अगर इनमें से आधे लोग रोजाना सिर्फ आधा ग्राम लेते हैं, तो नगालैंड में हर साल करीब 10,000 किलो हेरोइन की खपत होती है, जबकि पूरे पूर्वोत्तर में यह आंकड़ा एक लाख किलो तक जा सकता है।' उन्होंने बताया कि ड्रग्स की अवैध कमाई से न केवल संगठित अपराध बल्कि उग्रवाद और नार्को-टेररिज्म को भी बढ़ावा मिल रहा है। उन्होंने कहा, 'कई उग्रवादी गुटों के सदस्य खुद ड्रग तस्करी में शामिल हैं।' उनके शब्दों में, 'ड्रग कार्टेल को खत्म करना यानी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना।'
तीन-स्तरीय रणनीति: समन्वय, प्रवर्तन और जवाबदेही
डीजीपी ने कहा कि भारत की ड्रग्स-विरोधी लड़ाई की सबसे बड़ी कमजोरी 'समन्वय की कमी' है। उन्होंने कहा, 'हमें 'जरूरत पड़ने पर साझा करने' की मानसिकता से निकलकर 'साझा करना हमारा कर्तव्य है' की सोच अपनानी होगी।' उन्होंने सुझाव दिया कि राज्यों के बीच गिरफ्तार आरोपियों की 24 घंटे के भीतर संयुक्त पूछताछ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि ड्रोन और सैटेलाइट मैपिंग से अफीम की खेती और छिपी हुई ड्रग लैब्स को खोजकर नष्ट किया जा सकता है।
'कमजोर अभियोजन हमारी सबसे बड़ी कमजोरी'
उन्होंने कहा, 'अगर कानूनी प्रक्रिया में हम कमजोर हैं, तो सारी मेहनत व्यर्थ हो जाती है।' डीजीपी ने सुझाव दिया कि एनडीपीएस मामलों में साजिश, तैयारी और प्रयास से जुड़े सबूतों का बेहतर दस्तावेजीकरण किया जाए और साझा अपराधी डाटाबेस तैयार हो जिसमें बायोमैट्रिक और फोटो जैसी जानकारी सभी एजेंसियों को उपलब्ध हो।
कानून और नीति में सुधार की मांग
उन्होंने एनडीपीएस अधिनियम, 1985 में समग्र संशोधन की जरूरत बताई ताकि आधुनिक चुनौतियों को शामिल किया जा सके और सज़ाओं को गंभीरता के आधार पर वर्गीकृत किया जाए। साथ ही उन्होंने 'पूर्वोत्तर एंटी-ड्रग ट्रैफिकिंग एजेंसी' बनाने का प्रस्ताव दिया जो क्षेत्रीय स्तर पर अभियानों का समन्वय करे। हर राज्य में समर्पित नारकोटिक्स फॉरेंसिक लैब और मोबाइल फॉरेंसिक यूनिट स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया।
यह भी पढ़ें - Tamil Nadu: राजभवन गेट के बाहर पेट्रोल हमले के आरोपी को NIA अदालत ने सुनाई सजा, 10 साल की सख्त जेल और जुर्माना
जनता की भागीदारी और हेल्पलाइन योजना
डीजीपी ने 'नशा मुक्त भारत हेल्पलाइन और इनाम प्रणाली' शुरू करने का सुझाव दिया ताकि लोग गुप्त रूप से ड्रग से जुड़ी गतिविधियों की जानकारी दे सकें। उन्होंने यह भी कहा कि पीआईटीएनडीपीएस कानून के तहत रोकथामात्मक हिरासत के लिए एक समान दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं ताकि इसका गलत इस्तेमाल न हो।
'यह लंबी लड़ाई है, लेकिन हमें जीतना ही होगा'
डीजीपी रूपिन शर्मा ने कहा, 'एक नशेड़ियों का पुनर्वास होना, किसी ड्रग कार्टेल की हार के बराबर है।' उन्होंने एनजीओ, चर्च और सामाजिक संगठनों से मिलकर नशा-मुक्त समाज बनाने की अपील की। आखिरी में डीजीपी ने कहा, 'नशे के खिलाफ यह एक लंबा युद्ध है, जो कठिन सीमाओं पर लड़ा जा रहा है। हमें ड्रग सरगनाओं को निशाना बनाना होगा, एजेंसियों के बीच भरोसा बढ़ाना होगा और पूर्वोत्तर के भविष्य को सुरक्षित करना होगा, एक सच्चे 'ड्रग-फ्री इंडिया' के लिए।'
