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Bengal SIR: एसआईआर की समीक्षा पर बैठक करेगी टीएमसी, सीएम ने चुनाव आयोग को फिर लिखा पत्र; भाजपा ने किया पलटवार

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोलकाता . Published by: निर्मल कांत Updated Fri, 21 Nov 2025 01:40 PM IST
सार

Bengal SIR: बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले एसआईआर का मुद्दा गरमाया हुआ है। सत्तारूढ़ टीएमसी एसआईआर की समीक्षा के लिए 24 नवंबर को बैठक करेगी और 25 रैली आयोजित कर सकती है। वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुद्दे पर फिर चुनाव आयोग को पत्र लिखकर चिंता जताई है। 

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी - फोटो : पीटीआई (फाइल)
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तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) 24 नवंबर को एक आंतरिक बैठक करेगी, जिसकी अध्यक्षता पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी करेंगे। इस बैठक का मकसद विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की समीक्षा और यह सुनिश्चित करना होगा कि मतदाता सूची में कोई भी नाम छूट न जाए। इसके अलावा, पार्टी 25 नवंबर को एसआईआर के खिलाफ रैली भी आयोजित कर सकती है। वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में जारी एसआईआर प्रक्रिया को लेकर गंभीर चिंता जताई है और चुनाव आयोग से तत्काल दखल देने की अपील की है। उन्होंने इस संबंध में शुक्रवार को अपने पुराने पत्र को भी एक्स पर साझा किया। 
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उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को 'योजना विहीन, अव्यवस्थित और खतरनाक' बताया। ममता बनर्जी ने कहा कि प्रशिक्षण की कमी, जरूरी दस्तावेजों को लेकर स्पष्ट जानकारी न होना और मतदाताओं से उनकी कामकाजी दिनचर्या के बीच मिल पाना लगभग असंभव होना। इन सभी वजहों से यह प्रक्रिया ठीक से चल ही नहीं पा रही है। मुख्यमंत्री ने इससे एक दिन पहले यानी गुरुवार को भी मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था कि प्रशिक्षण में गंभीर कमी, जरूरी दस्तावेजों को लेकर स्पष्टता न होना और लोगों की रोजमर्रा की जीविका के चलते उनसे समय पर मुलाकात न हो पाना..इन सबने इस प्रक्रिया को शुरू से ही कमजोर और अस्थिर बना दिया है। अपने ताजा पत्र में ममता बनर्जी ने लिखा कि राज्य में चल रही एसआईआर प्रक्रिया बेहद चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया को अधिकारियों और आम लोगों पर जिस तरह थोपा जा रहा है, वह न सिर्फ अव्यवस्थित है बल्कि खतरनाक भी है। उन्होंने आरोप लगाया कि शुरू से ही तैयारी, योजना और स्पष्ट निर्देशों की कमी रही, जिससे पूरा काम प्रभावित हुआ है।
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मुख्यमंत्री ने बताया कि बूथ स्तर के अधिकारी यानी बीएलओ भारी दबाव में काम कर रहे हैं। उन्होंने ऑनलाइन डाटा भरने में दिक्कतें आ रही हैं, सर्वर ठीक से काम नहीं कर रहा और प्रशिक्षण भी पर्याप्त नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि इतनी भारी जिम्मेदारी, कम समय और तकनीकी दिक्कतों की वजह से मतदाता डाटा गलत होने का खतरा बढ़ गया है। यह स्थिति लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए गंभीर चुनौती है। उन्होंने आगे कहा कि बीएलओ इंसानी सीमा से बाहर जाकर काम कर रहे हैं। कई बीएलओ शिक्षक और अग्रिम मोर्चा के कार्यकर्ता भी हैं, जिन्हें अपनी नियमित ड्यूटी के साथ-साथ घर-घर सर्वे और ऑनलाइन फॉर्म भरने का काम करना पड़ रहा है। प्रशिक्षण की कमी, सर्वर की गड़बड़ियों और बार-बार डाटा मैच न होने की वजह से उन्हें लगातार दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

