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11 साल की हुई राजठाकरे की मनसे, पार्टी ने अब तक क्या खोया और क्या पाया?

amarujala.com- Presented by: संदीप भट्ट Updated Thu, 09 Mar 2017 04:03 PM IST
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Raj Thackeray’s MNS turns 11, faces its worst crisis in Maharashtra
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शिवसेना से अलग हुए बालठाकरे के भतीजे राजठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना 11 साल की हो गई है। महाराष्ट्र की राजनीति में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कभी किंगमेकर की भूमिका में थी, लेकिन अब पार्टी राज्य की राजनीति के हा‌शिए पर है।

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हिंदुत्व की राजनीति करने वाले बाल ठाकरे ने मुंबई और महाराष्ट्र के विकास के लिए एक अलग पैमाना बनाने के साथ-साथ एक कार्यशैली भी तैयार की, जिसका उन्हें फायदा भी मिला।
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वहीं राज ठाकरे की मनसे के लगातार बेहद खराब प्रदर्शन के चलते पार्टी के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों ने इसके लिए पार्टी प्रमुख राज ठाकरे को दोषी ठहराया।

हिंदुस्तान टाइम्स की एक खबर के मुता‌बिक राजनीतिक टिप्‍णीकार सुरेंद्र जौधले का कहना है कि राजठाकरे जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में नाकामयाब रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजठाकरे ने जब 2006 में पार्टी की शुरूआत की तो वे राज्य की राजनीति में बड़ी तेजी से आगे बढ़ने वाले नेता के तौर पर उभर कर सामने आए।

राजठाकरे विपक्ष में पैदा हुए खालीपन को भर सकते थे लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए। ' राज ठाकरे ने न तो एक मजबूत संगठनात्मक नेटवर्क का निर्माण किया, न ही वे अपने चाचा बाल ठाकरे (शिवसेना के संस्थापक) के बाद दूसरी पंक्ति के नेतृत्व में जगह बना पाए। बालठाकरे उनके राजनीतिक गुरु थे।'

पार्टी के पास अब मुंबई नगर निकाय में सिर्फ सात नगरसेवक हैं, पहले यह आंकड़ा 28 था। वर्ष 2009 में 13 के मुकाबले महाराष्ट्र विधानसभा में मनसे के सिर्फ एक विधायक शरद सोनावेन हैं। नासिक नगर निगम चुनाव में मनसे ने 40 सीटों के साथ सत्ता संभाली थी।

'राज ठाकरे ने जनादेश गंवा दिया'

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राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बल कहते हैं कि 'ठाकरे को पता होना चाहिए कि महाराष्ट्रीयन युवा महानगरीय बन गए हैं उनकी आकांक्षाएं बदल रही हैं। वह अब एक संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं रख सकता है। "राज ठाकरे को अब एक गंभीर राजनीतिज्ञ के रूप में नहीं देखा जा रहा है क्योंकि उन्होंने जनादेश गवां दिया है।'

राज ठाकरे शिवसेना में शीर्ष नेताओं में से थे उन्हें बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया। विशेषज्ञों का मानना है कि जब बालठाकरे ने पार्टी के नीतिगत मामलों में अपने बेटे उद्घव ठाकरे को बढावा देना शुरू किया तो राजठाकरे और उद्घ के बीच में दरार पैदा ‌होने लगी।

2005 में राजठाकरे ने पार्टी छोड़ 2006 में अपनी पार्टी मनसे बनाई। उन्होंने 2007 के चुनाव में शुरूआत की और 7 सीटें जीती। कई लोंगो का कहना था पार्टी दम तोड़ रही है। लेकिन 2008 में पार्टी को नई ताकत मिली। राजठाकरे ने संसदीय और विधानसभा दोनों चुनावों में शिवसेना-भाजपा वोट बैंक को दबाने के लिए बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था और दोनों चुनावों में उनकी हार सुनिश्चित की।

लेकिन 2014 के संसदीय और विधानसभा चुनावों में, मोदी लहर ने मनसे को सत्ता से दूर कर दिया और नतीजन मनसे के शीर्ष नेताओं  में प्रवीण दरेकर, राम कदम, रमेश पाटिल और वसंत गित ने पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए।

हालांकि मनसे नेता नितिन सरदेसाई ने पार्टी का बचाव करते हुए कहा कि मनसे वापस आएगी और अपने स्टैंड सन ऑफ सॉयल आज भी प्रासंगिक है। प्रत्येक दल में उतार चढ़ाव आते हैं मनसे फिर से जोरदार वापसी करेगी।

उनका कहना है कि जब अमेरिका मिट्टी के बेटों की बात कर रहा है, यह कैसे प्रासंगिक नहीं है? सरदेसाई ने कहा पार्टी आत्मथन मोड पर है। उन्होंने आगे कहा कि "हम इस वक्त अब बहुत बुरी स्थिति में हैं तो चीजें केवल बेहतर हो सकती हैं।

खतरे में मनसे का राजनीतिक भविष्य

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शुरुआती दिनों में मनसे काफी मजबूती से आगे बढ़ी और 2009 के विधानसभा चुनाव में उसे 13 सीटों पर जीत मिली। इसमें छह सीट उसे मुंबई, दो सीट थाने, तीन सीट नासिक, एक सीट पुणे और औरंगाबाद के कन्नाद से एक सीट मिली। यही नहीं, 24 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही। हालांकि, साल 2009 के आम चुनाव में उसकी फजीहत हुई और उसे कोई खास सफलता नहीं मिली।


साल 2012 के महाराष्ट्र निकाय चुनाव में उसे विधानसभा की तरह सफलता तो नहीं मिली, लेकिन फिर भी उसका प्रदर्शन ठीक-ठाक कहा जा सकता है। बृहन्मुंबई में उसे 227 सीट में से 28 सीट, पुणे में 152 सीट में से 29 सीट, नागपुर में 145 में से दो सीट, थाने में 130 में से दो सीट, पिंपरी-चिंचवाड़ में 128 में से 4 सीट, नासिक में 122 में से 40, सोलापुर और अमरावती में खाता नहीं खुला, उल्हासनगर में 78 में से एक सीट और अकोला में 73 में से एक सीट मिली।  

साल 2014 के आम चुनाव में एक बार फिर मनसे को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं, उसका वोटिंग प्रतिशत भी काफी घटा। साल 2014 के विधानसभा में भी उसे बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। जहां 2009 में उसे 13 सीट मिली थी, वहीं इस बार उसे मात्र एक सीट मिली। 

इन चुनावों में हार के साथ ही मुंबई में राज ठाकरे की धमक कमजोर पड़ने लगी। जिसे एग्रेसिव और परिवर्तन की राजनीति के साथ वह शिवसेना से अलग हुई थी वह फीकी पड़ने लगी। इसका असर 2017 निकाय चुनाव में भी देखने को मिला।

बीएमसी चुनाव में मनसे को मात्र सात सीटें ही मिल पाईं । लगातार गिरते प्रदर्शन से मनसे का भविष्य खतरे में दिख रहा है। अब देखना ये होगा कि राज ठाकरे मनसे को बचाने को और अपना राजनीतिक भविष्‍य तय करने के लिए कौन सी रणनीति और रास्ता अख्‍तियार करते हैं। 
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