NCB महानिदेशक ने मजबूत अंतर-एजेंसी समन्वय का किया आह्वान
वहीं इस दौरान नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के महानिदेशक अनुराग गर्ग ने मादक पदार्थों की तस्करी और दुरुपयोग को देश की 'उभरती सुरक्षा चुनौतियों' में से एक बताया है और चेतावनी दी है कि अवैध मादक पदार्थों का धन आतंकवाद के वित्तपोषण, हथियारों की तस्करी और धन शोधन सहित संगठित अपराधों में तेजी से इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे के जन स्वास्थ्य, पारिवारिक कल्याण और राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
उन्होंने आगाह किया कि मादक पदार्थों की आसान उपलब्धता न केवल लत को बढ़ावा देती है, बल्कि घरेलू हिंसा, सामाजिक अस्थिरता और राज्य पर बढ़ते स्वास्थ्य सेवा बोझ में भी योगदान देती है। उन्होंने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के 2019 के एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा, 'युवा, जिन्हें अर्थव्यवस्था की प्रेरक शक्ति होना चाहिए, बोझ बन गए हैं।' इस सर्वेक्षण में पाया गया कि कई पूर्वोत्तर राज्यों में नशीली दवाओं की खपत दर राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है।
डीजीपी रूपिन शर्मा ने कहा, 'एक नशेड़ियों का पुनर्वास होना, किसी ड्रग कार्टेल की हार के बराबर है।' उन्होंने एनजीओ, चर्च और सामाजिक संगठनों से मिलकर नशा-मुक्त समाज बनाने की अपील की। आखिरी में डीजीपी ने कहा, 'नशे के खिलाफ यह एक लंबा युद्ध है, जो कठिन सीमाओं पर लड़ा जा रहा है। हमें ड्रग सरगनाओं को निशाना बनाना होगा, एजेंसियों के बीच भरोसा बढ़ाना होगा और पूर्वोत्तर के भविष्य को सुरक्षित करना होगा, एक सच्चे 'ड्रग-फ्री इंडिया' के लिए।'
NCB महानिदेशक ने मजबूत अंतर-एजेंसी समन्वय का किया आह्वान
वहीं इस दौरान नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के महानिदेशक अनुराग गर्ग ने मादक पदार्थों की तस्करी और दुरुपयोग को देश की 'उभरती सुरक्षा चुनौतियों' में से एक बताया है और चेतावनी दी है कि अवैध मादक पदार्थों का धन आतंकवाद के वित्तपोषण, हथियारों की तस्करी और धन शोधन सहित संगठित अपराधों में तेजी से इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे के जन स्वास्थ्य, पारिवारिक कल्याण और राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
उन्होंने आगाह किया कि मादक पदार्थों की आसान उपलब्धता न केवल लत को बढ़ावा देती है, बल्कि घरेलू हिंसा, सामाजिक अस्थिरता और राज्य पर बढ़ते स्वास्थ्य सेवा बोझ में भी योगदान देती है। उन्होंने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के 2019 के एक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा, 'युवा, जिन्हें अर्थव्यवस्था की प्रेरक शक्ति होना चाहिए, बोझ बन गए हैं।' इस सर्वेक्षण में पाया गया कि कई पूर्वोत्तर राज्यों में नशीली दवाओं की खपत दर राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है।