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हाईकोर्ट से पहले देश में थी ईस्ट इंडिया कंपनी की अदालत

अमर उजाला ब्यूरो, इलाहाबाद Updated Fri, 11 Mar 2016 01:37 AM IST
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, इलाहाबाद
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देश में उच्च न्यायालयों के गठन से पूर्व ब्रिटिश सरकार और ईस्ट इंडिया कंपनी की दोहरी न्याय प्रणाली से भारतीयों के मुकदमों का फैसला 1834 से 1861 तक होता रहा। कंपनी और ब्रिटिश राजा की अदालत के क्षेत्राधिकार भिन्न हुआ करते थे। 1858 में कंपनी शासन का अंत हो गया था। इसके बाद न्यायालयों का भी एकीकरण हुआ और न्याय व्यवस्था पूरी तरह से अंग्रेजी हुकूमत वाली भारत सरकार के हाथों में आ गई।
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अंग्रेजी शासन ने पूरे देश के लिए एक आपराधिक दंड संहित, दंड प्रक्रिया संहिता और सिविल प्रक्रिया संहिता लागू की, ताकि न्यायिक प्रक्रिया के निष्पादन में एकरूपता रहे। ब्रिटिश संसद द्वारा 1861 में इंडिया हाईकोर्ट एक्ट पास किया गया।

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एक्ट पारित होने से ब्रिटिश सरकार को सर्वोच्च न्यायालयों और सदर अदालतों को समाप्त करने की शक्ति प्राप्त हो गई। इनके स्थान पर प्रत्येक राज्य के एक लिए एक उच्च न्यायालय का गठन किया गया, जिसे अपने क्षेत्राधिकार वाले राज्य के सभी न्यायालयों पर सर्वोच्चता प्राप्त थी। इस एक्ट से ब्रिटिश सरकार को कहीं पर भी उच्च न्यायालय स्थापित करने की शक्ति प्राप्त हो गई। इसके तहत प्रदेश का पहला उच्च न्यायालय 1866 में आगरा में उत्तर पश्चिम जिलों के लिए स्थापित किया गया।

सर वाल्टर मार्गन प्रदेश के पहले मुख्य न्यायाधीश बने। उच्च न्यायालय में उस समय पांच न्यायाधीश नियुक्त किए गए। हाईकोर्ट के गठन के बाद आगरा प्रांत में पिछले 35 वर्षों से कार्य कर रही सदर दीवानी अदालत और सदर निजामत अदालतों को समाप्त कर हाईकोर्ट में समाहित कर दी गई। हाईकोर्ट को कोर्ट ऑफ रिकार्ड के रूप में मान्यता दी गई और इसे अधीनस्थ अदालतों की अपील और नियंत्रण का अधिकार दे दिया गया।


उत्तर पश्चिम प्रांत के उच्च न्यायालय को 1868 में आगरा से इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया। 1919 में इसे ‘द हाईकोर्ट ज्यूडीकेचर एट इलाहाबाद’ का नाम दिया गया। भारत के आजाद होने के बाद चीफ कोर्ट अवध और इलाहाबाद हाईकोर्ट का विलय कर इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में समाहित कर दिया गया तथा अवध कोर्ट को लखनऊ खंडपीठ का दर्जा दे दिया गया। 

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