ममता बनर्जी ने चेतावनी दी कि एसआईआर की खामियों की वजह से कई असली मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं, जबकि पूरी मतदाता सूची की विश्वसनीयता भी प्रभावित हो सकती है। उन्होंने कहा कि चार दिसंबर तक कई विधानसभा क्षेत्रों का सही-सही डाटा अपलोड कर पाना लगभग नामुमकिन है। उन्होंने यह भी कहा कि दबाव में कई बीएलओ गलत या अधूरा डाटा जमा कर सकते हैं, जिससे सही मतदाताओं का नाम सूची से हट सकता है।

पत्र में यह भी आरोप लगाया गया कि इतनी कठिन परिस्थिति में सहयोग देने के बजाय चुनाव आयोग बीएलओ को डराने-धमकाने में लगा है। उन्होंने कहा कि बिना ठोस वजह के कारण बताओ नोटिस भेजे जा रहे हैं और पहले से परेशान बीएलओ को अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकी दी जा रही है, जबकि आयोग को वास्तविक स्थिति समझने की जरूरत है। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि यह पूरी प्रक्रिया ऐसे समय हो रही है, जब राज्य में कृषि का चरम सीजन चल रहा है। किसानों और मजदूरों के लिए इस दौरान इन प्रक्रियाओं में हिस्सा लेना बेहद मुश्किल होता है। इससे मतदाताओं के जुड़ाव पर भी असर पड़ रहा है।

ममता बनर्जी के चुनाव आयोग को पत्र का मकसद भ्रम फैलाना: शुभेंदु अधिकारी
वहीं, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने एसआईआर को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से चुनाव आयोग को भेजे गए पत्र के जवाब में चुनाव आयोग को अपना पत्र सौंपा है। गुरुवार को लिखे अपने इस पत्र में अधिकारी ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी का संदेश चुनाव आयोग के सांविधानिक अधिकार को कमजोर करने की सोची-समझी कोशिश है। उन्होंने दावा किया कि इस पत्र का मकसद चुनाव अधिकारियों के बीच भ्रम फैलाना और उन मतदाताओं को बचाना है जिन्हें वे गैरकानूनी और अयोग्य बता रहे हैं।

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अधिकारी ने लिखा कि मुख्यमंत्री का पत्र एसआईआर प्रक्रिया पर रचनात्मक सुझाव देने के बजाय चुनाव आयोग की सांविधानिक भूमिका को चुनौती देने वाला है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कदम चुनाव अधिकारियों के बीच मतभेद पैदा करने और ऐसे वोट बैंक को बचाने की कोशिश है, जिसमें 'अयोग्य और अवैध तत्व' शामिल हैं, जिन्हें उनकी पार्टी वर्षों से चुनावी फायदा उठाने के लिए बढ़ावा देती रही है। अधिकारी ने कहा कि यह केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं है, बल्कि देश के लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर सीधा हमला है।

शक्तियों के विभाजनके सिद्धांतो को मजबूत करता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश: राज्यपाल
उधर, राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का वह हालिया आदेश भारतीय संविधान में शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत को और मजबूत करता है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि अदालतें राष्ट्रपति और राज्यपालों को किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करने के लिए समय सीमा तय नहीं कर सकतीं। उन्होंने कहा कि संविधान ने हर पद के लिए 'लक्ष्मण रेखा' तय कर रखी है।

राज्यपाल बोस ने कहा, इस आदेश ने यह संदेश दिया है कि भारत का सुप्रीम कोर्ट संविधान में दर्ज शक्तियों के विभाजन का सम्मान करता है। इसका मतलब यह नहीं है कि राज्यपाल फाइलों पर बैठे रहें। चुने हुए मुख्यमंत्री ही सरकार का असली चेहरा होते हैं, न कि नियुक्त किए गए राज्यपाल। राज्यपाल ने कहा कि यह फैसला मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों की भूमिका को स्पष्ट रूप से बताता है और यह भी कि संविधान की सीमाओं का सम्मान करते हुए मिलकर काम करना जरूरी है।  उन्होंने कहा, संविधान ने हर पद के लिए लक्ष्मण रेखा बना दी है। उसे पार मत करो, साथ मिलकर काम करो..यही संदेश सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मिला है।


 
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