जापान में पिछले रविवार को हुए आम चुनाव में एक बार फिर लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) सत्ता में लौट आई। पहले जनमत सर्वेक्षणों में लगाए गए अनुमान को भी उसने गलत साबित कर दिया कि इस चुनाव में उसे काफी नुकसान होगा। विश्लेषकों ने कहा है कि इस चुनाव नतीजे के साथ जापान में ‘एक-दलीय लोकतंत्र’ की फिर पुष्टि हुई है।
चुनाव नतीजों का एलान होने के बाद प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने दावा किया कि उनके नेतृत्व में एलडीपी को अपेक्षा से अधिक सफलता मिली है। ज्यादातर विश्लेषकों की राय है कि जिन हालात में चुनाव हुए उसे देखते हुए किशिदा का दावा ठीक ही है। नतीजों का एलान होने के साथ ही विपक्षी दलों की इस बार बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद टूट गई।
एलडीपी का गठन 1955 में हुआ था। उसके बाद से दो छोटी अवधियों को छोड़ कर वह लगातार सत्ता में रही है। एक बार वह 1993-94 में सत्ता से बाहर हुई थी। फिर वह 2009 से 2012 तक सत्ता से बाहर रही। आखिर जापान में एलडीपी की इतनी मजबूत हैसियत की वजह क्या है? जानकारों के मुताबिक इसका कारण जापान के लोगों का स्वाभाविक रूप से दक्षिणपंथी और कंजरवेटिव रूझान है। उनके मुताबिक इस बार विपक्ष ने वामपंथी नीतियां अपना कर गलती की।
इस बारे में सोफिया यूनिवर्सिटी में जापानी राजनीति के प्रोफेसर कोइची नाकानो ने वेबसाइट एशिया टाइम्स से कहा- ‘एलडीपी इस बार महीनों से खबरों में थी। उसके अपने नेता के चुनाव ने सबका ध्यान खींच रखा था। इस बीच विपक्षी खेमे को ऐसा अवसर नहीं मिला, जिससे लोग उसे गंभीरता से लेते।’ जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि इस बार सबसे आश्चर्यजनक सफलता धुर दक्षिणपंथी पार्टी इशिन नो काई (जापान आविष्कार पार्टी) को मिली। डियेट (संसद) में उसकी सदस्यों की संख्या में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। अब सदन में उसके 41 सदस्य हैं।
विश्लेषकों के मुताबिक ये तमाम रूझान बताते हैं कि जापान की राजनीति और भी ज्यादा दक्षिणपंथ की तरफ झुक गई है। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि देश में चीन की बढ़ रही ताकत को लेकर लोगों में आशंकाएं हैं। इस बार 465 सदस्यीय डियेट में एलडीपी को 261 सीटें मिली हैं। यह पार्टी की अपनी उम्मीदों से भी ज्यादा है।
एलडीपी के अध्यक्ष तोशिआकी एंदो ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा- ‘मुझे लगा था कि इस बार का चुनाव कठिन है। इसलिए मैं खुश हूं। मेरी राय में प्रधानमंत्री किशिदा लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब रहे हैं। इसकी वजह उनका अपने रुख पर स्थिर बने रहना है।’
प्रमुख विपक्षी दल कॉन्स्टिट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (सीडीपी) ने इस बार कम्युनिस्ट पार्टी सहित कई दलों के साथ गठबंधन करने का साहसी फैसला किया था, लेकिन ये दांव नहीं चला। डियेट के पिछले सदन में पार्टी के 109 सदस्य थे। इस बार वह 96 सीटें ही जीत पाई।
जापानी राजनीति पर किताब लिख चुके विशेषज्ञ जेफ किंग्सटन ने एशिया टाइम्स से कहा कि सीडीपी का कम्युनिस्ट पार्टी से गठबंधन करना भारी पड़ गया। उससे एलडीपी को दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले मतदाताओं को यह समझाना आसान हो गया कि विपक्ष को वोट देने का मतलब परोक्ष रूप से कम्युनिस्ट शासन लाने में सहायक बनना होगा। किंग्सटन ने कहा- ‘यह तो सच है कि जापान में अभी भी एक-दलीय लोकतंत्र है।’
