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किसानों के लिए नई आफत: धान की फसल को फंग्स व सूंडी का खतरा, बारिश के कारण नहीं हो पाया यूरिया का छिड़काव

सुरिंदर पाल, अमर उजाला, जालंधर (पंजाब) Published by: निवेदिता वर्मा Updated Sat, 13 Sep 2025 12:08 PM IST
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सार

किसान नरिंदर सिंह का कहना है कि बासमती धान के पौधे की पत्तियों पर पीलापन दिखाई दे रहा है। पत्तियों के किनारे सूख रहे हैं। तना पतला और कमजोर हो रहा है। यह बकानी रोग के लक्षण बन रहे हैं। धान की फसल में बकानी रोग लगते ही पौधे की जड़ें सूखने लगती हैं जिससे पौधा पोषक तत्वों को अच्छे से ग्रहण नहीं कर पाता।

New trouble for farmers Paddy crop risk of fungus caterpillar urea spraying
पंजाब में फसल बर्बाद - फोटो : एजेंसी
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विस्तार
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पंजाब के लिए किसानों के लिए अब नई आफत आ गई है। बाढ़ ने जहां पंजाब में चार लाख एकड़ जमीन की खेती को तबाह कर दिया है। वहीं, बारिश के कारण इस बार किसान धान की खेती पर यूरिया का स्प्रे भी नहीं कर पाए। 
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इन दिनों में धान की खेती को कम पानी की जरूरत होती है लेकिन बारिश के कारण खेतों में पानी जमा रहा, जिस कारण धान की फसल पर फंग्स लगने का खतरा हो गया है। फसल की जड़ें कमजोर होने से सूंडी लगने का खतरा मंडराने लगा है जिससे किसानों की चिंता बढ़ने लगी है।
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किसान नरिंदर सिंह का कहना है कि बासमती धान के पौधे की पत्तियों पर पीलापन दिखाई दे रहा है। पत्तियों के किनारे सूख रहे हैं। तना पतला और कमजोर हो रहा है। यह बकानी रोग के लक्षण बन रहे हैं। धान की फसल में बकानी रोग लगते ही पौधे की जड़ें सूखने लगती हैं जिससे पौधा पोषक तत्वों को अच्छे से ग्रहण नहीं कर पाता। पौधे के तने के नीचे की गांठों से जड़ निकलने लगती है। सफेद और गुलाबी रंग की फफूंदी भी दिखाई देती है। फसल पर खतरा मंडरा रहा है। 

किसान बलवंत सिंह का कहना है कि बारिश के कारण यूरिया का स्प्रे नहीं किया जा सका। लिहाजा, प्रभावी नियंत्रण के लिए रासायनिक घोल का छिड़काव किया जा रहा है। थायोफिनेट मिथाइल की 250 ग्राम मात्रा लेकर 130 से 140 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि किसान धान की फसल की नियमित निगरानी करें और रोग के शुरुआती लक्षण दिखते ही कृषि विभाग से सलाह लें। पीएयू के हरि सिंह का कहना है कि समय पर दवा का प्रयोग करने से फसल को बड़े नुकसान से बचाया जा सकता है। धान की खेती पर फंगल अटैक एक गंभीर समस्या है, लेकिन जागरूकता और वैज्ञानिक पद्धतियों के प्रयोग से किसान अपनी मेहनत और फसल दोनों को सुरक्षित रख सकते हैं।

फंगल अटैक से बचाव

खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें। धान की फसल में नाइट्रोजन की अधिकता फंगस को बढ़ावा देती है, इसलिए संतुलित मात्रा में खाद डालें। ब्लास्ट रोग के नियंत्रण के लिए ट्राइसायक्लाजोल का छिड़काव, शीथ ब्लाइट के लिए कार्बेन्डाजिम या हेक्साकोनाजोल का प्रयोग करने की सलाह दी जा रही है। ब्राउन स्पॉट के लिए मैनेकोजेब या अन्य फफूंदनाशक का छिड़काव प्रभावी रहता है। पंजाब कृषि विभाग की क्षेत्रीय रिपोर्टों के अनुसार, चावल की खेती का रकबा 32.46 लाख हेक्टेयर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है जिसमें 6.80 लाख हेक्टेयर बासमती शामिल है।
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