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SC: नीतीश कटारा के हत्यारे विकास यादव को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं; दूसरे केस में गुजरात सरकार व ED को नोटिस

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: पवन पांडेय Updated Mon, 08 Sep 2025 01:03 PM IST
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SC Updates: No relief to Nitish Katara's killer Vikas Yadav; Notice to Gujarat govt and ED in second case
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : एएनआई (फाइल)
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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नीतीश कटारा हत्याकांड के दोषी विकास यादव की अंतरिम जमानत बढ़ाने से मना कर दिया। विकास यादव 25 साल की सजा काट रहा है और अब तक 23 साल जेल में रह चुका है। कोर्ट ने कहा कि वह जमानत बढ़ाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का रुख करे। विकास यादव ने अपनी शादी और 54 लाख रुपये का जुर्माना भरने की जरूरत का हवाला देकर जमानत मांगी थी। पहले सुप्रीम कोर्ट ने उसकी जमानत एक हफ्ते के लिए बढ़ाई थी।
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विकास, यूपी के पूर्व नेता डी.पी. यादव का बेटा है। वह और उसका चचेरा भाई विशाल यादव, नीतीश कटारा के अपहरण और हत्या के दोषी हैं। नीतीश और विकाश की बहन भारती यादव के रिश्ते का परिवार ने विरोध किया था क्योंकि वे अलग जातियों से थे। तीसरे आरोपी सुखदेव पहलवान को 20 साल की सजा मिली थी, जिसे वह पूरी कर चुका है। 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने उसे रिहा करने का आदेश दिया था।
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पत्रकार महेश लांगा की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात सरकार और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से पत्रकार महेश लांगा की जमानत याचिका पर जवाब मांगा। लांगा पर मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय धोखाधड़ी का आरोप है। महेश लांगा की जमानत पहले गुजरात हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों ने पूछा, 'वह किस तरह के पत्रकार हैं?' कोर्ट ने टिप्पणी की कि कई लोग खुद को पत्रकार बताते हैं, जबकि उनकी गतिविधियां अलग होती हैं।

महेश लांगा पर कई एफआईआर दर्ज हैं। पहले दो मामलों में उन्हें अग्रिम जमानत मिली थी, लेकिन तीसरे मामले में टैक्स चोरी का आरोप लगा। फरवरी 2025 में ईडी ने उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार किया था। यह मामला अहमदाबाद पुलिस की दो एफआईआर पर आधारित है, जिसमें धोखाधड़ी और करोड़ों के गबन के आरोप हैं।

तमिलनाडु में कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति पर 'सुप्रीम' नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार से पूछा कि राज्य में कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक क्यों नियुक्त किया गया। कोर्ट ने यूपीएससी को नियमित डीजीपी की नियुक्ति के लिए जल्द नाम सुझाने का आदेश दिया। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यूपीएससी की सिफारिश मिलने के बाद राज्य सरकार नियमित नियुक्ति करे।

यह याचिका वकील हेनरी टिफैग्ने ने दायर की थी। उनका कहना है कि 2018 के प्रकाश सिंह मामले के फैसले के अनुसार, राज्य सरकार को डीजीपी की नियुक्ति से तीन महीने पहले यूपीएससी को नाम भेजना जरूरी है। तमिलनाडु सरकार ने दलील दी कि एक अधिकारी ने कैट में याचिका दायर की है, जिसके कारण स्थायी डीजीपी की नियुक्ति फिलहाल नहीं हो सकी।

एल्गार परिषद केस- आरोपी की जमानत याचिका पर 15 सितंबर को सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी महेश राउत की चिकित्सा आधार पर जमानत याचिका पर 15 सितंबर को सुनवाई करने का फैसला किया। न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ राउत की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने बॉम्बे उच्च न्यायालय से जमानत मिलने के बावजूद उन्हें जेल में रखे जाने को चुनौती दी थी।

