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Sports Bill: कानून बना राष्ट्रीय खेल विधेयक, राष्ट्रपति मुर्मू ने किए हस्ताक्षर; जानें इसके अहम प्रावधान
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Tue, 19 Aug 2025 12:23 PM IST
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सार
इस कानून के मुताबिक, केंद्र सरकार को 'राष्ट्रीय हित में निर्देश जारी करने और रोक लगाने की शक्ति' संबंधी धारा के तहत एक आदेश के द्वारा असाधारण परिस्थितियों में भारतीय टीमों और व्यक्तिगत खिलाड़ियों की अंतरराष्ट्रीय भागीदारी पर उचित रोक लगाने का अधिकार होगा।

राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक अधिनियम में तब्दील
- फोटो : pib.gov.in
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विस्तार
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मंजूरी मिलने के साथ ही राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक अधिनियम बन गया है। इस विधेयक में भारत के खेल प्रशासन में सुधार का वादा किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा जारी राजपत्र अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति की मंजूरी सोमवार को मिल गई। इसमें कहा गया है, 'संसद के निम्नलिखित अधिनियम को 18 अगस्त, 2025 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई और इसे सामान्य जानकारी के लिए प्रकाशित किया जाता है – राष्ट्रीय खेल प्रशासन अधिनियम, 2025।'
नया कानून न केवल प्रशासनिक मानदंड निर्धारित करता है, बल्कि इसमें विवादों के त्वरित समाधान के लिए राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण के गठन का भी प्रावधान है। इसके अलावा, इसमें राष्ट्रीय खेल चुनाव पैनल के गठन की भी बात कही गई है जो अक्सर विवादों में घिरे रहने वाले राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) के चुनावों की निगरानी करेगा। इस कानून में राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) में अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष के पदों के लिए चुनाव लड़ने हेतु मानदंड निर्धारित किए गए हैं। शीर्ष तीन पदों के लिए इच्छुक किसी भी व्यक्ति के लिए मूल रूप से कार्यकारी समिति में दो कार्यकाल अनिवार्य थे। सभी हितधारकों के साथ परामर्श के बाद इसमें संशोधन कर इसे न्यूनतम एक कार्यकाल तक सीमित कर दिया गया है।
इससे पहले शीर्ष पदों के लिए दो कार्यकाल की पात्रता निर्धारित थी, लेकिन अब यह एक कार्यकाल तक सीमित हो जाएगी। इस बदलाव से भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) की वर्तमान अध्यक्ष पीटी उषा और भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के प्रमुख कल्याण चौबे के लिए दोबारा चुनाव लड़ने का रास्ता भी साफ हो गया है। संशोधित प्रावधान राज्य निकायों के अध्यक्षों, सचिवों और कोषाध्यक्षों के लिए भी राष्ट्रीय खेल संघों में नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए दावा करने का रास्ता बनाता है, जिससे चुनाव के समय प्रतिस्पर्धा का दायरा बढ़ेगा।

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खेल विधेयक एक दशक से अधिक समय से लंबित था। इसे पिछले एक वर्ष में विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया। इस विधेयक को 23 जुलाई को लोकसभा में पेश किया गया और 11 अगस्त को इसे वहां पारित कर दिया गया। इससे एक दिन बाद राज्यसभा ने दो घंटे से अधिक समय तक चली चर्चा के बाद इसे पारित कर दिया था।
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नया कानून न केवल प्रशासनिक मानदंड निर्धारित करता है, बल्कि इसमें विवादों के त्वरित समाधान के लिए राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण के गठन का भी प्रावधान है। इसके अलावा, इसमें राष्ट्रीय खेल चुनाव पैनल के गठन की भी बात कही गई है जो अक्सर विवादों में घिरे रहने वाले राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) के चुनावों की निगरानी करेगा। इस कानून में राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) में अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष के पदों के लिए चुनाव लड़ने हेतु मानदंड निर्धारित किए गए हैं। शीर्ष तीन पदों के लिए इच्छुक किसी भी व्यक्ति के लिए मूल रूप से कार्यकारी समिति में दो कार्यकाल अनिवार्य थे। सभी हितधारकों के साथ परामर्श के बाद इसमें संशोधन कर इसे न्यूनतम एक कार्यकाल तक सीमित कर दिया गया है।
