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2026 में शादी तय करने जा रहे हैं? इन नियमों को इग्नोर न करें, शास्त्र मानते हैं जरूरी

ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला Published by: श्वेता सिंह Updated Sun, 21 Dec 2025 02:02 PM IST
सार

Wedding Muhurat 2026: वर्ष 2026 में शादी की योजना बना रहे हैं तो जानें ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुभ मुहूर्त, कुंडली मिलान और विवाह से जुड़े महत्वपूर्ण नियम, ताकि वैवाहिक जीवन सुखमय बने।

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विवाह से जुड़े उपाय - फोटो : amar ujala

Astrology Rules For Marriage: वर्ष 2026 में विवाह की योजना बना रहे लोगों के लिए ज्योतिष शास्त्र से जुड़ी अहम जानकारी सामने आई है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार नए कैलेंडर में 5 फरवरी 2026 से 12 दिसंबर 2026 के बीच विवाह के लिए कुल 59 शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। इस अवधि में कई ऐसे महीने होंगे जिनमें एक से अधिक शुभ तिथियां उपलब्ध रहेंगी, जिससे शादी-विवाह के लिए यह समय बेहद अनुकूल माना जा रहा है। हालांकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास और अधिक मास के कारण अगस्त, सितंबर और अक्टूबर 2026 में विवाह मुहूर्त नहीं होंगे, इसलिए इन महीनों में शादी करने की परंपरा नहीं है।


शास्त्रों के अनुसार विवाह केवल एक सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कार है, जिससे परिवार, समाज और वंश परंपरा का संचालन होता है। विवाह व्यक्ति के जीवन में सुख, स्थिरता और समृद्धि ला सकता है, लेकिन यदि विवाह तय करते समय आवश्यक सावधानियों को नजरअंदाज किया जाए तो यही संबंध भविष्य में दुख का कारण भी बन सकता है। इसी कारण शास्त्रों में कुंडली मिलान के साथ-साथ विवाह से जुड़े कई महत्वपूर्ण नियम और जानकारियां बताई गई हैं, जिनका पालन करने से वैवाहिक जीवन सफल और सुखमय बनता है।
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विवाह से जुड़े ऐसे नियम मुख्य रूप से धर्मशास्त्र, गृह्यसूत्र, और मूहूर्त शास्त्र में उल्लेखित हैं। विशेष रूप से मनुस्मृति, पराशर स्मृति, विष्णु धर्मसूत्र, तथा आश्वलायन और आपस्तंब गृह्यसूत्र में विवाह संस्कार से संबंधित मर्यादाओं और निषेधों का वर्णन मिलता है। इसके अलावा ज्योतिष पर आधारित ग्रंथ जैसे मूहूर्त चिंतामणि, धर्मसिंधु, निर्णयसिंधु, मुहूर्त मार्तंड और जातक पारिजात में विवाह लग्न की शुद्धता, ग्रह दशा, वर्ष-गणना, ज्येष्ठ संतान, सहोदर विवाह और मंगल कार्यों के अंतर जैसे नियम बताए गए हैं। वर्तमान समय में ज्योतिषाचार्य इन्हीं शास्त्रीय ग्रंथों और परंपरागत आचारों के आधार पर विवाह से जुड़े नियमों का उल्लेख और मार्गदर्शन करते हैं। आइये जानते हैं नियमों के बारे में। 
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विवाह तय कर रहे तो इन ज्योतिष नियमों को न करें नजरअंदाज - फोटो : Adobe Stock

