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चिंताजनक: हवा में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड छीन रहा फसलों का पोषण, भविष्य में पौष्टिक भोजन भी बन सकता है बेअसर

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: शिवम गर्ग Updated Tue, 30 Dec 2025 07:20 AM IST
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सार

हवा में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड गेहूं, धान और दालों से प्रोटीन, आयरन व जिंक जैसे जरूरी पोषक तत्व कम कर रही है। वैज्ञानिकों ने इसे भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी बताया है।

Rising CO2 Levels Reducing Nutrients in Crops, Future Food May Fail to Meet Nutritional Needs
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : संवाद
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जलवायु परिवर्तन का असर अब सिर्फ मौसम और तापमान तक सीमित नहीं रहा। हवा में लगातार बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) अब हमारी थाली तक पहुंच चुका है। नीदरलैंड की लीडन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के नए अध्ययन से चेतावनी मिली है कि वातावरण में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड गेहूं, धान, चना जैसी प्रमुख फसलों से प्रोटीन, जिंक और आयरन जैसे जरूरी पोषक तत्व छीन रहा है। यदि यही रफ्तार जारी रही, तो भविष्य में स्वस्थ भोजन भी शरीर की पोषण जरूरतें पूरी करने में नाकाम हो सकता है।

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यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। यह शोध भारत सहित 15 देशों में सीओ2 के बढ़ते स्तर और पौधों पर उसके प्रभाव से जुड़े पहले से उपलब्ध अध्ययनों के व्यापक विश्लेषण पर आधारित है। वैज्ञानिकों ने अलग-अलग प्रयोगों से जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर गेहूं, धान, चना, आलू, टमाटर जैसी 43 फसलों का विश्लेषण किया और उनमें मौजूद 32 पोषक तत्वों पर सीओ2 के असर को मापा। सीओ2 जितना बढ़ेगा, पोषण उतना घटेगा। अध्ययन में यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि सीओ2 का असर सीधा और अनुपातिक है।
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जहरीले तत्वों का बढ़ता खतरा
शोध में इस बात के भी संकेत मिले हैं कि सीओ2 के बढ़ते स्तर के कारण फसलों में सीसा (लेड) जैसे जहरीले तत्वों की मात्रा बढ़ सकती है। लंबे समय तक ऐसे तत्वों का सेवन मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकता है, खासकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए।

धान-गेहूं पर क्यों है सबसे बड़ा संकट
दुनिया की बड़ी आबादी, खासकर एशिया और अफ्रीका के देशों में, रोजमर्रा के भोजन के लिए धान और गेहूं पर निर्भर है। अध्ययन के अनुसार सीओ2 बढ़ने पर इन दोनों फसलों में पोषण सबसे तेजी से गिर सकता है। इसका सीधा मतलब यह है कि सबसे ज्यादा असर उन्हीं लोगों पर पड़ेगा, जिनकी थाली पहले से सीमित है और जो पहले ही कुपोषण के खतरे से जूझ रहे हैं।

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