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जमीन अधिग्रहण बिलः जेब ढीली करनी पड़ेगी डेवलपर्स को
नई दिल्ली/इंटरनेट डेस्क
Updated Sat, 15 Dec 2012 10:52 AM IST
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जमीन अधिग्रहण बिल को कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही अब इस पर बहस शुरू हो गई है कि इससे रीयल स्टेट और अन्य कारोबार पर कैसा असर पड़ेगा। विश्लेषकों का कहना है कि प्राइवेट सेक्टर के लिए जमीन लेना मुश्किल हो जाएगा। बिल के मुताबिक प्राइवेट प्रोजेक्ट्स को जमीन अधिग्रहण के लिए 80 प्रतिशत जमीन मालिकों की सहमति लेनी होगी।
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पीपीपी मोड और जनहित यानी सरकारी परियोजनाओं के लिए अधिग्रहण को दो तिहाई यानी 70 फीसदी भू स्वामियों की मंजूरी लेनी होगी। साथ ही जिस मकसद के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया है, उसे दस वर्षों में पूरा करना अनिवार्य होगा। अधिग्रहीत जमीन पर निर्धारित समय में परियोजना शुरू न होने की स्थिति में भूमि पर सरकार का कब्जा स्वत: हो जाएगा। यानी अधिग्रहीत जमीन सरकार के भूमि बैंक में जमा हो जाएगी।
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विशलेषकों के मुताबिक किसानों से जमीन खरीदने के लिए डेवलपर्स को अधिक जेब ढीली करनी होगी। जमीन खरीदने की लागत बढ़ने से मकान के दाम बढ़ जाएंगे। रीयल स्टेट में बढ़े दाम का भार आखिरकार ग्राहकों पर पड़ेगा।
जमीन अधिग्रहण बिल पर एक नजर
--अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी भू-स्वामियों की सहमति जरूरी।
--दस वर्षों में परियोजना शुरू नहीं होने पर अधिग्रहीत भूमि पर हो जाएगा सरकार का कब्जा।
--पीपीपी मोड की परियोजनाओं को अधिग्रहण के लिए 70 फीसदी भू स्वामियों की मंजूरी लेनी होगी।
--मसौदे में किसानों को मुआवजे और प्रभावित परिवारों के पुनर्वास का प्रावधान बरकरार।