विवाह तय कर रहे तो इन ज्योतिष नियमों को न करें नजरअंदाज

  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रथम संतान (लड़का या लड़की) का विवाह उसके जन्म मास, जन्म नक्षत्र और जन्म वार में नहीं करना चाहिए। इसे अशुभ माना गया है।
  • एक मंगल कार्य (जैसे विवाह, मुंडन आदि) के बाद छह महीने के भीतर दूसरा मंगल कार्य करना उचित नहीं माना जाता।
  • पुत्र का विवाह करने के बाद छह महीने के भीतर पुत्री का विवाह नहीं करना चाहिए, इससे पारिवारिक अशांति की संभावना बताई गई है।
  • एक ही गर्भ से उत्पन्न दो कन्याओं का विवाह यदि छह महीने के अंतर में किया जाए, तो शास्त्रों के अनुसार तीन वर्षों के भीतर किसी एक पर संकट आ सकता है।
  • जिस परिवार में अपने पुत्र का विवाह किया गया हो, उसी परिवार के पुत्र से अपनी पुत्री का विवाह दोबारा नहीं करना चाहिए।
  • दो सहोदर भाई-बहनों का विवाह या मुंडन संस्कार एक ही दिन नहीं करना चाहिए।
  • ज्येष्ठ पुत्र और ज्येष्ठ पुत्री का आपस में विवाह शास्त्रों में वर्जित माना गया है।
  • ज्येष्ठ मास में जन्मी संतान का विवाह ज्येष्ठ मास में नहीं करना चाहिए।
  • शास्त्रों के अनुसार सम वर्ष में स्त्री का विवाह और विषम वर्ष में पुरुष का विवाह शुभ माना गया है। इसके विपरीत होने पर वैवाहिक जीवन में बाधाएं आ सकती हैं।
  • जिन जातकों की कुंडली में अशुभ ग्रहों की दशा में विवाह हो रहा हो, उन्हें विवाह से पहले ग्रह शांति, मंत्र जप और दान अवश्य करवाना चाहिए, अन्यथा विवाह के बाद जीवन कष्टमय हो सकता है।
  • जिनकी कुंडली में दांपत्य सुख के योग कमजोर हों, उनके लिए विवाह शुभ लग्न और सही मुहूर्त में ही करना अत्यंत आवश्यक होता है।
  • विवाह लग्न की शुद्धता सुखी और स्थिर वैवाहिक जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है, इसलिए इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं करनी चाहिए।
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विवाह के लिए कुंडली मिलाते समय इन बातों का रखें विशेष ध्यान - फोटो : अमर उजाला

विवाह के लिए कुंडली मिलाते समय इन बातों का रखें विशेष ध्यान

  • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राशियों के आधार पर वर्ण निर्धारित माने गए हैं। मीन, वृश्चिक और कर्क को ब्राह्मण वर्ण; मेष, सिंह और धनु को क्षत्रिय वर्ण; कन्या, मकर और वृष को वैश्य वर्ण तथा मिथुन, तुला और कुंभ को शूद्र वर्ण में रखा गया है।
  • शास्त्रों में उत्तम वर्ण की कन्या के साथ हीन वर्ण के पुरुष का विवाह वर्जित बताया गया है। ऐसी स्थिति को वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ और कष्टदायक माना गया है।
  • विशेष रूप से ब्राह्मण वर्ण की कन्या के साथ शूद्र वर्ण के पुरुष का विवाह शास्त्रसम्मत नहीं माना गया है और इसे दांपत्य सुख के लिए हानिकारक बताया गया है।
  • विवाह तय करने से पहले केवल गुण मिलान ही नहीं, बल्कि वर्ण, नाड़ी, गण और योनि दोष का भी गंभीरता से विचार करना चाहिए।
  • शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण वर्ग के लिए नाड़ी दोष, क्षत्रियों के लिए वर्ण दोष, वैश्यों के लिए गण दोष और शूद्रों के लिए योनि दोष का विचार विशेष रूप से आवश्यक माना गया है। यदि इनमें अनुकूलता न हो तो विवाह को अशुभ माना जाता है।
  • यदि वर और कन्या का जन्म एक ही नक्षत्र में हुआ हो तो नाड़ी दोष नहीं माना जाता। वहीं जन्म राशि एक हो और नक्षत्र अलग-अलग हों, या नक्षत्र एक हो लेकिन राशि अलग हो, अथवा एक ही नक्षत्र में चरण भेद हो—इन स्थितियों में भी नाड़ी और गण दोष प्रभावी नहीं माने जाते।
  • वर और कन्या की नाड़ी एक होने पर आयु, स्वास्थ्य और सेवा से जुड़े कष्टों की आशंका बताई गई है। आदि नाड़ी वर के लिए, मध्य नाड़ी कन्या के लिए और अंत्य नाड़ी दोनों के लिए हानिकारक मानी गई है, इसलिए ऐसी स्थिति से बचने की सलाह दी जाती है।
  • विवाह मुहूर्त में ग्रह बल का भी विचार अनिवार्य है। वर के लिए सूर्य बल, कन्या के लिए गुरु बल और दोनों के लिए चंद्र बल का मजबूत होना शुभ माना गया है।
  • यदि विवाह के समय वर की राशि से सूर्य आठवें, चौथे या बारहवें भाव में स्थित हो, तो इसे वर के लिए हानिकारक बताया गया है, इसलिए ऐसे योग में विवाह से बचना उचित माना जाता है।


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। 

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