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Jaipur News: कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर की कथा में तिलक अनिवार्य, ऐसा नहीं किया तो 'नो एंट्री'; जानें

Ashish Kulshrestha आशीष कुलश्रेष्ठ
Updated Sat, 20 Dec 2025 11:41 AM IST
सार

Jaipur News: कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि उनकी कथा में प्रवेश के लिए तिलक अनिवार्य है। शास्त्रों में तिलक बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद हिंदू प्रतीकों का मजाक उड़ाया गया, जबकि सनातन को समझने के लिए तिलक जरूरी है। 

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Jaipur News: Tilak mandatory at storyteller Devkinandan Thakur's Katha; 'No entry' if not applied
कथा में बिना तिलक के प्रवेश नहीं - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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जयपुर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दौरान प्रसिद्ध कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने तिलक को लेकर स्पष्ट और सख्त संदेश दिया। अमर उजाला से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि कथा सुनने के लिए तिलक लगाना अनिवार्य है और बिना तिलक के प्रवेश नहीं दिया जाएगा। उनके अनुसार, हिंदू शास्त्रों में तिलक के बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती।

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देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि आजादी के बाद से लगातार उन प्रतीकों को निशाना बनाया गया, जो हिंदू संस्कृति और सम्मान से जुड़े हैं। तिलक लगाने या चोटी रखने वाले लोगों का मजाक उड़ाया गया और उन्हें पंडित कहकर चिढ़ाया गया। उन्होंने कहा कि सनातन परंपरा में तिलक और चोटी का विशेष महत्व है और इनके बिना धार्मिक आचरण अधूरा माना जाता है।
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कथावाचक ने उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे आराध्य भगवान राम स्वयं तिलक लगाते थे और भगवान कृष्ण भी तिलक धारण करते थे। जब हमारे देवता तिलक लगाते हैं, तो सामान्य श्रद्धालु तिलक क्यों न लगाएं। उन्होंने कहा कि यदि किसी को तिलक से नफरत है, तो उसे कथा में आने की आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी के टोपी पहनने, क्रॉस लगाने या अन्य धार्मिक प्रतीक अपनाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जब कोई तिलक लगाता है या चोटी रखता है, तो कुछ लोगों को परेशानी क्यों होती है, यह सवाल समाज को खुद से पूछना चाहिए।

यह भी पढ़ें- Rajasthan: 'महात्मा गांधी के राम के नाम पर बिल, इससे बेहतर क्या हो सकता है', कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने कहा

देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि सनातन संस्कृति को समझने और आत्मसात करने के लिए उसके प्रतीकों का सम्मान जरूरी है। तिलक केवल बाहरी चिन्ह नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और पहचान का प्रतीक है। उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील की कि वे अपनी परंपराओं पर गर्व करें और बिना संकोच अपने धार्मिक संस्कारों का पालन करें।

कथा आयोजन समिति ने भी इस निर्णय का समर्थन किया और कहा कि तिलक नियम श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा है। आयोजकों के अनुसार यह व्यवस्था किसी को अलग करने के लिए नहीं, बल्कि परंपरा की मर्यादा बनाए रखने के लिए है। उन्होंने बताया कि कथा स्थल पर तिलक की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि किसी को असुविधा न हो और सभी श्रद्धालु सहज रूप से कथा श्रवण कर सकें। 

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