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कौन है अहमद अल-शरा: US ने कभी बुलाया था अलकायदा का आतंकी, ट्रंप ने सीरिया में उसे बनाया साथी; क्या हैं मायने?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Thu, 15 May 2025 03:04 PM IST
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सार

जिस अहमद अल-शरा से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब में मुलाकात की है, वह आखिर है कौन? उसका इतिहास क्या रहा है? उसके अलकायदा के आतंकी से सीरिया के कार्यकारी राष्ट्रपति बनने तक की कहानी क्या है? कैसे यह पूरा घटनाक्रम अमेरिका बनाम रूस की लड़ाई में तब्दील होता है? आइये जानते हैं...

Syria Interim President Ahmed Al Sharaa once Al Qaeda Terrorist Bashar Al Assad Donald Trump meet
सीरिया के कार्यकारी राष्ट्रपति अहमद अल-शरा के साथ ट्रंप और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस - फोटो : ANI
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विस्तार
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पश्चिम एशिया के दौरे पर हैं। इस दौरे पर उनका पहला पड़ाव सऊदी अरब रहा था, जहां उन्होंने क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की थी। ट्रंप ने अपने इस दौरान सऊदी अरब से 142 अरब डॉलर के सौदे-समझौते होने का दावा किया और अपने दौरे को सफल करार दिया। उनका यह पूरा दौरा व्यापार पर ही केंद्रित दिख रहा था। हालांकि, उनके दौरे पर एक खास दृश्य ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। यह नजारा था ट्रंप के सीरिया के कार्यकारी राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से मिलने का। 
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यह नजारा चौंकाने वाला इसलिए था, क्योंकि यह वही अहमद अल-शरा हैं, जिन्हें एक समय अबु मोहम्मद अल-गोलानी के नाम से जाना जाता था। यह नाम इसलिए याद रखना जरूरी है क्योंकि कभी आतंकी संगठन अलकायदा से जुड़ाव होने की वजह से अमेरिका ने उसे आतंकवादी करार दिया था और उस पर 1 करोड़ डॉलर का इनाम भी रखा था। 
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ऐसे में यह जानना अहम है कि जिस अहमद अल-शरा से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब में मुलाकात की है, वह आखिर है कौन? उसका इतिहास क्या रहा है? उसके अलकायदा के आतंकी से सीरिया के कार्यकारी राष्ट्रपति बनने तक की कहानी क्या है? कैसे यह पूरा घटनाक्रम अमेरिका बनाम रूस की लड़ाई में तब्दील होता है? आइये जानते हैं...

Donald Trump: ट्रंप की सीरियाई राष्ट्रपति से मुलाकात बदल सकती है पश्चिम एशिया की राजनीति, इस्राइल की चेतावनी

पहले जानें- कौन है अहमद अल-शरा उर्फ अबु मोहम्मद अल-गोलानी?
अहमद अल-शरा और डोनाल्ड ट्रंप के मुलाकात के लिए चुना गया देश भी काफी अहमियत रखता है, क्योंकि 1982 में सऊदी अरब में ही उसका जन्म हुआ था। कुछ और स्रोतों ने उसके जन्म के साल को लेकर स्पष्टता नहीं है। हालांकि, सामने आता है कि शरा का परिवार बाद में सीरिया की राजधानी दमिश्क पहुंच गया, जहां माजेह इलाके में उसका बचपन बीता। 

अहमद अल-शरा का मूल सीरिया की गोलान पहाड़ियों से बताया जाता है। इसके चलते ही उसका पुराना नाम अबु मोहम्मद अल-गोलानी आता है। दावा है कि उसके दादा को साल 1967 में गोलान की पहाड़ियों से भागना पड़ा था। इसकी वजह थी इस्राइल की अरब देशों से हुई जंग, जिसके बाद इस्राइल ने सीरिया की गोलान हाइट्स को अपने कब्जे में ले लिया था और यहां रहने वाले हजारों मुस्लिम भागने पर मजबूर हुए थे। 
 

अहमद अल-शरा के आतंकी संगठनों से दूर होने का असर सीरिया में दिखने लगा। इदलिब के क्षेत्र में अल-शरा के नेतृत्व में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद और आईएसआईएस के प्रभाव को नकारते हुए एक अलग सरकार का गठन हुआ। यह सरकार बाकी सीरिया के मुकाबले अलग तरह से शासन के लिए जानी जाती थी, जहां शिक्षा, स्वास्थ्य और निर्माण के कार्य जारी रहे। साथ ही इस पूरे क्षेत्र में शरिया कानून भी लागू रहा। 2024 में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से उखाड़ फेंकने से पहले अहमद अल-शरा इदलिब का ही नेतृत्व कर रहा था। 

