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Religion: शिवालयों में नंदी के कान में क्यों फुसफसाते हैं लोग, क्या है इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएं?

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिखर बरनवाल Updated Sun, 09 Nov 2025 03:44 PM IST
सार

भगवान शिव की आराधना करने वाले लगभग सभी भक्त नंदी के कान में फुसफुसाते हैं। अक्सर कुछ लोगों के मन में सवाल होता है कि आखिर ऐसा क्यों किया जाता है? असल मान्यता है कि ऐसा करने से मनोकामनाएं जल्द पूर्ण होती हैं। आइए इस लेख में इसके धार्मिक महत्व जानते हैं।

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Why do people says into the ears of Nandi in Shiva temples what are the religious beliefs behind it
नंदी - फोटो : Adobe Stock

Importance of Worshipping Nandi in Shiva Temple: भारत के लगभग हर शिव मंदिर में शिवलिंग के सामने नंदी महाराज की मूर्ति अवश्य स्थापित होती है। भक्तगण पूजा-अर्चना के बाद अक्सर नंदी की मूर्ति के कान के पास जाकर कुछ फुसफुसाते हैं या अपनी इच्छाएं व्यक्त करते हैं। यह परंपरा केवल एक रस्म नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। 



नंदी को भगवान शिव का सबसे प्रिय गण प्रमुख द्वारपाल और उनका वाहन माना जाता है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि नंदी भगवान शिव के इतने करीब हैं कि वे ही भक्तों के संदेशों और प्रार्थनाओं को सीधे महादेव तक पहुंचाने का माध्यम हैं। जब भगवान शिव गहन तपस्या या समाधि में लीन होते हैं, तब नंदी ही वह एकमात्र हस्ती होते हैं जो उनके और भक्तों के बीच सेतु का काम करते हैं। भक्तों का अटूट विश्वास है कि नंदी के कान में कही गई कोई भी बात सीधे शिव तक पहुंचती है और उनकी वह इच्छा अवश्य पूरी होती है।

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Why do people says into the ears of Nandi in Shiva temples what are the religious beliefs behind it
नंदी - फोटो : adobe stock

शिव और नंदी के बीच का संवाद
पौराणिक कथाओं के अनुसार, नंदी को धर्म और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। उन्हें भगवान शिव ने यह वरदान दिया था कि जो भी भक्त अपनी इच्छा नंदी के कान में कहेगा, वह प्रार्थना शिव तक अवश्य पहुंचेगी, क्योंकि नंदी हमेशा महादेव के ध्यान में लीन रहते हैं। इसलिए भक्त नंदी के कान में अपने दुख, समस्याएं या मनोकामनाएं बताते हैं।


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नंदी - फोटो : Adobe Stock

इच्छा पूरी होने का अटूट विश्वास
भक्तों का विश्वास है कि नंदी शिव के सबसे निकटस्थ शिष्य और श्रेष्ठ भक्त हैं। चूंकि शिव हमेशा ध्यान में रहते हैं, नंदी उनकी तपस्या को भंग किए बिना भक्तों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भक्त मानते हैं कि नंदी के कान में फुसफुसाने से उनकी इच्छाओं को एक 'उच्च माध्यम' मिल जाता है, जिससे उनकी प्रार्थनाएं अधिक गंभीरता से ली जाती हैं और जल्दी पूरी होती हैं।


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नंदी - फोटो : Adobe Stock

मनोवैज्ञानिक महत्व
इस परंपरा का एक मनोवैज्ञानिक पहलू भी है। किसी भी समस्या या इच्छा को नंदी के कान में फुसफुसाने से भक्त को एक प्रकार की आंतरिक शांति और संतुष्टि मिलती है। ऐसा करने से भक्त का मन हल्का हो जाता है। यह क्रिया व्यक्ति के मन को यह विश्वास दिलाती है कि उसने अपनी बात सर्वोच्च शक्ति तक पहुंचा दी है, जिससे तनाव कम होता है।

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नंदी - फोटो : Adobe Stock
दाएं या बाएं किस कान में अपनी बात फुसफुसाना चाहिए?
नंदी के कान में अपनी इच्छा बताते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। मान्यता है कि इच्छा हमेशा बाएं कान में बतानी चाहिए। अपनी इच्छा को जोर से नहीं, बल्कि शांति और संयम के साथ फुसफुसाना चाहिए। अपनी प्रार्थना बताने के बाद नंदी को धन्यवाद देना भी इस परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। माना जाता है ऐसा करने से आपकी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी होती हैं।

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
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