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Women Reservation Bill: 25 साल बाद भी मंजूरी का इंतजार, जन्मदिन पर महिला सांसदों की पीएम से अपील- विधेयक को लगाओ पार
प्रतिभा ज्योति, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: प्रतिभा ज्योति
Updated Fri, 17 Sep 2021 03:32 PM IST
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महिला आरक्षण विधेयक
- फोटो :
Amar Ujala
विस्तार
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने कहा कि बहुत कम महिलाओं को शीर्ष पर प्रतिनिधित्व मिलता है। आजादी के 75 सालों के बाद भी सभी स्तरों पर महिलाओं के लिए कम से कम 50 फीसदी प्रतिनिधित्व की उम्मीद की जाएगी, लेकिन मुझे यह स्वीकार करने में बहुत मुश्किल हो रही है कि बड़ी कठिनाई के बाद अब हमने सर्वोच्च न्यायालय की पीठ में महिलाओं का केवल 11फीसदी प्रतिनिधित्व हासिल किया है।जस्टिस रमना के इस बयान ने महिला सांसदों और संगठनों में महिला आरक्षण विधेयक को लेकर फिर बेचैनी बढ़ा दी है। लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर उन्हें शुभकामनाएं देते हुए महिला सांसदों और महिला संगठनों ने एक बार फिर महिला आरक्षण विधेयक की मांग शुरू कर दी है। महिला सांसदों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुमत वाली सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे चाहें तो इस विधेयक को आसानी से पारित करा सकते हैं।
महिला संगठनों ने आगामी संसद के शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को पेश करने की मांग की है। महिला समूहों और सांसदों का कहना है कि सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था संसद और विधानसभा में महिलाओं की आवाज को समान रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। जिससे देश की आधी आबादी को समान प्रतिनिधित्व मिल सके।
आवाज संसद तक पहुंचाने में जुटे संगठन
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की अगुआई में महिला अधिकारों के लिए काम कर रहे संगठन ने महिला सांसदों के साथ मिलकर इसके लिए एक मुहिम छेड़ दी है। यह समूह अब अपनी आवाज़ संसद तक पहुंचाने की कोशिशों में जुट गया है। ग्लोबल कंसर्न्स इंडिया, इंपल्स एनजीओ नेटवर्क, भारतीय महिलाओं का राष्ट्रीय संघ, महिला शक्ति कनेक्ट, वाईडब्ल्यूसीए और कई संगठन इस मांग का समर्थन कर रहे हैं।
विधेयक पारित कराने के लिए कोशिशें तेज
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की डायरेक्टर रंजना कुमारी ने बताया हमने कई महिला सांसदों और संगठनों के साथ इस मिलकर महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने के लिए फिर से कोशिशें शुरू की है। महिला संगठन लगतार इस बात पर जोर दे रहा है विधेयक संसद से पारित हो। उन्होंने कहा इसी सिलसिले में 2016 में हमने उन्हें रोज गुलाबी लिफाफे में प्रधानमंत्री को करीब 365 चिट्ठियां भेजी थीं, लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी। उनका कहना है निर्णय लेने के स्तर पर महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने से लगभग सभी राजनीतिक दल हिचकते हैं। जबकि सत्ता में अधिक महिलाओं के होने से लिंग आधारित हिंसा को कम किया जा सकता है। हम प्रधानमंत्री मोदी से उनके जन्मदिन पर यह अपील करते हैं कि वे इस विधेयक को पारित कराएं।

लोकसभा सांसद नवनीत कौर राणा
- फोटो :
Facebook
क्या है महिला सांसदों की राय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर कई महिला सासंदों ने महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने की मांग की है। महिला आरक्षण विधेक पर महिला सांसदों की राय जानने के लिए हमने कई महिला सांसदों से बात की। जानिए उनकी राय।
संगीता आजाद (बसपा सांसद, उत्तर प्रदेश)
महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की मांग हम शुरू से कर रहे हैं। जब यह सरकार महिला सशक्तिकरण की बात करती है तो महिला आरक्षण विधेयक सदन में पेश क्यों कर रही है। बसपा चाहती है कि इस विधेयक को बहुमत से पारित कराना जाए, क्योंकि हमारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एक महिला हैं और मैं भी एक महिला हूं।
