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Paris Agreement: पेरिस समझौते का भारत को बड़ा फायदा, भीषण गर्मी के बीच कितनी राहत मिलेगी? स्टडी में खुलासा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: लव गौर
Updated Thu, 16 Oct 2025 10:45 AM IST
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सार
Paris Agreement: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस समझौता एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है। जिसके 10 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस बीच सामने आए एक ताजा अध्ययन के अनुसार पेरिस समझौता भारत को हर साल 30 कम गर्म दिन देखने में मदद कर सकता है।

global warming
- फोटो : freepik
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विस्तार
पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन पर एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसको 10 साल पूरे होने जा रहे हैं। पेरिस समझौते का भारत एक प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता है। ऐसे में एक अध्ययन से पता चला है कि पेरिस समझौता भारत को हर साल 30 कम गर्म दिन देखने में मदद कर सकता है।
हर साल 30 कम गर्म दिन
गुरुवार (16 अक्तूबर) को प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार अगर भारत 2015 के पेरिस समझौते के तहत उत्सर्जन में कटौती के अपने वादों को पूरा करता है और इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को 2.6 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखता है, तो भारत हर साल 30 कम अत्यधिक गर्म दिन देख सकता है, जबकि दुनिया औसतन 57 ऐसे दिनों से बच सकती है।
क्लाइमेट सेंट्रल और वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन द्वारा किए गए विश्लेषण में कहा गया है कि वैश्विक समझौता, जिसके इस साल 10 साल पूरे हो रहे हैं, दुनिया को एक सुरक्षित जलवायु की ओर ले जा रहा है, लेकिन यह भी चेतावनी दी गई है कि कार्रवाई की वर्तमान गति पर्याप्त नहीं है।
नहीं संभले तो होगी बड़ी आफत
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2.6 डिग्री सेल्सियस पर भी, अगर देश जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की दिशा में तेजी से कदम नहीं उठाते, तो आने वाली पीढ़ियों को खतरनाक गर्मी, गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों और बढ़ती असमानता का सामना करना पड़ेगा। अध्ययन में पाया गया कि 4 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर, जो कि पेरिस समझौते से पहले वैज्ञानिकों द्वारा अनुमानित स्तर था, इससे दुनिया को प्रति वर्ष औसतन 114 गर्म दिनों का सामना करना पड़ेगा।
अगर देश अपने मौजूदा वादों को पूरा करते हैं और तापमान वृद्धि को 2.6 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखते हैं, तो यह संख्या सालाना 57 दिन कम हो सकती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, भारत में साल में 30 दिन कम गर्म दिन हो सकते हैं, जबकि केन्या में 82, मैक्सिको में 77, ब्राजील में 69, मिस्र में 36 और अमेरिका 30 और ब्रिटेन में 29 दिन कम हो सकते हैं।
मजबूत और निष्पक्ष नीतियों की आवश्यकता
इंपीरियल कॉलेज लंदन में जलवायु विज्ञान के प्रोफेसर फ्रेडरिक ओटो ने कहा, "पेरिस समझौता एक शक्तिशाली, कानूनी रूप से बाध्यकारी ढांचा है, जो हमें जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभावों से बचने में मदद कर सकता है। हालांकि, देशों को तेल, गैस और कोयले से दूर जाने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है। हमारे पास जीवाश्म ईंधन से दूर जाने के लिए आवश्यक सभी ज्ञान और तकनीक है, लेकिन तेजी से आगे बढ़ने के लिए मजबूत और निष्पक्ष नीतियों की आवश्यकता है।"
उन्होंने आगे कहा, "राजनीतिक नेताओं को पेरिस समझौते के कारणों को और भी गंभीरता से लेना चाहिए। यह हमारे मानवाधिकारों की रक्षा के बारे में है। तापमान में एक डिग्री का भी अंश, चाहे वह 1.4, 1.5 या 1.7 डिग्री सेल्सियस ही क्यों ना हो, लाखों लोगों के लिए सुरक्षा और कष्ट के बीच का अंतर पैदा करेगा।"
200 देशों ने अपनाया पेरिस समझौता
