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राइट टू एजूकेशन एक्ट में सूचना दे विश्वविद्यालय
Shimla
Updated Fri, 25 Apr 2014 05:30 AM IST
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शिमला। हिमाचल प्रदेश सूचना आयोग ने राज्य विश्वविद्यालय को आदेश दिए हैं कि वह आरटीआई में मांगी गई सूचना को जारी करे। आयोग ने यह निर्णय कुलपति के वरिष्ठ निजी सहायक की ओर से की गई अपील पर लिया है। आयोग ने अपने एक फैसले की विश्वविद्यालय की ओर से की गई गलत व्याख्या पर भी तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि इस संदर्भ में आवश्यक निर्देश जारी किए जाएं। यह फैसला राज्य सूचना आयुक्त केडी बातिश के कोर्ट ने सुनाया है।
उमाकांत बनाम सहायक पंजीयक स्थापना हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय मामले में आयोग ने कहा कि जहां पर एक कर्मचारी पब्लिक अथॉरिटी के किसी एक्शन से पीड़ित हो और ऐसी जानकारी मांग रहा हो जिस तक उसकी पहुंच नहीं हो। यानी वह सूचना का कस्टोडियन नहीं हो तो उसे भारत के नागरिक के रूप में सूचना लेने का अधिकार है। शेखर शर्मा बनाम जनसूचना अधिकारी हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय मामले को जानकारी न देने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। विशेषकर सूचना मांगने वाले ऐसे व्यक्ति के लिए इसे देने से इंकार नहीं किया जा सकता है, जो पब्लिक अथारिटी की किसी गलत कार्रवाई से पीड़ित हो। आयोग ने कहा कि शेखर शर्मा बनाम हिमाचल विश्वविद्यालय मामले को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जाना चाहिए। उस मामले में आवेदक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त रहा है और आवेदक ने 31 सवाल पूछे थे। जो अकादमिक प्रकृति के थे। ऐसे सवाल आरटीआई एक्ट में सूचना लेने के लिए नहीं किए जा सकते। उस मामले में यह भी पाया गया है कि पब्लिक अथारिटी के ऐसे कर्मचारी जो सूचना के कस्टोडियन हो, उनसे सूचना इस तरह से मांगने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। आयोग ने आवेदक को विश्वविद्यालय के जनसूचना अधिकारी से कोर्ट में ही सूचना भी दिलाई।
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उमाकांत बनाम सहायक पंजीयक स्थापना हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय मामले में आयोग ने कहा कि जहां पर एक कर्मचारी पब्लिक अथॉरिटी के किसी एक्शन से पीड़ित हो और ऐसी जानकारी मांग रहा हो जिस तक उसकी पहुंच नहीं हो। यानी वह सूचना का कस्टोडियन नहीं हो तो उसे भारत के नागरिक के रूप में सूचना लेने का अधिकार है। शेखर शर्मा बनाम जनसूचना अधिकारी हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय मामले को जानकारी न देने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। विशेषकर सूचना मांगने वाले ऐसे व्यक्ति के लिए इसे देने से इंकार नहीं किया जा सकता है, जो पब्लिक अथारिटी की किसी गलत कार्रवाई से पीड़ित हो। आयोग ने कहा कि शेखर शर्मा बनाम हिमाचल विश्वविद्यालय मामले को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जाना चाहिए। उस मामले में आवेदक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त रहा है और आवेदक ने 31 सवाल पूछे थे। जो अकादमिक प्रकृति के थे। ऐसे सवाल आरटीआई एक्ट में सूचना लेने के लिए नहीं किए जा सकते। उस मामले में यह भी पाया गया है कि पब्लिक अथारिटी के ऐसे कर्मचारी जो सूचना के कस्टोडियन हो, उनसे सूचना इस तरह से मांगने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। आयोग ने आवेदक को विश्वविद्यालय के जनसूचना अधिकारी से कोर्ट में ही सूचना भी दिलाई।
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