J&K: पत्नी की हत्या कर रचा आत्महत्या का नाटक, गला घोंटकर शव नदी में फेंका, गांदरबल अदालत ने सुनाई उम्रकैद
गांदरबल अदालत ने पत्नी की हत्या के दोषी अब्दुल मजीद खान को आजीवन कारावास और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। अदालत ने फोरेंसिक साक्ष्यों के आधार पर हत्या का दोष साबित किया, जबकि सह-अभियुक्त निसार अहमद को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
विस्तार
गांदरबल के प्रधान सत्र न्यायाधीश अब्दुल नासिर ने पत्नी की हत्या के दोषी पति को शनिवार को आजीवन कारावास और एक लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।
अभियोजन के अनुसार अब्दुल मजीद ने 10 जुलाई 2020 को कंगन पुलिस थाने में पत्नी रुबीना के लापता होने की सूचना दी जो एक दिन पहले दिन पानी लेने गई थी और वापस नहीं आई। व्यापक खोजबीन के बाद 14 जुलाई, 2020 को नाला सिंध नदी से रुबीना का क्षत-विक्षत शव बरामद किया गया। प्रारंभिक जांच में संदिग्ध परिस्थितियों का पता चला जिसके बाद हत्या की एफआईआर दर्ज की गई।
विस्तृत जांच से पता चला कि अब्दुल मजीद ने 9 जुलाई 2020 को अपनी पत्नी की नायलॉन की रस्सी से गला घोंटकर हत्या कर दी थी। उसने पत्नी के कपड़े बदले और शव को ऊनी स्टॉल से छत के पंखे से लटकाकर आत्महत्या का नाटक रचा। फिर शव को दूसरे कमरे में बंद कर दिया और बाद में अपनी बेकरी की दुकान में ले जाया गया जहां उसे गत्ते के डिब्बों के नीचे छिपा दिया गया।
इसके बाद शव को मोटरसाइकिल पर अख्याल पुल तक पहुंचाया और नदी में फेंक दिया। नायलॉन की रस्सी, चोरी के कपड़े, ऊनी स्टॉल, खून से सने गत्ते और बालों के रेशे सहित भौतिक साक्ष्य बरामद किए गए और फोरेंसिक विश्लेषण की ओर से आरोपी और मृतक से उनका मिलान किया गया। आरोपी ने जांचकर्ताओं के सामने अपनी विकलांगता के बावजूद मृतक के शव को उठाने की अपनी क्षमता का भी प्रदर्शन किया।
मुकदमे के दौरान अब्दुल मजीद खान ने हत्या और उसके बाद अपराध को छिपाने के प्रयासों को स्वीकार करते हुए एक औपचारिक प्रकटीकरण बयान दिया। अभियोजन पक्ष ने एफएसएल श्रीनगर की फोरेंसिक रिपोर्ट, गवाहों के बयानों और जब्ती ज्ञापनों की ओर से समर्थित मजबूत परिस्थितिजन्य साक्ष्य प्रस्तुत किए।
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि अभियुक्त की शारीरिक विकलांगता के कारण उसके लिए अपराध करना असंभव था लेकिन अदालत ने दस्तावेजी साक्ष्यों और जांच के दौरान किए गए परीक्षणों के आधार पर इस दावे को खारिज कर दिया।
साक्ष्यों का मूल्यांकन करते हुए गांदरबल के प्रधान सत्र न्यायाधीश अब्दुल नासिर ने अब्दुल मजीद खान को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी पाया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने सह-अभियुक्त निसार अहमद को शव को ठिकाने लगाने में उसकी संलिप्तता साबित करने वाले साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया।