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J&K: उमर अब्दुल्ला की ताजपोशी में गायब दिखी कश्मीरी पंडितों की आवाज, भाजपा से भी टूट रही पंडितों की उम्मीद
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सार
जब जम्मू-कश्मीर में चुनावों की घोषणा हुई थी, नेशनल कांफ्रेंस ने भी अपने घोषणा पत्र में कश्मीरी पंडितों को वापस लाने का वादा किया था। लेकिन कश्मीर के अशोक जसरोटिया का मानना है कि यह केवल दिखावे की राजनीति है।

उमर अब्दुल्ला का शपथ ग्रहण
- फोटो : X / @JKNC_
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विस्तार
पांच लाख कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़े 35 साल का समय हो चुका है, लेकिन आज भी उनके दुखों का कोई अंत होता नहीं दिखाई दे रहा है। इस बीच कश्मीरी पंडितों की एक पूरी पीढ़ी जम्मू-कश्मीर से बाहर ही पैदा हुई और वह अपने रक्त के अलावा खान-पान, रहन-सहन किसी मायने में कश्मीरी नहीं रह गई है। लेकिन आज भी अपनी जमीन से दूर होने का उनका दर्द बार-बार सामने आ जाता है। कश्मीरी पंडितों में कई लोग उमर अब्दुल्ला को नए जमाने का युवा नेता मानते हैं, लेकिन उनके पिछले कार्यकाल को याद करते हुए आज भी यह भरोसा नहीं रख पाते कि उमर अब्दुल्ला उनकी घर वापसी के लिए कुछ करेंगे।
इस बार जब जम्मू-कश्मीर में चुनावों की घोषणा हुई थी, नेशनल कांफ्रेंस ने भी अपने घोषणा पत्र में कश्मीरी पंडितों को वापस लाने का वादा किया था। लेकिन कश्मीर के अशोक जसरोटिया का मानना है कि यह केवल दिखावे की राजनीति है। उन्होंने अमर उजाला से कहा कि नेशनल कांफ्रेंस ने अपने पूरे घोषणा पत्र में राज्य में अनुच्छेद 370 की वापसी का वादा किया था। उनके नेता स्वयं मानते हैं कि इसी मुद्दे पर उन्हें जनता ने जनमत दिया है। ऐसे में उन्हें उम्मीद नहीं कि अब्दुल्ला सरकार उनकी वापसी के लिए कुछ करने जा रही है।
'अब्दुल्ला परिवार कश्मीरी पंडितों का दर्द नहीं समझता'
कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले सुशील पंडित ने अमर उजाला से कहा कि अब्दुल्ला परिवार आज तक यही नहीं मानता कि कश्मीरी पंडितों को किसी इस्लामी आतंकवाद के कारण घाटी छोड़ना पड़ा था। उन्होंने कहा कि यदि वे इसे समस्या ही नहीं मानते तो भला उनसे समाधान की उम्मीद ही क्यों की जाए। पंडित के अनुसार, इस मामले में दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि उमर अब्दुल्ला भी अपने पिता फारूक अब्दुल्ला की तरह की ही सोच रखते हैं, ऐसे में वे कश्मीरी पंडितों की आवाज उठाएंगे, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
सुशील पंडित ने कहा कि फारुख अब्दुल्ला ने अपनी यह सोच कभी छिपाई भी नहीं। उन्होंने यह बयान दिया था कि जम्मू-कश्मीर सरकार का काम कश्मीरी पंडितों को बसाने का नहीं है। सुशील पंडित के अनुसार, फारुख अब्दुल्ला ने कश्मीरी पंडितों को घाटी में जाकर अपनी जमीन-घर के कब्जे छुड़वाने के लिए कानूनी अदालती लड़ाई लड़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि, जब वे पंडितों का घर-जमीन दिलाने के लिए ही कोई प्रयास ही नहीं करना चाहते तो आतंकवाद के साये में घिरी घाटी में जाकर अपने बल पर किसी पंडित के लिए रह पाना कैसे संभव है।
'कश्मीरियों का दिल जीतने वाली भाजपा पंडितों को भुला रही'
सुशील पंडित ने कहा कि सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी कश्मीरी मुसलमानों का दिल जीतने की 'बीमारी' लग जाती है। उनका आरोप है कि मुसलमानों को खुश करने में जुटा भाजपा नेतृत्व कश्मीरी पंडितों के हितों की बात भी ऊंची आवाज में इसलिए नहीं करता जिससे कश्मीर का मुसलमान नाराज न हो जाए। उन्होंने कहा कि, इससे भाजपा की दुविधा सामने आती है और इस तरह की दुविधा वाली सोच के रहते कश्मीरी पंडितों का कोई भला नहीं हो सकता।