ज्योत्सना चरणदास (कांग्रेस सांसद, छत्तीसगढ़)
आज के दिन प्रधानमंत्री ने जरूर अपनी मां का आशीर्वाद लिया होगा। वे समझते हैं कि महिलाओं को सश्क्त बनाने से समाज सश्क्त बनता है। वे अक्सर महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, इसलिए बहुमत वाली सरकार के मुखिया पीएम को महिलाओं के उत्थान के बारे में सोचना चाहिए।
नवनीत कौर राणा (निर्दलीय सांसद, महाराष्ट्र)
संसद में महिलाओं की संख्या बढ़ी है लेकिन फिर भी जितनी महिलाओं की संख्या है वह पर्याप्त नहीं है। सरकार अगर कोशिश करे तो यह संख्या बढ़ाई जा सकती है। पीएम ने महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए काफी कदम उठाए हैं। महिलाओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया है। महिलाओं को अवसर दिया है। निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री है। जितनी महिलाओं को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है वह पहली बार चुनकर आई हैं। इसलिए हम प्रधानमंत्री से अपील करते हैं कि वे जल्द से जल्द इस विधेयक को सदन में पारित कराएं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर कई महिला सासंदों ने महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने की मांग की है। महिला आरक्षण विधेक पर महिला सांसदों की राय जानने के लिए हमने कई महिला सांसदों से बात की। जानिए उनकी राय।
संगीता आजाद (बसपा सांसद, उत्तर प्रदेश)
महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की मांग हम शुरू से कर रहे हैं। जब यह सरकार महिला सशक्तिकरण की बात करती है तो महिला आरक्षण विधेयक सदन में पेश क्यों कर रही है। बसपा चाहती है कि इस विधेयक को बहुमत से पारित कराना जाए, क्योंकि हमारी राष्ट्रीय अध्यक्ष एक महिला हैं और मैं भी एक महिला हूं।
ज्योत्सना चरणदास (कांग्रेस सांसद, छत्तीसगढ़)
आज के दिन प्रधानमंत्री ने जरूर अपनी मां का आशीर्वाद लिया होगा। वे समझते हैं कि महिलाओं को सश्क्त बनाने से समाज सश्क्त बनता है। वे अक्सर महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, इसलिए बहुमत वाली सरकार के मुखिया पीएम को महिलाओं के उत्थान के बारे में सोचना चाहिए।
नवनीत कौर राणा (निर्दलीय सांसद, महाराष्ट्र)
संसद में महिलाओं की संख्या बढ़ी है लेकिन फिर भी जितनी महिलाओं की संख्या है वह पर्याप्त नहीं है। सरकार अगर कोशिश करे तो यह संख्या बढ़ाई जा सकती है। पीएम ने महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए काफी कदम उठाए हैं। महिलाओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया है। महिलाओं को अवसर दिया है। निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री है। जितनी महिलाओं को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है वह पहली बार चुनकर आई हैं। इसलिए हम प्रधानमंत्री से अपील करते हैं कि वे जल्द से जल्द इस विधेयक को सदन में पारित कराएं।

सोनिया गांधी-अहमद पटेल (फाइल फोटो)
- फोटो :
PTI
क्या है महिला आरक्षण विधेयक का विवरण और उसकी यात्रा
1. विधेयक को शुरू में 12 सितंबर, 1996 को संसद में एचडी देवेगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार ने लोकसभा में पेश किया गया था।
2. इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना है।
3. आरक्षण मानदंड- बिल के अनुसार, सीटें रोटेशन के आधार पर आरक्षित की जाएंगी। सीटों का निर्धारण ड्रा से इस प्रकार किया जाएगा ।
4. वाजपेयी सरकार ने लोकसभा में बिल के लिए जोर दिया लेकिन फिर भी इसे पारित नहीं किया गया।
5. कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए एक सरकार ने मई 2008 में एक बार फिर इस विधेयक को पेश किया।
6. इस विधेयक को नौ मार्च, 2010 को राज्य सभा ने पारित किया गया था, लेकिन अभी लोकसभा से पारित होना बाकी है।