उच्च न्यायालय ने राउत की जमानत याचिका स्वीकार कर ली, लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अनुरोध पर अपने ही आदेश पर एक हफ्ते के लिए रोक लगा दी। इसके बाद शीर्ष अदालत ने मामले में उनकी रिहाई पर लगी रोक बढ़ा दी। सोमवार को, राउत के वकील ने कहा कि कार्यकर्ता रूमेटाइड अर्थराइटिस से पीड़ित हैं और उन्हें विशेष चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता है जो जेल या जेजे अस्पताल में उपलब्ध नहीं है, जहां उनकी जांच की गई है।

वेदांता के खिलाफ याचिका पर सुनवाई से जस्टिस चंद्रन ने खुद को किया अलग
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस के विनोद चंद्रन ने वेदांता समूह के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इस याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया था कि अमेरिकी शॉर्ट सेलर वायसराय रिसर्च के आरोपों की जांच के लिए अधिकारियों को आदेश दिया जाए। अमेरिकी शॉर्ट सेलर का आरोप है कि अरबपति अनिल अग्रवाल का खनन समूह वित्तीय रूप से अस्थिर है और ऋणदाताओं के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर रहा है। वेदांता समूह ने इन आरोपों को चुनिंदा गलत सूचना और निराधार बताया था, जिसका उद्देश्य समूह को बदनाम करना था।

सीजेआई जस्टिस बीआर गवई व जस्टिस अतुल चंदुरकर की पीठ ने जस्टिस चंद्रन के सुनवाई से अलग होने पर संज्ञान लेते हुए, वकील शक्ति भाटिया की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। भाटिया ने याचिका में तर्क दिया कि उन्होंने एमसीए21 फाइलिंग, सेबी के खुलासे और कंपनी रजिस्ट्रार के रिकॉर्ड की समीक्षा की है। इसके आधार पर वायसराय रिपोर्ट के कुछ हिस्सों, विशेष रूप से अघोषित लेनदेन की पुष्टि होती है। याचिका में कहा गया कि कुछ उच्च मूल्य वाले लेनदेन में प्रतिपक्षों को न तो संबंधित पक्ष घोषित किया गया और न ही अनिवार्य रूप से शेयरधारकों की मंजूरी ली गई। वायसराय ने 85 पन्नों की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था कि वह मुंबई में सूचीबद्ध वेदांता लिमिटेड की मूल कंपनी और बहुलांश मालिक वेदांता रिसोर्सेज के ऋण भार को कम कर रहा है।

गोवा के महादेई-कोटिगांव क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश
 सुप्रीम कोर्ट ने गोवा के महादेई-कोटीगांव क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। यह इलाका नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की ओर से टाइगर रिजर्व के रूप में चिन्हित किया गया है।
चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की पीठ ने आदेश में कहा कि इस दौरान कोई नई परियोजना या विकास कार्य शुरू नहीं होगा। कोर्ट ने केंद्रीय सशक्त समिति को छह हफ्तों में सभी पक्षों की सुनवाई कर फैसला करने को कहा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने गोवा सरकार को तीन महीने में महादेई वन्यजीव अभयारण्य और आसपास के क्षेत्रों को टाइगर रिजर्व घोषित करने का आदेश दिया था। इस आदेश को गोवा सरकार और अन्य पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। महादेई वन्यजीव अभयारण्य करीब 208 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह मामला एनजीओ गोवा फाउंडेशन की याचिका पर शुरू हुआ था, जिसमें बाघों की सुरक्षा और संरक्षण योजना बनाने की मांग की गई थी।