विस्तार
जापान में पिछले रविवार को हुए आम चुनाव में एक बार फिर लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) सत्ता में लौट आई। पहले जनमत सर्वेक्षणों में लगाए गए अनुमान को भी उसने गलत साबित कर दिया कि इस चुनाव में उसे काफी नुकसान होगा। विश्लेषकों ने कहा है कि इस चुनाव नतीजे के साथ जापान में ‘एक-दलीय लोकतंत्र’ की फिर पुष्टि हुई है।
चुनाव नतीजों का एलान होने के बाद प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने दावा किया कि उनके नेतृत्व में एलडीपी को अपेक्षा से अधिक सफलता मिली है। ज्यादातर विश्लेषकों की राय है कि जिन हालात में चुनाव हुए उसे देखते हुए किशिदा का दावा ठीक ही है। नतीजों का एलान होने के साथ ही विपक्षी दलों की इस बार बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद टूट गई।
एलडीपी का गठन 1955 में हुआ था। उसके बाद से दो छोटी अवधियों को छोड़ कर वह लगातार सत्ता में रही है। एक बार वह 1993-94 में सत्ता से बाहर हुई थी। फिर वह 2009 से 2012 तक सत्ता से बाहर रही। आखिर जापान में एलडीपी की इतनी मजबूत हैसियत की वजह क्या है? जानकारों के मुताबिक इसका कारण जापान के लोगों का स्वाभाविक रूप से दक्षिणपंथी और कंजरवेटिव रूझान है। उनके मुताबिक इस बार विपक्ष ने वामपंथी नीतियां अपना कर गलती की।
इस बारे में सोफिया यूनिवर्सिटी में जापानी राजनीति के प्रोफेसर कोइची नाकानो ने वेबसाइट एशिया टाइम्स से कहा- ‘एलडीपी इस बार महीनों से खबरों में थी। उसके अपने नेता के चुनाव ने सबका ध्यान खींच रखा था। इस बीच विपक्षी खेमे को ऐसा अवसर नहीं मिला, जिससे लोग उसे गंभीरता से लेते।’ जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि इस बार सबसे आश्चर्यजनक सफलता धुर दक्षिणपंथी पार्टी इशिन नो काई (जापान आविष्कार पार्टी) को मिली। डियेट (संसद) में उसकी सदस्यों की संख्या में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। अब सदन में उसके 41 सदस्य हैं।
विश्लेषकों के मुताबिक ये तमाम रूझान बताते हैं कि जापान की राजनीति और भी ज्यादा दक्षिणपंथ की तरफ झुक गई है। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि देश में चीन की बढ़ रही ताकत को लेकर लोगों में आशंकाएं हैं। इस बार 465 सदस्यीय डियेट में एलडीपी को 261 सीटें मिली हैं। यह पार्टी की अपनी उम्मीदों से भी ज्यादा है।
एलडीपी के अध्यक्ष तोशिआकी एंदो ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा- ‘मुझे लगा था कि इस बार का चुनाव कठिन है। इसलिए मैं खुश हूं। मेरी राय में प्रधानमंत्री किशिदा लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब रहे हैं। इसकी वजह उनका अपने रुख पर स्थिर बने रहना है।’
प्रमुख विपक्षी दल कॉन्स्टिट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (सीडीपी) ने इस बार कम्युनिस्ट पार्टी सहित कई दलों के साथ गठबंधन करने का साहसी फैसला किया था, लेकिन ये दांव नहीं चला। डियेट के पिछले सदन में पार्टी के 109 सदस्य थे। इस बार वह 96 सीटें ही जीत पाई।
जापानी राजनीति पर किताब लिख चुके विशेषज्ञ जेफ किंग्सटन ने एशिया टाइम्स से कहा कि सीडीपी का कम्युनिस्ट पार्टी से गठबंधन करना भारी पड़ गया। उससे एलडीपी को दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले मतदाताओं को यह समझाना आसान हो गया कि विपक्ष को वोट देने का मतलब परोक्ष रूप से कम्युनिस्ट शासन लाने में सहायक बनना होगा। किंग्सटन ने कहा- ‘यह तो सच है कि जापान में अभी भी एक-दलीय लोकतंत्र है।’