जानें खुशहाली और संपन्नता लाने वाली दिशा, जहां हमेशा बनी रहती है सकारात्मक ऊर्जा
मनुष्य को प्रभावित करती है ऊर्जा
चार दिशाएं-पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण एवं दिशाओं की संधियों में चार कोण (विदिशाएं) - ईशान, आग्नेय, नैऋत्य व वायव्य होते हैं। इन सभी दिशाओं और कोणों पर सत्व, रजस और तमस ऊर्जाओं का प्रभाव अलग-अलग होता है। पृथ्वी का गुण तम, जो वास्तु में नैऋत्य में, अग्नि व वायु तत्वों का गुण रजस है, जो आग्नेय तथा वायव्य में, जल का गुण सात्विक है जो ईशान में वास करता है।
ये तीनों गुण एक दूसरे पर निर्भर हैं, जो निरंतर पृथ्वी और मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। सच तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति इन तीनों प्राकृतिक ऊर्जाओं की मात्रा पर निर्भर करती है। इन मात्राओं के अनुसार ही वह अलग-अलग ढंग से व्यवहार करता है। जब आप खुश, प्रांजल व बौद्धिक होते हैं, तो इसका अर्थ है सत्व ऊर्जा के प्रभाव में हैं। रजस के सान्निध्य में आप सक्रिय, भावुक और अस्थिर होते हैं। इसी प्रकार तमस ऊर्जा हावी होने पर अकर्मण्य, सुस्त, निरुत्साही और निद्रामग्न होते हैं।
सात्विक सत्व ऊर्जा-
सत्व ऊर्जा ऐसी शक्ति है जो स्थिरता, मूल्यवत्ता और सकारात्मकता से जोड़ती है। पूर्व और उत्तर दिशा के बीच का क्षेत्र सत्व ऊर्जा के प्रभाव में होता है, इसलिए शुभ कार्य करते समय हमारा मुख उत्तर या पूर्व कि तरफ होना चाहिए। ऐसा करने से कार्यों में शीघ्र सफलता प्राप्त होती है। प्लॉट, भवन अथवा कमरे का उत्तर-पूर्व यानि ईशान कोण में सत्व ऊर्जा का प्रभाव शत-प्रतिशत रहता है।
ईशान कोण सात्विक होने के कारण सबसे अधिक पूज्यनीय है। अतः इस क्षेत्र को जितना संभव हो सके साफ़-सुथरा और हल्का-फुल्का रखना चाहिए, क्योंकि यहां से प्रांजल और सकारात्मक ऊर्जाएं भवन के अंदर प्रविष्ट होती हैं। यह स्थान सभी पवित्र कार्यों जैसे पूजा-पाठ, ध्यान, अध्ययन आदि के लिए उपयुक्त हैं।
गतिशील बनाती है रजस-
रजस ऊर्जा सत्व और तमस के बीच की शक्ति है, जो सक्रियता, परिवर्तन और गतिशीलता प्रदान करती है। वास्तु में पूर्व से दक्षिण एवं उत्तर से पश्चिम के दो क्षेत्र रजस ऊर्जा से संपन्न होते हैं। लेकिन दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) एवं उत्तर-पश्चिम(वायव्य) कोण में रजस ऊर्जा का शत-प्रतिशत प्रभाव रहता है। ये दोनों क्षेत्र खाना पकाने, खाने और वार्तालाप करने जैसी गतिविधियों के लिए उत्तम माने गए हैं।
आग्नेय दिशा, अग्नि के रजस गुण के कारण रसोई, गीज़र, जनरेटर, हीटर, बिजली के मीटर के लिए उपयुक्त मानी गई है।वायव्य दिशा में वायु का रजस गुण मौजूद है, इसलिए यह दिशा वायु से सम्बंधित कार्यों के लिए अच्छी है। ड्राइंग रूम, गैराज, विवाह योग्य कन्याओं का कमरा यहां होना वास्तु सम्मत माना गया है।
तामसिक होती है तमस-
तमस शक्ति समस्त मूल्यों और आदर्शों का नाश करती है और नकारात्मक ऊर्जाओं से जोड़ती है। भवन का दक्षिण से पश्चिम तक का क्षेत्र तमस ऊर्जा के प्रभाव में रहता है, लेकिन दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) दिशा में यह प्रभाव शत-प्रतिशत रहता है, इसलिए इस कोण को तामसिक क्षेत्र माना गया है।अतः भोजन या शुभ कार्य करते वक्त दक्षिण एवं पश्चिम में मुख करके नहीं बैठना चाहिए।
वास्तु में कुछ ऐसे सुझाव दिए गए है, जिनकी मदद से निर्माण से पूर्व या बाद में नैऋत्य कोण की नकारात्मक ऊर्जाओं को प्रभावहीन या सकारात्मक बनाया जा सकता है। तामसिक ऊर्जाएं ठोस व भारी-भरकम होती हैं, अतः यहां बने कमरे में वज़नदार सामान, भारी अलमारी व फर्नीचर आदि रखना शुभ रहता है।

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