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सीआरआर में कमी आसान करती है सस्ते कर्ज की राह
मुंबई/एजेंसी
Updated Thu, 02 May 2013 08:17 PM IST
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मौद्रिक नीति में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती होने पर ही बैंक लोन की ब्याज दरों में कटौती कर सकते हैं।
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केवल मूल दरों में कटौती किए जाने पर बैंक कर्ज की ब्याज दरें घटाने में समर्थ नहीं हो पाते क्योंकि सीआरआर कम न होने से उनपर वित्तीय दबाव बना रहता है।
ऐसे में सीआरआर में कमी किए जाने पर मौद्रिक नीति में नरमी का लाभ ग्राहकों तक पहुंचने का रास्ता ज्यादा साफ होता है। रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स ने यह बात अपनी एक रिपोर्ट में कही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्ज की ब्याज दरों को नीचे लाने के लिहाज से मौद्रिक नीति में रेपो रेट घटाने से ज्यादा कारगर उपाय सीआरआर में कटौती करना साबित होता है।
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केवल रेपो रेट घटाए जाने पर बैंकों पर नकदी का दबाव बना रहता है और जमा पर ग्राहकों को अधिक ब्याज देने के चलते बैंक लोन की बेस रेट में कटौती नहीं कर पाते हैं।
हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ बैंकों ने अपने मार्जिन को बरकरार रखने के लिए बीती अवधि में सीआरआर में दो फीसदी तक की कटौती होने पर भी लोन की ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की है।