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Supreme Court: 'पर्यावरण को नुकसान तो जिम्मेदारी से बच नहीं सकते', कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट का सख्त संदेश

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: हिमांशु चंदेल Updated Sat, 20 Dec 2025 06:11 AM IST
सार

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कंपनियां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर जिम्मेदारी से नहीं बच सकतीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि सीएसआर कोई दान नहीं, बल्कि कानून के तहत अनिवार्य दायित्व है।

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Supreme Court strong message to companies If you damage environment cannot escape responsibility
सुप्रीम कोर्ट। - फोटो : ANI
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विस्तार
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पर्यावरण संरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों को सख्त संदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी यानी सीएसआर को किसी भी तरह से पर्यावरणीय जिम्मेदारी से अलग नहीं किया जा सकता। यदि किसी कंपनी की गतिविधियों से पर्यावरण, वन्यजीवों या संकटग्रस्त प्रजातियों को नुकसान होता है, तो वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। अदालत ने कहा कि सीएसआर कोई दान नहीं, बल्कि कानून के तहत अनिवार्य दायित्व है।
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ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण से जुड़े मामले में फैसला सुनाते हुए जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदूरकर की पीठ ने कहा कि कंपनियां केवल मुनाफा कमाने वाली कानूनी इकाइयां नहीं हैं। वे समाज का अहम हिस्सा हैं और संविधान के तहत पर्यावरण, वन्यजीवों और जीव-जंतुओं के प्रति करुणा दिखाना उनका मौलिक कर्तव्य है। कोर्ट ने साफ कहा कि कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत सीएसआर स्वैच्छिक नहीं, बल्कि लागू करने योग्य वैधानिक जिम्मेदारी है।
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संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता
पीठ ने कहा कि जहां कॉरपोरेट गतिविधियों से प्राकृतिक आवास नष्ट होते हैं या संकटग्रस्त प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ता है, वहां प्रदूषक भुगतान सिद्धांत स्वतः लागू होता है। ऐसी स्थिति में संरक्षण का दायित्व टाला नहीं जा सकता। अदालत ने दो टूक कहा कि संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है और सीएसआर फंड का उपयोग विलुप्ति रोकने के लिए किया जाना चाहिए।

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सीएसआर फंड दान नहीं, संवैधानिक जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सीएसआर फंड को परोपकार या दान की तरह देखना गलत है। यह संविधान और न्यासीय जिम्मेदारियों के निर्वहन का माध्यम है। खासतौर पर तब, जब किसी कंपनी की परियोजनाओं से नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और संकटग्रस्त प्रजातियों को नुकसान पहुंचने की आशंका हो। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सीएसआर का उद्देश्य केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि वास्तविक संरक्षण होना चाहिए।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के आवास पर टिप्पणी
अदालत ने राजस्थान और गुजरात के प्राथमिक और गैर-प्राथमिक क्षेत्रों में काम कर रहे नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को चेताया। पीठ ने कहा कि ये कंपनियां ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के प्राकृतिक आवास में अतिथि हैं। उन्हें उसी भावना के साथ अपनी गतिविधियां संचालित करनी चाहिए, ताकि पक्षी और उसके आवास को कोई नुकसान न पहुंचे।

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