जो किया भाजपा ने किया- भानू जसरोटिया
इस समय जम्मू इलाके में रह रहे भानू जसरोटिया ने अमर उजाला से कहा कि कश्मीरी पंडितों को कुछ मुआवजा दिलाने की बात हो, या उनके लिए जमीन तलाश कर उनकी वापसी के लिए कोई काम करने का, यह काम केंद्र सरकार के नेतृत्व में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने ही किया है। आज भी यदि कश्मीरी पंडित किसी से कोई उम्मीद कर सकते हैं तो वह केंद्र सरकार ही है।
भानू जसरोटिया ने कहा कि उमर अब्दुल्ला नई पीढ़ी के युवा नेता हैं, लेकिन उनके पिछले बयान और अपने पिछले कार्यकाल में किए गए कार्य कश्मीरी पंडितों में कोई भरोसा नहीं पैदा करते। कश्मीरी मुसलमानों के वोट बैंक पर टिकी नेशनल कांफ्रेंस कोई भी ऐसा काम नहीं करेगी जिससे उसका वोट बैंक उससे नाराज हो। ऐसे में फिलहाल कश्मीरियों की कश्मीर वापसी का कोई प्लान सफल होता नहीं दिखाई दे रहा।
जसरोटिया के अनुसार, यह देखना आश्चर्यजनक रहा कि भाजपा को घाटी में न कश्मीरी पंडितों का साथ मिला, न बकरवाला समुदाय का जिसे आरक्षण का लाभ देकर केंद्र सरकार ने सरकारी नौकरियों का हिस्सेदार बनाया था। उन्होंंने कहा कि यदि यह वर्ग ही भाजपा के साथ नहीं है तो भाजपा का दम घाटी में फूलना ही था। लेकिन इससे कश्मीरी पंडितों के लिए होने वाले कामों पर भी असर पड़ सकता है।
'ताजपोशी से गायब रही कश्मीरी पंडितों की आवाज'
उमर अब्दुल्ला की ताजपोशी को जम्मू-कश्मीर में एक नए इतिहास की शुरुआत बताई जा रही है, लेकिन जम्मू के लोगों का कहना है कि इस ताजपोशी में कश्मीरी पंडितों का दर्द पूरी तरह खामोश रहा। उसकी कोई भा्गीदारी नहीं की गई। सुशील पंडित कहते हैं कि अब तक कश्मीर से मुख्यमंत्री होता आया है और जम्मू से उपमुख्यमंत्री बनाकर इसको भी प्रतिनिधित्व दिया जाता रहा है। लेकिन फारूख अब्दुल्ला के जमाने से ही प्यारे लाल हांडू जैसे लोगों को हिंदुओं का चेहरा बनाकर पेश किया जाता रहा जो खुद को अब्दुल्ला से ज्यादा बड़ा मुसलमान दिखाने की होड़ में लगे रहते थे। उमर अब्दुल्ला सरकार में हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे उपमुख्यमंत्री सुरेंद्र चौधरी हिंदुओं का कितना प्रतिनिधित्व कर पाएंगे, कहा नहीं जा सकता।
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इस बार जब जम्मू-कश्मीर में चुनावों की घोषणा हुई थी, नेशनल कांफ्रेंस ने भी अपने घोषणा पत्र में कश्मीरी पंडितों को वापस लाने का वादा किया था। लेकिन कश्मीर के अशोक जसरोटिया का मानना है कि यह केवल दिखावे की राजनीति है। उन्होंने अमर उजाला से कहा कि नेशनल कांफ्रेंस ने अपने पूरे घोषणा पत्र में राज्य में अनुच्छेद 370 की वापसी का वादा किया था। उनके नेता स्वयं मानते हैं कि इसी मुद्दे पर उन्हें जनता ने जनमत दिया है। ऐसे में उन्हें उम्मीद नहीं कि अब्दुल्ला सरकार उनकी वापसी के लिए कुछ करने जा रही है।
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'अब्दुल्ला परिवार कश्मीरी पंडितों का दर्द नहीं समझता'
कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले सुशील पंडित ने अमर उजाला से कहा कि अब्दुल्ला परिवार आज तक यही नहीं मानता कि कश्मीरी पंडितों को किसी इस्लामी आतंकवाद के कारण घाटी छोड़ना पड़ा था। उन्होंने कहा कि यदि वे इसे समस्या ही नहीं मानते तो भला उनसे समाधान की उम्मीद ही क्यों की जाए। पंडित के अनुसार, इस मामले में दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि उमर अब्दुल्ला भी अपने पिता फारूक अब्दुल्ला की तरह की ही सोच रखते हैं, ऐसे में वे कश्मीरी पंडितों की आवाज उठाएंगे, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
