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उत्तर प्रदेश चुनाव: नई समाजवादी पार्टी गढ़ने में जुटे अखिलेश, क्या मुलायम के साये से निकाल पाने में होंगे कामयाब?

Amit Sharma Digital अमित शर्मा
Updated Wed, 26 Jan 2022 05:28 PM IST
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सार

राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडे ने अमर उजाला से कहा कि किसी भी बड़े नेता के बेटे-बेटियों को राजनीति में जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। उन्हें नेता पुत्र होने का कुछ फायदा मिलता है तो कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है। लेकिन अपने पूर्वजों के किए गए कामों और उनकी छवि से उबरना इन नेता पुत्रों के लिए बड़ी चुनौती होता है...

UP Election 2022: Akhilesh yadav trying to form a new Samajwadi Party, after allegations of nepotism, casteism and appeasement of Muslims
मुलायम सिंह यादव और अखिलेश - फोटो : Agency (File Photo)

विस्तार
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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इस समय दोहरे मोर्च पर युद्ध लड़ रहे हैं। वह एक तरफ मोदी-अमित शाह और भाजपा की भारी-भरकम टीम से अकेले लड़कर अपनी पार्टी को जीत दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, तो साथ ही साथ स्वयं अपनी और अपनी पार्टी सपा की नई छवि गढ़ने की कोशिश भी कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी पर सबसे बड़ा आरोप परिवारवाद, जातिवाद और मुस्लिमों के तुष्टीकरण का लगता रहा है। लेकिन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों और स्टार प्रचारकों की लिस्ट को ध्यान से देखें तो यह साफ पता चलता है कि अखिलेश समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। वे इस चुनाव के जरिए एक नई सपा खड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें समाजवाद की असली झलक दिखाई पड़ रही है।

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अभी तक के चुनाव में समाजवादी पार्टी की ओर से मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव, धर्मेंद्र यादव और परिवार के अन्य प्रभावशाली नेता पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करते रहे हैं। उनके अलावा आजम खान, जया बच्चन और अन्य स्टार नेता पार्टी के लिए प्रचार करते रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड के लिए पार्टी की तरफ से जारी स्टार प्रचारकों की लिस्ट में मुलायम सिंह परिवार से अखिलेश यादव अकेले स्टार प्रचारक हैं। शेष प्रचारकों में पार्टी के अन्य प्रभावशाली नेताओं किरणमय नंदा और जया बच्चन जैसे लोगों और स्थानीय नेताओं को शामिल किया गया है। नई सूची यह संकेत दे रही है कि अखिलेश यादव परिवारवाद और जातिवाद की छवि तोड़कर बाहर आना चाहते हैं।  
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यूपी चुनाव के लिए जारी समाजवादी पार्टी की पहली लिस्ट में 159 उम्मीदवारों में 31 मुसलमानों, 31 ब्राह्मण-ठाकुर और अन्य उच्च जातियों, 12 यादव सहित 66 ओबीसी और 31 दलितों को टिकट थमाया गया है। इसमें 12 महिलाएं भी शामिल हैं। 39 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में ब्राह्मण-ठाकुर उम्मीदवारों को आठ सीट, एक मुस्लिम, दो यादव औऱ आठ महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है। यानी अब तक जारी पूरी सूची में ब्राह्मण, ठाकुर, मुसलमान, महिला, ओबीसी और दलित समाज के सभी प्रमुख वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया गया है।

नई छवि गढ़ने की सफल कोशिश

राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडे ने अमर उजाला से कहा कि किसी भी बड़े नेता के बेटे-बेटियों को राजनीति में जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। उन्हें नेता पुत्र होने का कुछ फायदा मिलता है तो कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है। उन्हें एक स्थापित पार्टी, निष्ठावान कार्यकर्ता और एक अच्छा संगठन मिलता है, जिसका उन्हें फायदा होता है, लेकिन अपने पूर्वजों के किए गए कामों और उनकी छवि से उबरना इन नेता पुत्रों के लिए बड़ी चुनौती होता है। राहुल गांधी व्यक्तिगत रूप से बेहद अच्छे होते हुए भी अभी तक गांधी परिवार का होने की कीमत चुका रहे हैं।


सुनील पांडे ने कहा कि बिहार में तेजस्वी यादव के सामने राष्ट्रीय जनता दल को एक नई छवि में पेश करना बड़ी चुनौती थी। राष्ट्रीय जनता दल पर जातिवादी और अपराधियों के संरक्षण देने वाली राजनीति करने के गंभीर आरोप लगे थे। लालू प्रसाद यादव की छवि उन्हें स्वतंत्र छवि के रूप में खड़ा नहीं होने दे रही थी, लेकिन तेजस्वी यादव ने बेहद समझदारी से इस परिस्थिति को अपने अनुकूल ढाला।

तेजस्वी यादव ने अपनाई थी यही रणनीति

बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के पोस्टरों पर केवल तेजस्वी यादव की ही फोटो दिखाई पड़ी। इससे यह संकेत गया कि वह लालू प्रसाद यादव की छवि से अलग हटकर अपनी एक नई लकीर खींचना चाहते हैं। विपक्ष ने इस पर हमला भी किया लेकिन वे डिगे नहीं और अपनी अलग लाइन बनाते नजर आए। पार्टी के टिकट बंटवारे में भी उन्होंने पूरी तरह से पारदर्शिता रखी और समाज के सभी वर्गों को भागीदारी देना सुनिश्चित किया। केवल इसी सूझबूझ का परिणाम था कि नए नवेले तेजस्वी यादव ने राष्ट्रीय जनता दल को दिग्गज पार्टियों भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड से आगे खड़ी करने में सफलता पाई।

तेजस्वी यादव ने अपना विवाह करते समय न केवल जातिवाद की दीवार तोड़ी, बल्कि धर्म से भी परे जाते हुए एक ईसाई परिवार की लड़की को अपनाकर यह संकेत देने की सफल कोशिश की कि वे जातिवाद और परिवारवाद से ऊपर उठकर सोचने और कार्य करने की क्षमता रखते हैं। उनकी इसी सोच ने युवाओं के बीच उन्हें बेहद लोकप्रिय बना दिया।

अखिलेश भी उसी राह पर

अखिलेश यादव भी ने विधानसभा चुनाव 2017 के दौरान इसी तरह समाजवादी पार्टी को मुलायम सिंह यादव की छवि से बाहर निकालने की कोशिश की थी, लेकिन पूरी कोशिश के बाद भी वे इसमें सफल नहीं हो पाए। पार्टी और परिवार में कलह की उनकी कीमत चुकानी पड़ी। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव के पीछे रह जाने और शिवपाल यादव जैसे नेताओं के नेपथ्य में चले जाने के बाद अखिलेश यादव की वही कोशिश अब सफल होती दिखाई पड़ रही है। टिकट बंटवारे में भी समाज के सभी वर्गों को उचित भागीदारी देकर वे बेहतर संदेश दे रहे हैं।  

मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी पर बड़ा आरोप अपराधियों के संरक्षण का भी लगा था। नई लिस्ट में अखिलेश यादव ने नाहिद हसन जैसे कुछ ऐसे उम्मीदवारों पर दांव लगाया है, जिससे उनकी कोशिशों पर सवालिया निशान खड़े होते हैं। इसे केवल दूसरी पार्टियों के आरोप कहकर खारिज कर देना अखिलेश यादव के लिए आसान नहीं होगा। उन्हें इस आरोप से भी ऊपर उठने की कोशिश करनी पड़ेगी, तभी सपा नए जमाने के युवाओं की उम्मीदों पर खरी उतर सकेगी।

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