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SC Updates: वकीलों के कॉलर बैंड पर 'सुप्रीम' बहस; अदालत ने खारिज की याचिका, कहा- मामला हस्तक्षेप योग्य नहीं

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: हिमांशु चंदेल Updated Tue, 18 Nov 2025 05:46 PM IST
सार

Supreme Court Updates: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कई अहम मामलों में सुनवाई हुई। इस दौरान वकीलों के कॉलर बैंड के मामले पर याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि कोर्ट परिसरों में वकीलों के सफेद बैंड के लिए एक समान और पर्यावरण अनुकूल डिस्पोजल सिस्टम बनाया जाए। आइए सभी अहम मामलों को एक बार विस्तार से पढ़ते हैं।

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Supreme Court Updates many cases lawyers collar bands Congress recalling verdict barring post-facto green
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : पीटीआई
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विस्तार
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देश की सर्वोच्च अदालत ने वकीलों द्वारा इस्तेमाल के बाद फेंके जाने वाले एडवोकेट बैंड को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सख्त रुख दिखाते हुए मंगलवार को इसे खारिज कर दिया। याचिका में मांग की गई थी कि पूरे देश के सभी कोर्ट परिसरों में वकीलों के सफेद बैंड के लिए एक समान और पर्यावरण अनुकूल डिस्पोजल सिस्टम बनाया जाए। अदालत ने साफ किया कि यह मामला न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा से बाहर है।
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मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल की एसोसिएट प्रोफेसर साक्षी विजय की याचिका को सुनवाई के बाद खारिज करते हुए कहा कि अदालत यह तय नहीं कर सकती कि वकीलों के बैंड कैसे इस्तेमाल या नष्ट किए जाएं। अदालत ने कहा कि इस तरह के मामलों में अदालतें कदम बढ़ाने लगेंगी तो इसका कोई अंत नहीं होगा।
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याचिकाकर्ता ने दलीली में क्या कहा?
याचिकाकर्ता साक्षी विजय ने अपनी दलील में कहा कि उन्होंने अपने घर में कई पुराने एडवोकेट बैंड पड़े देखे, जिन्हें न तो दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता था और न ही पर्यावरण के अनुकूल तरीके से नष्ट किया जा सकता था। उन्होंने बताया कि कई कोर्ट परिसरों के पास गड्ढों, कूड़ेदानों और रास्तों के किनारे सिंथेटिक बैंड फेंके हुए दिखते हैं, जिन्हें वकील अक्सर एक बार इस्तेमाल करके छोड़ देते हैं।

कोर्ट परिसरों में कचरे की समस्या की बात
याचिका में कहा गया था कि इन बैंड में इस्तेमाल होने वाली सिंथेटिक सामग्री पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकती है। कई जगहों पर बैंड खुले में पड़े रहते हैं और इससे कोर्ट परिसरों में स्वच्छता पर भी असर पड़ता है। याचिकाकर्ता का कहना था कि अदालत एक ऐसी व्यवस्था बनाने का निर्देश दे ताकि वकील अपने पुराने बैंड को निर्धारित स्थान पर जमा कर सकें।

पीठ ने इन दलीलों को सुनने के बाद कहा कि यह मुद्दा अदालत के हस्तक्षेप योग्य नहीं है और इस संबंध में नीति बनाना सरकार या संबंधित संस्थाओं का काम है। अदालत ने कहा कि इस तरह के छोटे प्रशासनिक मामलों को अदालत के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और आगे कोई दिशा-निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया।

 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस की नाराजगी, कहा- पोस्ट-फैक्टो क्लियरेंस पर ‘डबल निराशा’
कांग्रेस ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने ही उस फैसले को वापस लेने पर कड़ी नाराजगी जताई, जिसमें पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के बाद किसी भी प्रोजेक्ट को पोस्ट-फैक्टो यानी बाद में पर्यावरण मंजूरी देने पर रोक लगाई गई थी। अदालत ने 2:1 के बहुमत से 16 मई के उस ऐतिहासिक फैसले को वापस ले लिया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह कदम डबल निराशाजनक है क्योंकि कंपनियां कानूनों को जानते हुए भी उल्लंघन करती हैं और बाद में मंजूरी लेने का रास्ता तलाशती हैं। उन्होंने कहा कि भारी जुर्माने के साथ दी जाने वाली रेट्रोस्पेक्टिव मंजूरी व्यवस्था को तोड़ती है और कानूनों की अवहेलना को बढ़ावा देती है।

रमेश ने याद दिलाया कि मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने हाल के दिनों में कई फैसलों में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कड़े निर्देश जारी किए थे। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पर्यावरणीय क्षति की भरपाई से लेकर राष्ट्रीय उद्यानों के एक किलोमीटर दायरे में खनन पर रोक तक। इसके बावजूद, उन्होंने इस बार मई के फैसले की पुनर्समीक्षा की अनुमति देकर कंपनियों के लिए रास्ता खोल दिया। वहीं, जस्टिस उज्जल भुयां ने तीखा असहमति नोट दर्ज करते हुए कहा कि पर्यावरण कानूनों में पोस्ट-फैक्टो क्लियरेंस जैसी कोई अवधारणा नहीं है और यह पर्यावरण न्यायशास्त्र के लिए एक अभिशाप है।
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