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Modi-Putin Car: न मर्सिडीज, न रेंज रोवर, आखिर फॉर्च्यूनर ही क्यों बनी मोदी-पुतिन की सवारी? जानें असल वजहें

ऑटो डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अमर शर्मा Updated Fri, 05 Dec 2025 10:20 PM IST
सार

विशेषज्ञों और जियोपॉलिटिकल कमेंटेटर्स का मानना है कि, किसी यूरोपियन ब्रांड के बजाय, जापानी वाहन निर्माता टोयोटा की बनाई फॉर्च्यूनर को जानबूझकर चुना गया ताकि पश्चिम को संदेश दिया जा सके।

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Why PM Modi Chose a Toyota Fortuner Over His Range Rover for the Drive With Putin
टॉयोटा फॉर्च्यूनर कार में सवारी करते पीएम मोदी और पुतिन - फोटो : ANI
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विस्तार
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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चार साल बाद भारत आए, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया। गर्मजोशी से गले लगाने के बाद जो दृश्य सबसे अधिक चर्चा में रहा, वह था दोनों नेताओं का पीएम के आधिकारिक रेंज रोवर के बजाय एक सफेद टॉयोटा फॉर्च्यूनर में बैठकर प्रधानमंत्री आवास तक जाना। इस बदलाव ने लोगों में उत्सुकता और विशेषज्ञों के बीच कई तरह के विश्लेषणों को जन्म दिया।
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यूरोपीय कार नहीं, एशियाई ब्रांड- एक संदेश
सरकार की ओर से कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं आया है, लेकिन भू-राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला साधारण नहीं था। कई विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे समय में जब रूस और भारत पर पश्चिमी देशों की यूक्रेन युद्ध को लेकर लगातार नजर है, एक यूरोपीय कार में पुतिन को ले जाना "गलत संकेत" होता।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, डिफेंस एनालिस्ट कर्नल रोहित देव के मुताबिक, यह "पश्चिम को दिया गया एक सूक्ष्म संदेश" था। 

रेंज रोवर (यूके) और मर्सिडीज-मेयबैक (जर्मनी) जैसे ब्रांड ऐसे देशों से आते हैं जो रूस पर प्रतिबंधों और यूक्रेन के समर्थन में आगे रहे हैं। वहीं, जापानी वाहन का चयन इन विवादों से दूर रहता है।

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मेक इन इंडिया और राष्ट्रीय संदेश
एक और संभावित कारण है- स्वदेशी निर्माण। भारत में निर्मित कई फॉर्च्यूनर मॉडल सरकार की मेक इन इंडिया नीति से मेल खाते हैं। जिस फॉर्च्यूनर का उपयोग हुआ, वह महाराष्ट्र नंबर प्लेट वाली सिग्मा 4 थी, जिसे देखकर विशेषज्ञों ने इसे "संदेश आधारित चयन" बताया।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी रूसी रक्षा मंत्री एंड्रे बेलोउसोव के साथ यात्रा के दौरान सफेद फॉर्च्यूनर का ही उपयोग किया। इससे यह अनुमान और मजबूत हुआ कि यह केवल कार नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति थी।

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सबसे व्यावहारिक वजह- तीन पंक्तियों वाली सीटिंग
हालांकि एक प्रशासनिक कारण भी चर्चा में है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, फॉर्च्यूनर को चुनने की असली वजह उसकी सीटिंग क्षमता थी। इसमें तीसरी पंक्ति होती है, जहां इंटरप्रेटर्स पहले से बैठ सकते थे और सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित नहीं होती।

एक अधिकारी ने बताया, "रेंज रोवर में तीसरी रो नहीं होती। दो नेताओं और दो इंटरप्रेटर्स को साथ बैठाने के लिए फॉर्च्यूनर ही सबसे उपयुक्त थी।"

काफिला आगे बढ़ते समय दिलचस्प दृश्य यह था कि फॉर्च्यूनर आगे चल रही थी, जबकि पुतिन की Aurus Senat (ऑरस सेनेट) और मोदी की रेंज रोवर उसके पीछे।

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कूटनीति की सवारी- संदेश जो शब्दों से भी ज्यादा प्रभावी
भले ही सरकार ने कारणों पर चुप्पी साधी हो, लेकिन जिस तरह फॉर्च्यूनर इस मुलाकात का केंद्र बन गई, उससे यह स्पष्ट है कि आधुनिक कूटनीति में पहियों पर चलने वाले प्रतीक भी बड़ा संदेश दे जाते हैं।

बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने भी सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, "स्मार्ट लोग समझ जाएंगे।"

हो सकता है असली वजह कभी आधिकारिक रूप से सामने न आए, लेकिन इतना तय है कि इस छोटी-सी कार बदलने की घटना ने दुनिया को एक बड़ा संकेत जरूर दिया। 



 
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