7. राजद और सपा जैसी पार्टियां महिला आरक्षण विधेयक के मुखर विरोधियों में से एक रही है।
8. इन पार्टियों का यह तर्क रहा कि इससे केवल राजनीतिक परिवारों और संपन्न पृष्ठभूमि की महिलाओं को ही लाभ होगा।
1. विधेयक को शुरू में 12 सितंबर, 1996 को संसद में एचडी देवेगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार ने लोकसभा में पेश किया गया था।
2. इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना है।
3. आरक्षण मानदंड- बिल के अनुसार, सीटें रोटेशन के आधार पर आरक्षित की जाएंगी। सीटों का निर्धारण ड्रा से इस प्रकार किया जाएगा ।
4. वाजपेयी सरकार ने लोकसभा में बिल के लिए जोर दिया लेकिन फिर भी इसे पारित नहीं किया गया।
5. कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए एक सरकार ने मई 2008 में एक बार फिर इस विधेयक को पेश किया।
6. इस विधेयक को नौ मार्च, 2010 को राज्य सभा ने पारित किया गया था, लेकिन अभी लोकसभा से पारित होना बाकी है।
7. राजद और सपा जैसी पार्टियां महिला आरक्षण विधेयक के मुखर विरोधियों में से एक रही है।
8. इन पार्टियों का यह तर्क रहा कि इससे केवल राजनीतिक परिवारों और संपन्न पृष्ठभूमि की महिलाओं को ही लाभ होगा।

सुषमा स्वराज और सोनिया गांधी
- फोटो :
PTI
विधेयक का विचार कहां से आया
इस विधेयक का मूल विचार 1993 में पारित संवैधानिक संशोधन के बाद आया था। इस संवैधानिक संशोधन में कहा गया है कि ग्राम पंचायत में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित होने की बात कही गई थी। जब यह विधेयक नौ मार्च 2010 को राज्यसभा से पारित हुआ था तो कांग्रेस में बहुत उत्साह था, और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, भाजपा नेता सुषमा स्वराज और सीपीआई (एम) की वृंदा करात ने संसद के बाहर कैमरों के लिए पोज दिया था। उनके चेहरे पर मुस्कान थी और वे एकजुटता में हाथ पकड़े हुए थीं। हालांकि, कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए लोकसभा में विधेयक को पारित करने में विफल रही।
इस विधेयक की जरूरत क्यों है?
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार, राजनीतिक सशक्तिकरण सूचकांक में भारत पिछड़ रहा है। वहीं इस साल मार्च में जारी अंतर्राष्ट्रीय संसदीय संघ के आंकड़ों के मुताबिक, कानून बनाने में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत की रैंकिंग कम 148 है, जबकि 1998 में यह 95 थी। पिछले सात दशकों में, भारत उन देशों से पीछे छोड़ दिया गया है, जिनकी स्थिति इस मामले में भारत से बदतर थी।
पहले चुनाव में पांच फीसदी महिलाएं संसद पहुंची थीं
1952 में, जब देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था, तब करीब पांच फीसदी सांसद महिलाएं थीं। उस समय, अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में केवल दो प्रतिशत और ब्रिटेन की संसद में तीन प्रतिशत महिलाएं थीं। सरकार के आर्थिक सर्वेक्षणों में भी यह माना जाता है कि लोकसभा और विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधियों की संख्या बहुत कम है। संसद में, राज्यसभा में 245 सीटों में केवल 25 महिलाएं है। यानी सिर्फ 10 फीसदी।
इसी तरह लोकसभा में 543 सीटों में से 78 महिला सांसद है जो कुल 14 फीसदी है, जो अब तक का सर्वाधिक है। हालांकि, अमेरिका और ब्रिटेन ने महिलाओं के प्रतिनिधित्व में क्रमशः 27.33 प्रतिशत और 33.9 प्रतिशत की अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। भारत को अपनी पहली महिला प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी 1966 में मिलीं, हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि उन्हें यह उपलब्धि मुख्य रूप से अपने परिवार के कारण मिला।
चार हजार विधायकों में केवल नौ फीसदी महिलाएं