इससे पहले शीर्ष पदों के लिए दो कार्यकाल की पात्रता निर्धारित थी, लेकिन अब यह एक कार्यकाल तक सीमित हो जाएगी। इस बदलाव से भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) की वर्तमान अध्यक्ष पीटी उषा और भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के प्रमुख कल्याण चौबे के लिए दोबारा चुनाव लड़ने का रास्ता भी साफ हो गया है। संशोधित प्रावधान राज्य निकायों के अध्यक्षों, सचिवों और कोषाध्यक्षों के लिए भी राष्ट्रीय खेल संघों में नेतृत्व की भूमिकाओं के लिए दावा करने का रास्ता बनाता है, जिससे चुनाव के समय प्रतिस्पर्धा का दायरा बढ़ेगा।
अंतरराष्ट्रीय भागीदारी पर उचित रोक लगाने का अधिकार
इस कानून के मुताबिक, केंद्र सरकार को 'राष्ट्रीय हित में निर्देश जारी करने और रोक लगाने की शक्ति' संबंधी धारा के तहत एक आदेश के द्वारा असाधारण परिस्थितियों में भारतीय टीमों और व्यक्तिगत खिलाड़ियों की अंतरराष्ट्रीय भागीदारी पर उचित रोक लगाने का अधिकार होगा। खिलाड़ियों की भागीदारी का मामला अक्सर पाकिस्तान के संबंध में सामने आता है।
विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने को लेकर सरकार की नीति पिछले कुछ वर्षों से बेहद स्पष्ट रही है। अगर कोई ऐसी प्रतियोगिता हो जिसमें कई देश भाग ले रहे हों तो उसमें भागीदारी पर कोई रोक नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ द्विपक्षीय आयोजनों का तो ‘सवाल ही नहीं उठता मुंबई में 2008 में आतंकी हमले के बाद यही स्थिति बनी हुई है। इस हमले में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने 150 से ज्यादा लोगों को मार डाला था।
अधिनियम में राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण का प्रस्ताव
एक और उल्लेखनीय विशेषता राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण का है। इसके मुताबिक, एक सिविल कोर्ट के पास शक्तियां होंगी और वह महासंघों और एथलीटों से जुड़े चयन से लेकर चुनाव तक के विवादों का निपटारा करेगा। एक बार स्थापित होने के बाद, न्यायाधिकरण के निर्णयों को केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकेगी। यह कानून प्रशासकों के लिए आयु सीमा के मुद्दे पर कुछ रियायतें देता है, जिसमें 70 से 75 वर्ष की आयु के लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई है, बशर्ते संबंधित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के नियम और उपनियम इसकी अनुमति दें। यह राष्ट्रीय खेल संहिता से अलग है, जिसमें आयु सीमा 70 वर्ष निर्धारित की गई थी।
इस कानून के मुताबिक, केंद्र सरकार को 'राष्ट्रीय हित में निर्देश जारी करने और रोक लगाने की शक्ति' संबंधी धारा के तहत एक आदेश के द्वारा असाधारण परिस्थितियों में भारतीय टीमों और व्यक्तिगत खिलाड़ियों की अंतरराष्ट्रीय भागीदारी पर उचित रोक लगाने का अधिकार होगा। खिलाड़ियों की भागीदारी का मामला अक्सर पाकिस्तान के संबंध में सामने आता है।
विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने को लेकर सरकार की नीति पिछले कुछ वर्षों से बेहद स्पष्ट रही है। अगर कोई ऐसी प्रतियोगिता हो जिसमें कई देश भाग ले रहे हों तो उसमें भागीदारी पर कोई रोक नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ द्विपक्षीय आयोजनों का तो ‘सवाल ही नहीं उठता मुंबई में 2008 में आतंकी हमले के बाद यही स्थिति बनी हुई है। इस हमले में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने 150 से ज्यादा लोगों को मार डाला था।
अधिनियम में राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण का प्रस्ताव
एक और उल्लेखनीय विशेषता राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण का है। इसके मुताबिक, एक सिविल कोर्ट के पास शक्तियां होंगी और वह महासंघों और एथलीटों से जुड़े चयन से लेकर चुनाव तक के विवादों का निपटारा करेगा। एक बार स्थापित होने के बाद, न्यायाधिकरण के निर्णयों को केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकेगी। यह कानून प्रशासकों के लिए आयु सीमा के मुद्दे पर कुछ रियायतें देता है, जिसमें 70 से 75 वर्ष की आयु के लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई है, बशर्ते संबंधित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के नियम और उपनियम इसकी अनुमति दें। यह राष्ट्रीय खेल संहिता से अलग है, जिसमें आयु सीमा 70 वर्ष निर्धारित की गई थी।