एएमयू की पहली महिला कुलपति के तौर पर प्रोफेसर खातून की नियुक्ति बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति के रूप में प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। उनकी नियुक्ति को प्रोफेसर मुजफ्फर उरुज रब्बानी और प्रोफेसर फैजान मुस्तफा ने चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने हाईकोर्ट की टिप्पणियों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि तत्कालीन एएमयू कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज, जो पैनल के लिए प्रोफेसर खातून का नाम चुनने वाली कार्यकारी परिषद की बैठक का हिस्सा थे, की अध्यक्षता और भागीदारी अनुचित थी। गुलरेज, प्रोफेसर खातून के पति हैं। सिब्बल ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने माना था कि चयन प्रक्रिया से गुलरेज का अनुपस्थित रहना वांछनीय था। उन्होंने कहा, अगर इस मामले में कोई नोटिस जारी नहीं किया गया तो फिर किस स्थिति में नोटिस जारी किया जाएगा। जब अदालत ने उनकी याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया तो उन्होंने आग्रह किया, कृपया ऐसा न करें। यह पिछले 70 वर्षों से चले आ रहे पूरे कानून को दरकिनार कर रहा है। हालांकि पीठ ने सिब्बल को स्पष्ट कर दिया कि वह इस मामले में उनकी दलीलों पर विचार करने को तैयार नहीं है। पीठ ने कहा, हम कुछ नहीं कर रहे हैं। मालूम हो कि 18 अगस्त को जब मामला सुनवाई के लिए आया था तब सीजेआई जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने मौखिक रूप से कहा था कि जब पत्नी का नाम विचाराधीन है तब पति की भागीदारी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह पैदा करती है। अदालत ने तब प्रोफेसर खातून की नियुक्ति पर सवाल उठाया था। पीठ ने कहा था कि प्रोफेसर गुलरेज उस कार्यकारी परिषद की बैठक में शामिल थे जिसने पैनल के लिए उनका नाम चुना था। इसके बाद जस्टिस चंद्रन ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
 

मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पत्रकार की याचिका पर ईडी को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार गुजरात के पत्रकार महेश लांगा की याचिका पर प्रवर्तन निदेशालय और अन्य को नोटिस जारी किया।

आरोपी लांगा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष दलील दी कि एक प्राथमिकी में उन्हें अग्रिम जमानत मिल गई है। दूसरी प्राथमिकी में भी उन्हें अग्रिम जमानत मिल गई लेकिन तीसरी प्राथमिकी में आयकर चोरी का आरोप है। पीठ ने सिब्बल से पूछा कि वह किस तरह के पत्रकार हैं?

पीठ ने कहा, "पूरे सम्मान के साथ, कुछ बहुत ही सच्चे पत्रकार हैं। लेकिन कुछ लोग स्कूटर पर सवार होकर कह रहे हैं कि हम पत्रकार हैं और वे क्या करते हैं, यह सबको पता है।" हालांकि सिब्बल ने जवाब दिया कि ये सभी आरोप हैं। अदालत ने नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ता की याचिका पर राज्य सरकार और प्रवर्तन निदेशालय से जवाब मांगा।

 उपराज्यपाल मानहानि मामले में मेधा पाटकर ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ली
 नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की नेता मेधा पाटकर ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी वह याचिका वापस ले ली जिसमें उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में उन्हें दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के खिलाफ दायर 25 साल पुराने मानहानि मामले में और गवाहों से पूछताछ करने से मना कर दिया था।

जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने शुरू में कहा था कि मामले को बंद कर देना चाहिए और वह यह आदेश देने वाली थी कि कोई भी पक्ष मामले में आगे नहीं बढ़ेगा। पीठ हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती देने के संबंध में मेधा पाटकर को कोई राहत देने के लिए तैयार नहीं थी। पीठ के रुख को भांपते हुए, मेधा पाटकर के वकील ने याचिका वापस लेने का फैसला किया।

सुप्रीम कोर्ट ने ससुराल से निकाली गई विधवा के संपत्ति अधिकार बहाल किए
 उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक विधवा के संपत्ति के अधिकार को बहाल कर दिया जिसे उसके ससुराल वालों द्वारा उसके बेटे की जीवन बीमा पॉलिसी से पैसा हड़प लेने के बाद ससुराल से निकाल दिया गया था।

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