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Tyre Industry: भारत की टायर इंडस्ट्री 2047 तक पहुंचेगी 13 लाख करोड़ रुपये के राजस्व तक, ATMA–PwC की रिपोर्ट

ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अमर शर्मा Updated Thu, 18 Sep 2025 03:10 PM IST
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सार

ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन और प्राइसवाटरहाउस कूपर की नई रिपोर्ट के अनुमानों पर भरोसा किया जाए, तो आने वाले वर्षों में टायर भारत की गतिशीलता और विनिर्माण की कहानी के गुमनाम नायक बन सकते हैं। 

Tyre Industry in India Projected to Reach Rs 13 Lakh Crore by 2047 Says ATMA–PwC Report
Tyre Industry - फोटो : AI
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विस्तार
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भारत का टायर उद्योग आमतौर पर खबरों में सिर्फ दाम बढ़ने या कच्चे माल की कमी की वजह से आती है। लेकिन ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ATMA) और प्राइसवाटरहाउस कूपर (PwC) की नई रिपोर्ट के अनुमानों पर भरोसा किया जाए, तो आने वाले वर्षों में टायर भारत की गतिशीलता और विनिर्माण की कहानी के गुमनाम नायक बन सकते हैं।
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2047 तक चार गुना उत्पादन, बारह गुना राजस्व
रिपोर्ट का अनुमान है कि जब भारत 2047 में "विकसित भारत" का लक्ष्य हासिल करने की ओर बढ़ेगा, तब तक टायर उत्पादन लगभग चार गुना बढ़ जाएगा। वहीं, इंडस्ट्री का राजस्व 12 गुना बढ़कर करीब 13 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। 

बड़े पैमाने पर घरेलू-केंद्रित क्षेत्र से वैश्विक खिलाड़ी बनने की यात्रा टायरों के बारे में हमारी सोच को फिर से परिभाषित कर सकती है। यानी टायर अब सिर्फ गाड़ियों के पहियों पर चढ़े रबर के गोले नहीं रहेंगे, बल्कि उच्च तकनीक, टिकाऊ, निर्यात-तैयार उत्पाद बनेंगे।

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मांग कहां से आएगी
देश का घरेलू बाजार इस विकास की रीढ़ रहेगा। जैसे-जैसे लोगों की आय बढ़ेगी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च होगा, ऑटो कंपनियों (OEM) से टायर की मांग तेजी से बढ़ेगी। यात्री कार और दोपहिया वाहन इस मांग का बड़ा हिस्सा रहेंगे। जबकि माल ढुलाई और खपत से जुड़े, ट्रक और वाणिज्यिक वाहन (कमर्शियल व्हीकल) भी मजबूती देंगे। इसके अलावा, लोगों और वस्तुओं की आवाजाही बढ़ने से रिप्लेसमेंट टायर की मांग भी तेजी से बढ़ेगी, जो राजस्व का एक शांत लेकिन स्थिर स्रोत है।

निर्यात इस कहानी का गेमचेंजर साबित हो सकता है। रिपोर्ट बताती है कि भारत मुक्त व्यापार समझौते (फ्री ट्रेड डील) और किफायती उत्पादन के जरिए अमेरिका और यूरोप जैसे बड़े बाजारों में अपनी पकड़ बना सकता है। यानी भारत टायर सप्लायर से टायर ब्रांड एंबेसडर तक का सफर तय कर सकता है।

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रबर से टेक्नोलॉजी तक का सफर
राजस्व की बड़ी छलांग सिर्फ ज्यादा टायर बेचने से नहीं, बल्कि प्रीमियम प्रोडक्ट्स की वजह से भी होगी। अब टायर "डम्ब रबर" नहीं रहेंगे। नई मटीरियल टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक्स इंटीग्रेशन (जैसे TPMS - टायर प्रेशर मॉनिटरिंग सिस्टम) और प्रोफेशनल फ्लीट सर्विसेज इन्हें टेक प्रोडक्ट में बदल रहे हैं।

फ्लीट ऑपरेटर्स के लिए अब टायर सिर्फ इस्तेमाल की चीज नहीं, बल्कि सर्विस, मैनेजमेंट और हेल्थ-ट्रैकिंग का पैकेज बनेंगे। यानी टायर इंडस्ट्री भी उसी डिजिटल और सर्विस-ड्रिवन रास्ते पर चल रही है, जिस पर पूरी ऑटो इंडस्ट्री पहले से है।

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सस्टेनेबिलिटी की बड़ी चुनौती
टायर इंडस्ट्री अब पर्यावरणीय जिम्मेदारी से भी बंध चुकी है। प्राकृतिक रबर के विकल्प ढूंढना, वैल्यू चेन में कार्बन उत्सर्जन कम करना और नई मैन्युफैक्चरिंग तकनीक अपनाना अब जरूरी हो गया है। PwC ने "CHARGE" फ्रेमवर्क के जरिए इंडस्ट्री को इनोवेशन और साझेदारी पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी है।

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क्या भारत पकड़ बनाए रख पाएगा
ATMA के अरुण मम्मेन के मुताबिक, यह इंडस्ट्री के लिए एक पीढ़ी में मिलने वाला बड़ा मौका है। उनका मानना है कि भारत के ऑटो सेक्टर को मजबूत बनाने में टायर अहम रोल निभाएंगे। PwC भी मानता है कि ब्रांड बिल्डिंग और टेक्नोलॉजी से ही भारत ग्लोबल मार्केट में टिक पाएगा।

हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं हैं। प्राकृतिक रबर की कमी, नीतिगत अनिश्चितताएं, और दूसरे देशों की व्यापारिक रुकावटें ग्रोथ को धीमा कर सकती हैं। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक वाहन और भविष्य की उड़ने वाली गाड़ियों (VTOL) जैसी नई टेक्नोलॉजी भी इंडस्ट्री के लिए नई कसौटी साबित होंगी। 

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