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SC: 'AI से हो निगरानी, कैमरा बंद होने पर आए अलर्ट', थानों में CCTV काम न करने पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Mon, 15 Sep 2025 03:52 PM IST
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सार
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के पुलिस थानों में काम न करने वाले सीसीटीवी कैमरों पर चिंता जताते हुए कहा कि यह निगरानी की कमी का मुद्दा है। अदालत ने सुझाव दिया कि सभी कैमरों की निगरानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से हो और यदि कोई कैमरा बंद हो तो तुरंत रिपोर्ट बने।

सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों के ठीक से काम न करने के मुद्दे पर गंभीर टिप्पणी की है। अदालत ने साफ कहा कि यह "ओवरसाइट" यानी निगरानी की कमी का मामला है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सोमवार को कहा कि इस पर अंतिम आदेश 26 सितंबर को दिया जाएगा।
पीठ ने कहा कि निगरानी का सबसे कारगर तरीका यही है कि एक ऐसा कंट्रोल रूम बने जिसमें कोई मानवीय हस्तक्षेप न हो। वहां सभी कैमरों की फीड पहुंचे और अगर कोई कैमरा बंद होता है तो तुरंत उसका अलर्ट मिल सके। अदालत ने कहा कि अन्यथा इस समस्या का कोई समाधान नहीं है।
हर थाने का स्वतंत्र निरीक्षण जरूरी
न्यायालय ने सुझाव दिया कि शुरुआती स्तर पर सभी पुलिस थानों का स्वतंत्र एजेंसी से निरीक्षण कराया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि इस काम में किसी आईआईटी को शामिल कर सॉफ्टवेयर विकसित कराया जा सकता है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से निगरानी हो और कैमरा बंद होने पर तुरंत रिपोर्ट तैयार हो।
ये भी पढ़ें- 'केवल दुर्लभतम मामलों में ही रोक लगाई जा सकती', जानें वक्फ को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
पहले भी जारी किए थे निर्देश
अदालत ने कहा कि यदि कोई कैमरा बंद होता है तो उसकी रिपोर्ट कानूनी सेवा प्राधिकरण या निगरानी एजेंसी को तुरंत मिलनी चाहिए। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे, जो इस मामले में *एमिकस क्यूरी* नियुक्त हैं, ने कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक 2020 के आदेश का पालन नहीं किया है। उस आदेश में सीबीआई, ईडी और एनआईए जैसे केंद्रीय एजेंसियों के दफ्तरों में भी सीसीटीवी लगाने का निर्देश था।
केंद्र और राज्यों की स्थिति
दवे ने बताया कि अब तक न तो एनआईए, न ईडी और न ही सीबीआई ने इस आदेश का पालन किया है। हालांकि कुछ राज्यों ने दिसंबर 2020 के निर्देश के तहत अपने पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं। अदालत ने टिप्पणी की कि कई बार पुलिस खुद कैमरे बंद कर देती है या उन्हें मोड़ देती है, जिससे आदेश का उद्देश्य विफल हो जाता है।
ये भी पढ़ें- मणिपुर में फिर बढ़ा तनाव, चुराचांदपुर में कुकी नेता के घर में लगाई गई आग; NH-2 को लेकर भी फैला भ्रम
हिरासत में मौतों पर चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने 4 सितंबर को स्वतः संज्ञान लिया था जब एक मीडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि राजस्थान में आठ महीनों में 11 पुलिस हिरासत मौतें हुईं, जिनमें से सात उदयपुर में हुईं। अदालत ने कहा कि उसने 2018 में ही पुलिस थानों में सीसीटीवी लगाने का आदेश दिया था, ताकि मानवाधिकार उल्लंघनों को रोका जा सके।
दिसंबर 2020 में फिर से आदेश दिया गया कि सभी पुलिस थानों में प्रवेश-द्वार, लॉकअप, लॉबी, गलियारे और रिसेप्शन जैसे स्थानों पर कैमरे लगाए जाएं और उनकी फुटेज कम से कम एक साल तक सुरक्षित रखी जाए।
मानवाधिकार सुरक्षा पर फोकस
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीसीटीवी कैमरे केवल दिखावे के लिए नहीं होने चाहिए बल्कि पूरी तरह कार्यात्मक होने चाहिए। यह कदम इसलिए जरूरी है ताकि हिरासत में उत्पीड़न और मौत जैसे गंभीर मामलों की पारदर्शी निगरानी हो सके। अदालत ने साफ कर दिया कि वह इस मामले को हल्के में नहीं लेगी और ठोस समाधान तलाशेगी।

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हर थाने का स्वतंत्र निरीक्षण जरूरी
न्यायालय ने सुझाव दिया कि शुरुआती स्तर पर सभी पुलिस थानों का स्वतंत्र एजेंसी से निरीक्षण कराया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि इस काम में किसी आईआईटी को शामिल कर सॉफ्टवेयर विकसित कराया जा सकता है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से निगरानी हो और कैमरा बंद होने पर तुरंत रिपोर्ट तैयार हो।
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पहले भी जारी किए थे निर्देश
अदालत ने कहा कि यदि कोई कैमरा बंद होता है तो उसकी रिपोर्ट कानूनी सेवा प्राधिकरण या निगरानी एजेंसी को तुरंत मिलनी चाहिए। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे, जो इस मामले में *एमिकस क्यूरी* नियुक्त हैं, ने कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक 2020 के आदेश का पालन नहीं किया है। उस आदेश में सीबीआई, ईडी और एनआईए जैसे केंद्रीय एजेंसियों के दफ्तरों में भी सीसीटीवी लगाने का निर्देश था।
केंद्र और राज्यों की स्थिति
दवे ने बताया कि अब तक न तो एनआईए, न ईडी और न ही सीबीआई ने इस आदेश का पालन किया है। हालांकि कुछ राज्यों ने दिसंबर 2020 के निर्देश के तहत अपने पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं। अदालत ने टिप्पणी की कि कई बार पुलिस खुद कैमरे बंद कर देती है या उन्हें मोड़ देती है, जिससे आदेश का उद्देश्य विफल हो जाता है।
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हिरासत में मौतों पर चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने 4 सितंबर को स्वतः संज्ञान लिया था जब एक मीडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि राजस्थान में आठ महीनों में 11 पुलिस हिरासत मौतें हुईं, जिनमें से सात उदयपुर में हुईं। अदालत ने कहा कि उसने 2018 में ही पुलिस थानों में सीसीटीवी लगाने का आदेश दिया था, ताकि मानवाधिकार उल्लंघनों को रोका जा सके।
दिसंबर 2020 में फिर से आदेश दिया गया कि सभी पुलिस थानों में प्रवेश-द्वार, लॉकअप, लॉबी, गलियारे और रिसेप्शन जैसे स्थानों पर कैमरे लगाए जाएं और उनकी फुटेज कम से कम एक साल तक सुरक्षित रखी जाए।
मानवाधिकार सुरक्षा पर फोकस
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीसीटीवी कैमरे केवल दिखावे के लिए नहीं होने चाहिए बल्कि पूरी तरह कार्यात्मक होने चाहिए। यह कदम इसलिए जरूरी है ताकि हिरासत में उत्पीड़न और मौत जैसे गंभीर मामलों की पारदर्शी निगरानी हो सके। अदालत ने साफ कर दिया कि वह इस मामले को हल्के में नहीं लेगी और ठोस समाधान तलाशेगी।
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