सीरिया में शासन स्थापित करने से लेकर ट्रंप से मिलने तक, कैसी रही राह?
दिसंबर 2024 में सीरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति बशर अल-असद का तख्तापलट करने के बाद देश में अल-शरा के नेतृत्व में ही सरकार का गठन हुआ। बताया जाता है कि अल-असद को 20 साल तक सत्ता में रखने वाले रूस के यूक्रेन के साथ युद्ध में जुड़े होने और ईरान के इस्राइल के साथ संघर्ष का अहमद अल-शरा ने फायदा उठाया और एक बार में अपने लड़ाकों के साथ सीरिया में शहर के बाद शहर पर कब्जा कर लिया। आखिरकार उसके गुट ने सीरिया की राजधानी दमिश्क को कब्जे में ले लिया और बशर अल-असद को देश छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा। 

ट्रंप और अल-शरा की चौंकाने वाली मुलाकात: 33 मिनट तक हुई बातचीत; सीरिया पर वर्षों पुराना प्रतिबंध भी हटाया

अहमद अल-शरा ने अपनी सत्ता स्थापित करने के साथ ही सीरिया में अल-असद के कथित क्रूर शासन का अंत करने की बात कही। उसने देश की आर्थिक स्थिति और लोगों के जीवन को आसान बनाने की भी बात कही। इसे लेकर उसे तुर्किये, सऊदी अरब और कतर का साथ भी मिला। देखते ही देखते लड़ाकों की वर्दी में घूमने वाला अल-शरा सूट और टाई में देखा जाने लगा। दुनियाभर के कई नेता इस दौरान उससे मुलाकात करने पहुंचे। 

हालांकि, सीरिया में बशर अल-असद के सत्ता से हटने के बाद उनके समुदाय से आने वाले अलवी मुस्लिमों की मुश्किलें बढ़ गईं। अहमद अल-शरा ने वादा किया था कि उसके नेतृत्व में सीरिया में सभी समुदायों का सम्मान होगा। लेकिन आरोप हैं कि हयात तहरीर-अल शाम के लड़ाकों ने सैकड़ों अल्पसंख्यक अलवी मुस्लिमों को मौत के घाट उतारा है। अलवी मुस्लिमों का वर्ग इस्लाम में शिया समुदाय से ही अलग हुआ है। इन घटनाओं की कई देशों ने निंदा की, लेकिन अमेरिका की तरफ से इन मामलों में शांत प्रतिक्रिया ही आई।

ट्रंप का अल-शरा से मिलना खास क्यों?
सीरिया पर लगे प्रतिबंध उस समय के राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन के दौरान लगाए गए थे, ताकि उनकी सरकार की अर्थव्यवस्था पर दबाव बनाया जा सके। असद को दिसंबर में सत्ता से हटा दिया गया था। बाइडन और ट्रंप दोनों सरकारों ने असद के हटने के बाद भी प्रतिबंध जारी रखे थे, क्योंकि वे अल-शरा की मंशा को परखना चाहते थे। आखिरकार ट्रंप ने 14 मई को अल-शरा से मिलकर इन प्रतिबंधों को हटाने का एलान कर दिया।
 
देखा जाए तो सऊदी अरब में अल-शरा से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात कूटनीतिक और राजनीतिक तौर पर बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है। कारण है कि यह पहली बार है जब अमेरिका के किसी राष्ट्रपति ने एक ऐसे व्यक्ति से बातचीत और मुलाकात की है, जो कभी आतंकवादी संगठनों का हिस्सा रहा हो। हालांकि अभी यह देखना बाकी है कि इस नई सीरियाई सरकार के साथ अमेरिका के रिश्ते किस दिशा में बढ़ते हैं।

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ट्रंप का यह कदम अमेरिका की पश्चिम एशिया में पैठ बढ़ाने के कदम के लिहाज से भी देखा जा सकता है। दरअसल, ट्रंप ने अपने दौरे में अब तक क्षेत्रीय ताकत कहे जाने वाले देशों का दौरा किया है, जो कि इस्लामिक जगत में ईरान के प्रभाव को कम कर अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहते हैं। फिर चाहे सऊदी अरब की बात हो, या कतर की और या फिर तुर्किये की। ऐसे में ट्रंप का इन देशों का दौरा पश्चिम एशियाई क्षेत्र में ईरान को दरकिनार करने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है। 
 
इसी कड़ी में सीरिया एक अहम देश है, जहां लंबे समय तक रूस और ईरान के समर्थन से बशर अल-असद की सरकार बरकरार रही। हालांकि, अल-असद के सत्ता से हटने के बाद अब ट्रंप प्रशासन सीरिया को अमेरिका के प्रभाव में लाने की फिराक में है। अमेरिका के हालिया कदम इसी ओर इशारा करते हैं। 
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