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सऊदी कंपनी अरामको पर हमले से ऐसे प्रभावित होगा तेल बाजार, कीमतों में भी हो सकता है बदलाव

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला Published by: ‌डिंपल अलवधी Updated Sun, 15 Sep 2019 04:45 PM IST
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oil price may change due to drone attack on biggest oil producer Aramco
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सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको के दो बड़े ठिकानों - अबकीक और खुरैस - पर शनिवार को ड्रोन हमले हुए थे जिसके कारण अस्थाई तौर पर इन दोनों जगहों पर तेल उत्पादन प्रभावित हुआ है।

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सऊदी अरब के उर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अजीज बिन सलमान ने कहा है कि हमले की वजह से अरामको का कुल उत्पादन आधा हो गया है।

उनका कहना है कि इस हमले से रोजाना 57 लाख बैरल कच्चे तेल के उत्पादन पर असर पड़ रहा है। अगस्त में जारी किए ओपेक के आंकड़ों के अनुसार सऊदी अरब रोजाना 98 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करता है।
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माना जा रहा है कि अरामको पर हमले का असर दुनिया भर में तेल की कीमतों पर पड़ सकता है।

ऑयलप्राइस में छपी एक खबर के अनुसार, "अरामको का कहना है कि वो जल्द ही हमले के असर से उबर जाएगा लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया के बाजार में हर महीने 150 मिलियन बैरल तेल की कमी होगी और इससे अंतररष्ट्रीय स्तर पर तेल कीमतें बढ़ सकती हैं।"

रिपर्ट के अनुसार दुनिया भर में रोजाना होने वाली तेल सप्लाई का पांचवा हिस्सा इससे प्रभावित होगा।

सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी अरामको दुनिया की सबसे अहम तेल कंपनियों में से एक है और कच्चे तेल की सबसे बड़ी निर्यातक है।

ब्लूमबर्ग के अनुसार 2018 में कंपनी ने 111 अरब डॉलर का लाभ कमाया था। ये एपल और गूगल की कंपनी एल्फाबेट के कुल सालाना लाभ से भी अधिक है।

फोर्ब्स के अनुसार, 2018 के आंकड़ों की मानें तो ये दुनिया की सबसे अधिक फायदा कमाने वाली कंपनी है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2017 में आयकर के रूप में इस कंपनी ने लगभग 100 अरब डॉलर चुकाए थे।

बीबीसी बिजनेस संवाददता कैटी प्रैसकॉट बताती हैं कि दुनिया की जरूरत का एक फीसदी तैल खुरैस से आता है जबकि अबकीक में कच्चे तेल की रिफाइनरी है जिसकी क्षमता दुनिया की जरूरत का सात फीसदी तेल प्रोसेस करने की है।

वो कहती हैं, "अंतरराष्ट्रीय बाजार में आने वाला 10 फीसदी कच्चा तेल सऊदी अरब से आता है और उत्पादन कम हुआ तो बाजारों में तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं।"

तेल की कीमतों पर नजर रखने वाली कंपनी मॉर्निंगस्टार के निदेशक सैंडी फील्डन कहते हैं, "हो सकता है कि सोमवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार खुलने तक तेल की कीमतों में तीस फासदी तक का इजाफा हो जाए।"

वो कहते हैं, "इसका असर तुंरत आपकी जेब पर नहीं पड़ेगा। सप्ताह भर बाद तक इसका असर लोगों पर दिख सकता है।"

कंपनी के आईपीओ पर पड़ सकता है असर

20 खरब डॉलर के मूल्य की ये कंपनी 2020-21 तक आईपीओ के जरिए पहले सऊदी शेयर मार्केट में अपने शेयर लाने वाली थी और इसके लिए बैंकों से बातचीत जारी थी, इसके बाद अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी कंपनी के शेयर लाने की योजना थी।

सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने 2016 में कहा था कि वो कंपनी का पांच फीसदी हिस्सा शेयर बाजार में लाना चाहते हैं। उम्मीद थी कि इससे कंपनी को कम से कम 100 अरब डॉलर मिलेंगे।

कैटी प्रैसकॉट कहती हैं, "इस हमले ने एक तरह अरामको की कमजोरियों को सामने ला दिया है और वो भी एक ऐसे वक्त में जब कंपनी शेयर बाजार में आने वाली है और चाहती है कि उसे सकारात्मक प्रतिक्रिया मिले।"

"साथ ही इस हमले से ये चिंता भी बढ़ गई हैं कि मध्यपूर्व के इलाके में तनाव बना रहा तो इसका असर कच्चे तेल पर पड़ेगा।"

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार शनवार, 15 सितंबर को मध्यपूर्व से जुड़े सभी शेयर बाज़ार निचले स्तर पर खुले। दुबई का शेयर बाजार 0.5 फीसदी, अबु धाबी का शेयर बाजार 0.1 फीसदी और कुवैत का शेयर बाजार 0.4 फीसदी नीचे खुला है।

रॉयटर्स के अनुसार राइस युनवर्सिटी के बेकर इंस्टीट्यूट में मध्यपूर्व मामलों के जानकार जेम्स क्रेन कहते हैं, "ये सऊदी अरब और ईरान के बीच के प्रॉक्सी वॉर को और बढ़ा सकता है। अमरीका भी इसमें खिंचता नजर आ सकता है।"

क्या यमन है इसके लिए जिम्मेदार?