बता दें कि साल 2015 में लगभग 200 देशों द्वारा अपनाए गए पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे रखना और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयास जारी रखना है। तापमान वृद्धि पहले ही 1.3 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुकी है और वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि जारी है। विश्व मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 2023 से 2024 तक कार्बन डाइऑक्साइड की वैश्विक औसत सांद्रता में 3.5 भाग प्रति मिलियन की वृद्धि हुई है, जो 1957 में आधुनिक मापन शुरू होने के बाद से सबसे बड़ी वृद्धि है।
अध्ययन में दक्षिणी यूरोप, पश्चिम अफ्रीका, अमेज़न, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी एवं मध्य अमेरिका में हाल ही में हुई छह गर्मी की घटनाओं का भी अध्ययन किया गया। 4 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर, ऐसी घटनाएं आज की तुलना में 5 से 75 गुना अधिक संभावित होंगी, जबकि 2.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर, इनकी संभावना 3 से 35 गुना अधिक होगी।
तापमान वृद्धि से निपटने के लिए पूरी तैयारी नहीं
क्लाइमेट सेंट्रल में विज्ञान की उपाध्यक्ष क्रिस्टीना डाहल ने कहा, "पेरिस समझौता दुनिया के कई क्षेत्रों को जलवायु परिवर्तन के कुछ सबसे बुरे संभावित परिणामों से बचने में मदद कर रहा है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि हम अभी भी एक खतरनाक रूप से गर्म भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। हाल की गर्म लहरों के प्रभाव दर्शाते हैं कि कई देश 1.3 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं, 2.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि का तो सवाल ही नहीं उठता, जो देशों द्वारा अपने वर्तमान वादों को पूरा करने पर अनुमानित है।"
अध्ययन में बताया गया है कि 2015 से, केवल 0.3 डिग्री सेल्सियस अतिरिक्त तापमान वृद्धि के कारण वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 11 अधिक गर्म दिन आए हैं और भारत और पाकिस्तान में गर्म लहरों की संभावना दो गुना, माली और बुर्किना फासो में नौ गुना और अमेजन में दस गुना बढ़ गई है।
इसमें कहा गया है कि अनुकूलन उपायों में सुधार हुआ है, लगभग आधे देशों में अब पूर्व चेतावनी प्रणालियां हैं और कम से कम 47 देशों के पास ताप कार्रवाई योजनाएं हैं। लेकिन शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के कुछ हिस्सों में कई देशों में अभी भी ऐसी प्रणालियों का अभाव है। शोधकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि लोगों को अत्यधिक गर्मी से बचाने का सबसे प्रभावी तरीका जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारणों, कोयला, तेल और गैस से तेजी से दूरी बनाना है।

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हर साल 30 कम गर्म दिन
गुरुवार (16 अक्तूबर) को प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार अगर भारत 2015 के पेरिस समझौते के तहत उत्सर्जन में कटौती के अपने वादों को पूरा करता है और इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को 2.6 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखता है, तो भारत हर साल 30 कम अत्यधिक गर्म दिन देख सकता है, जबकि दुनिया औसतन 57 ऐसे दिनों से बच सकती है।
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क्लाइमेट सेंट्रल और वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन द्वारा किए गए विश्लेषण में कहा गया है कि वैश्विक समझौता, जिसके इस साल 10 साल पूरे हो रहे हैं, दुनिया को एक सुरक्षित जलवायु की ओर ले जा रहा है, लेकिन यह भी चेतावनी दी गई है कि कार्रवाई की वर्तमान गति पर्याप्त नहीं है।
नहीं संभले तो होगी बड़ी आफत
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2.6 डिग्री सेल्सियस पर भी, अगर देश जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की दिशा में तेजी से कदम नहीं उठाते, तो आने वाली पीढ़ियों को खतरनाक गर्मी, गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों और बढ़ती असमानता का सामना करना पड़ेगा। अध्ययन में पाया गया कि 4 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर, जो कि पेरिस समझौते से पहले वैज्ञानिकों द्वारा अनुमानित स्तर था, इससे दुनिया को प्रति वर्ष औसतन 114 गर्म दिनों का सामना करना पड़ेगा।