दिल्ली विधानसभा के 70 विधायकों में से केवल आठ महिला प्रतिनिधि है, जो कुल 11 फीसदी हैं। दिल्ली कैबिनेट में सभी महत्वपूर्ण विभागों के लिए जिम्मेदार सात मंत्रियों में से कोई भी महिला मंत्री नहीं है। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में 96 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा लेकिन केवल 38 महिलाओं को विधायक चुना गया। एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में, भारत में 4,000 से अधिक विधायकों में से केवल नौ प्रतिशत ही महिलाएं हैं, और केवल एक महिला मुख्यमंत्री है। हालांकि विभिन्न सर्वेक्षणों से संकेत मिलते हैं कि पंचायती राज संस्थानों में महिला प्रतिनिधियों ने गांवों में समाज के विकास और कल्याण में सराहनीय कार्य किया है, इसलिए संसद और विधानसभा में भी महिलाओं को आरक्षण देने की मांग है।
इस विधेयक का मूल विचार 1993 में पारित संवैधानिक संशोधन के बाद आया था। इस संवैधानिक संशोधन में कहा गया है कि ग्राम पंचायत में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित होने की बात कही गई थी। जब यह विधेयक नौ मार्च 2010 को राज्यसभा से पारित हुआ था तो कांग्रेस में बहुत उत्साह था, और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, भाजपा नेता सुषमा स्वराज और सीपीआई (एम) की वृंदा करात ने संसद के बाहर कैमरों के लिए पोज दिया था। उनके चेहरे पर मुस्कान थी और वे एकजुटता में हाथ पकड़े हुए थीं। हालांकि, कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए लोकसभा में विधेयक को पारित करने में विफल रही।
इस विधेयक की जरूरत क्यों है?
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार, राजनीतिक सशक्तिकरण सूचकांक में भारत पिछड़ रहा है। वहीं इस साल मार्च में जारी अंतर्राष्ट्रीय संसदीय संघ के आंकड़ों के मुताबिक, कानून बनाने में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत की रैंकिंग कम 148 है, जबकि 1998 में यह 95 थी। पिछले सात दशकों में, भारत उन देशों से पीछे छोड़ दिया गया है, जिनकी स्थिति इस मामले में भारत से बदतर थी।
पहले चुनाव में पांच फीसदी महिलाएं संसद पहुंची थीं
1952 में, जब देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था, तब करीब पांच फीसदी सांसद महिलाएं थीं। उस समय, अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में केवल दो प्रतिशत और ब्रिटेन की संसद में तीन प्रतिशत महिलाएं थीं। सरकार के आर्थिक सर्वेक्षणों में भी यह माना जाता है कि लोकसभा और विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधियों की संख्या बहुत कम है। संसद में, राज्यसभा में 245 सीटों में केवल 25 महिलाएं है। यानी सिर्फ 10 फीसदी।
इसी तरह लोकसभा में 543 सीटों में से 78 महिला सांसद है जो कुल 14 फीसदी है, जो अब तक का सर्वाधिक है। हालांकि, अमेरिका और ब्रिटेन ने महिलाओं के प्रतिनिधित्व में क्रमशः 27.33 प्रतिशत और 33.9 प्रतिशत की अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। भारत को अपनी पहली महिला प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी 1966 में मिलीं, हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि उन्हें यह उपलब्धि मुख्य रूप से अपने परिवार के कारण मिला।
चार हजार विधायकों में केवल नौ फीसदी महिलाएं
दिल्ली विधानसभा के 70 विधायकों में से केवल आठ महिला प्रतिनिधि है, जो कुल 11 फीसदी हैं। दिल्ली कैबिनेट में सभी महत्वपूर्ण विभागों के लिए जिम्मेदार सात मंत्रियों में से कोई भी महिला मंत्री नहीं है। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में 96 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा लेकिन केवल 38 महिलाओं को विधायक चुना गया। एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में, भारत में 4,000 से अधिक विधायकों में से केवल नौ प्रतिशत ही महिलाएं हैं, और केवल एक महिला मुख्यमंत्री है। हालांकि विभिन्न सर्वेक्षणों से संकेत मिलते हैं कि पंचायती राज संस्थानों में महिला प्रतिनिधियों ने गांवों में समाज के विकास और कल्याण में सराहनीय कार्य किया है, इसलिए संसद और विधानसभा में भी महिलाओं को आरक्षण देने की मांग है।