सुशील पंडित ने कहा कि फारुख अब्दुल्ला ने अपनी यह सोच कभी छिपाई भी नहीं। उन्होंने यह बयान दिया था कि जम्मू-कश्मीर सरकार का काम कश्मीरी पंडितों को बसाने का नहीं है। सुशील पंडित के अनुसार, फारुख अब्दुल्ला ने कश्मीरी पंडितों को घाटी में जाकर अपनी जमीन-घर के कब्जे छुड़वाने के लिए कानूनी अदालती लड़ाई लड़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि, जब वे पंडितों का घर-जमीन दिलाने के लिए ही कोई प्रयास ही नहीं करना चाहते तो आतंकवाद के साये में घिरी घाटी में जाकर अपने बल पर किसी पंडित के लिए रह पाना कैसे संभव है।
'कश्मीरियों का दिल जीतने वाली भाजपा पंडितों को भुला रही'
सुशील पंडित ने कहा कि सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी कश्मीरी मुसलमानों का दिल जीतने की 'बीमारी' लग जाती है। उनका आरोप है कि मुसलमानों को खुश करने में जुटा भाजपा नेतृत्व कश्मीरी पंडितों के हितों की बात भी ऊंची आवाज में इसलिए नहीं करता जिससे कश्मीर का मुसलमान नाराज न हो जाए। उन्होंने कहा कि, इससे भाजपा की दुविधा सामने आती है और इस तरह की दुविधा वाली सोच के रहते कश्मीरी पंडितों का कोई भला नहीं हो सकता।
जो किया भाजपा ने किया- भानू जसरोटिया
इस समय जम्मू इलाके में रह रहे भानू जसरोटिया ने अमर उजाला से कहा कि कश्मीरी पंडितों को कुछ मुआवजा दिलाने की बात हो, या उनके लिए जमीन तलाश कर उनकी वापसी के लिए कोई काम करने का, यह काम केंद्र सरकार के नेतृत्व में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने ही किया है। आज भी यदि कश्मीरी पंडित किसी से कोई उम्मीद कर सकते हैं तो वह केंद्र सरकार ही है।
भानू जसरोटिया ने कहा कि उमर अब्दुल्ला नई पीढ़ी के युवा नेता हैं, लेकिन उनके पिछले बयान और अपने पिछले कार्यकाल में किए गए कार्य कश्मीरी पंडितों में कोई भरोसा नहीं पैदा करते। कश्मीरी मुसलमानों के वोट बैंक पर टिकी नेशनल कांफ्रेंस कोई भी ऐसा काम नहीं करेगी जिससे उसका वोट बैंक उससे नाराज हो। ऐसे में फिलहाल कश्मीरियों की कश्मीर वापसी का कोई प्लान सफल होता नहीं दिखाई दे रहा।
जसरोटिया के अनुसार, यह देखना आश्चर्यजनक रहा कि भाजपा को घाटी में न कश्मीरी पंडितों का साथ मिला, न बकरवाला समुदाय का जिसे आरक्षण का लाभ देकर केंद्र सरकार ने सरकारी नौकरियों का हिस्सेदार बनाया था। उन्होंंने कहा कि यदि यह वर्ग ही भाजपा के साथ नहीं है तो भाजपा का दम घाटी में फूलना ही था। लेकिन इससे कश्मीरी पंडितों के लिए होने वाले कामों पर भी असर पड़ सकता है।
'ताजपोशी से गायब रही कश्मीरी पंडितों की आवाज'
उमर अब्दुल्ला की ताजपोशी को जम्मू-कश्मीर में एक नए इतिहास की शुरुआत बताई जा रही है, लेकिन जम्मू के लोगों का कहना है कि इस ताजपोशी में कश्मीरी पंडितों का दर्द पूरी तरह खामोश रहा। उसकी कोई भा्गीदारी नहीं की गई। सुशील पंडित कहते हैं कि अब तक कश्मीर से मुख्यमंत्री होता आया है और जम्मू से उपमुख्यमंत्री बनाकर इसको भी प्रतिनिधित्व दिया जाता रहा है। लेकिन फारूख अब्दुल्ला के जमाने से ही प्यारे लाल हांडू जैसे लोगों को हिंदुओं का चेहरा बनाकर पेश किया जाता रहा जो खुद को अब्दुल्ला से ज्यादा बड़ा मुसलमान दिखाने की होड़ में लगे रहते थे। उमर अब्दुल्ला सरकार में हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे उपमुख्यमंत्री सुरेंद्र चौधरी हिंदुओं का कितना प्रतिनिधित्व कर पाएंगे, कहा नहीं जा सकता।
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