अगर देश अपने मौजूदा वादों को पूरा करते हैं और तापमान वृद्धि को 2.6 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखते हैं, तो यह संख्या सालाना 57 दिन कम हो सकती है। शोधकर्ताओं के अनुसार, भारत में साल में 30 दिन कम गर्म दिन हो सकते हैं, जबकि केन्या में 82, मैक्सिको में 77, ब्राजील में 69, मिस्र में 36 और अमेरिका 30 और ब्रिटेन में 29 दिन कम हो सकते हैं।
मजबूत और निष्पक्ष नीतियों की आवश्यकता
इंपीरियल कॉलेज लंदन में जलवायु विज्ञान के प्रोफेसर फ्रेडरिक ओटो ने कहा, "पेरिस समझौता एक शक्तिशाली, कानूनी रूप से बाध्यकारी ढांचा है, जो हमें जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभावों से बचने में मदद कर सकता है। हालांकि, देशों को तेल, गैस और कोयले से दूर जाने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है। हमारे पास जीवाश्म ईंधन से दूर जाने के लिए आवश्यक सभी ज्ञान और तकनीक है, लेकिन तेजी से आगे बढ़ने के लिए मजबूत और निष्पक्ष नीतियों की आवश्यकता है।"
उन्होंने आगे कहा, "राजनीतिक नेताओं को पेरिस समझौते के कारणों को और भी गंभीरता से लेना चाहिए। यह हमारे मानवाधिकारों की रक्षा के बारे में है। तापमान में एक डिग्री का भी अंश, चाहे वह 1.4, 1.5 या 1.7 डिग्री सेल्सियस ही क्यों ना हो, लाखों लोगों के लिए सुरक्षा और कष्ट के बीच का अंतर पैदा करेगा।"
200 देशों ने अपनाया पेरिस समझौता
बता दें कि साल 2015 में लगभग 200 देशों द्वारा अपनाए गए पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे रखना और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयास जारी रखना है। तापमान वृद्धि पहले ही 1.3 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुकी है और वैश्विक उत्सर्जन में वृद्धि जारी है। विश्व मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 2023 से 2024 तक कार्बन डाइऑक्साइड की वैश्विक औसत सांद्रता में 3.5 भाग प्रति मिलियन की वृद्धि हुई है, जो 1957 में आधुनिक मापन शुरू होने के बाद से सबसे बड़ी वृद्धि है।
अध्ययन में दक्षिणी यूरोप, पश्चिम अफ्रीका, अमेज़न, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी एवं मध्य अमेरिका में हाल ही में हुई छह गर्मी की घटनाओं का भी अध्ययन किया गया। 4 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर, ऐसी घटनाएं आज की तुलना में 5 से 75 गुना अधिक संभावित होंगी, जबकि 2.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर, इनकी संभावना 3 से 35 गुना अधिक होगी।
तापमान वृद्धि से निपटने के लिए पूरी तैयारी नहीं
क्लाइमेट सेंट्रल में विज्ञान की उपाध्यक्ष क्रिस्टीना डाहल ने कहा, "पेरिस समझौता दुनिया के कई क्षेत्रों को जलवायु परिवर्तन के कुछ सबसे बुरे संभावित परिणामों से बचने में मदद कर रहा है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि हम अभी भी एक खतरनाक रूप से गर्म भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं। हाल की गर्म लहरों के प्रभाव दर्शाते हैं कि कई देश 1.3 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं, 2.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि का तो सवाल ही नहीं उठता, जो देशों द्वारा अपने वर्तमान वादों को पूरा करने पर अनुमानित है।"
अध्ययन में बताया गया है कि 2015 से, केवल 0.3 डिग्री सेल्सियस अतिरिक्त तापमान वृद्धि के कारण वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 11 अधिक गर्म दिन आए हैं और भारत और पाकिस्तान में गर्म लहरों की संभावना दो गुना, माली और बुर्किना फासो में नौ गुना और अमेजन में दस गुना बढ़ गई है।
इसमें कहा गया है कि अनुकूलन उपायों में सुधार हुआ है, लगभग आधे देशों में अब पूर्व चेतावनी प्रणालियां हैं और कम से कम 47 देशों के पास ताप कार्रवाई योजनाएं हैं। लेकिन शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के कुछ हिस्सों में कई देशों में अभी भी ऐसी प्रणालियों का अभाव है। शोधकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि लोगों को अत्यधिक गर्मी से बचाने का सबसे प्रभावी तरीका जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारणों, कोयला, तेल और गैस से तेजी से दूरी बनाना है।