यमन में ईरान से जुड़े हूती ग्रुप के एक प्रवक्ता ने कहा है कि हमले के लिए 10 ड्रोन भेजे गए थे।

सैन्य प्रवक्ता याह्या सारए ने अल-मसिरह टीवी से कहा कि सऊदी पर भविष्य में ऐसे हमले और हो सकते हैं।

याह्या ने कहा, "यह हमला बड़े हमलों में से एक है जिसे हूती बलों ने सऊदी अरब के भीतर अंजाम दिया। इस हमले में सऊदी शासन के भीतर के प्रतिष्ठित लोगों की मदद मिली है।"

अमरीका ने हूती विद्रोहियों के इस दावे को खारिज करते हुए कहा है कि ये हमला ईरान ने किया है। लेकिन ईरान ने इसे 'बेतुका आरोप' बताया है।

वॉशिंगटन के मिडल ईस्ट इंस्टीट्यूट की शमा अल-हमदानी का कहना है कि ये हमले जटिल हैं और हो सकता है कि यमन से न हुए हों।

वो कहती हैं, "अमरीका में कई सूत्रों का मानना कहना है कि ये संभव हो सकता है कि ये हमले यमन से न करवाए गए हों। ये हमले जटिल हैं। ड्रोन से सटीक ठिकानों को निशाना बनाया है। साथ ही ये रणनीतिक तौर पर अहम हमले हैं क्योंकि सऊदी अरामको पहली बार अपने शेयर (आईपीओ) मार्केट में उतरने वाली थी।"

"हमें इस मामले में जांच के नतीजों का इंतजार करना होगा ताकि पता चले कि किस तरह के हथियारों का इस्तेमाल किया गया है।"

शमा अल-हमदानी कहती हैं कि "खुद हूती विद्रोहियों के प्रवक्ता का कहना है कि इसके लिए उन्हें सऊदी अरब में भीतर से मदद मिली थी, जिससे पता चलता है कि हमें फिलहाल स्पष्ट तस्वीर नहीं मिल पा रही।"

"हो सकता है कि यमन से हमला हुआ हो लेकिन अगर ऐसा हुआ है तो ये सऊदी के लिए बुरी खबर है क्योंकि वो यमन में हो रही घटनाओं पर नजर रख रहा है और इसके बावजूद वो अपने हवाई क्षेत्र में आने वाले ड्रोन को पहले रोक नहीं सका।"

यमन में जारी गृह युद्ध में सऊदी अरब गठबंधन सेना का अगुवा है जो यमन सरकार का समर्थन करती है। वहीं ईरान पर यमन सरकार के खिलाफ लड़ रहे सशस्त्र हूती विद्रोहियों के समर्थन के आरोप लगते हैं।

शमा अल-हमदानी कहती हैं अगर ये साबित हो जाता है कि इसके पीछ ईरान का हाथ था तो इसका लाभ ईरान उठा सकता है और मामले को आगे बढ़ाते हुए अंतरराष्ट्रीय बाजार पर असर डाल सकता है।

वो कहती हैं, "लेकिन दूसरी तरफ इसका फायदा उठाते हुए ईरान ये भी कह सकता है कि वो सऊदी और ईरान के बीच जारी तनाव को कम करना चाहता है और ये नहीं चाहता कि दुनिया पर इसका बुरा असर पड़े। और इस तरह यमन में जारी गृह युद्ध में वो सऊदी को बातचीत के लिए राजी कर सकता है और हो सकता है कि सऊदी अरब, हूती विद्रोहियों के साथ किसी तरह की सहमति तक पहुंचे।"

अमरीका ने ठहराया ईरान को जिम्मेदार

अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने शनिवार को सऊदी अरब के दो तेल ठिकानों पर हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया है।

उन्होंने ट्वीट किया, "एक तरफ हसन रूहानी और जावेद जरीफ (ईरान के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री) कूटनीति की बात कर रह हैं, और दूसरी तरफ सऊदी अरब पर होने वाले क़रीब 100 हमलों के लिए ईरान जिम्मेदार है। ईरान ने अब दुनिया की तेल आपूर्ति पर हमला शुरु कर दिया है। इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि हमला यमन की जमीन से हुआ था।"

वॉशिंगटन में मौजूद बीबीसी संवाददाता डेविड विल्स बताते हैं कि व्हाइट हाउस ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से बात की है और उसकी तेल कंपनियों की रक्षा में मदद की पेशकश की है।

हाल में अमरीका ईरान के साथ हुए परमाणु करार से पीछे हट गया था और ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके बाद ईरान के तेल निर्यात पर असर पड़ा है।

अब तक सऊदी अरब के अधिकारियों ने हमले में हुई क्षति के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बताया है। लेकिन सऊदी प्रिंस ने राष्ट्रपति ट्रंप से फोन पर कहा है कि उनका देश चरमपंथ से मुकाबले के लिए तैयार है।

सऊदी अरब और ईरान के बीच तनाव

मध्यपूर्व में सऊदी अरब और ईरान के बीच सालों से प्रभुत्व को लेकर तनाव जारी है। ये दोनों ताकतवर देश इस इलाके में अपना प्रभुत्व चाहते हैं।

एक तरफ जहां ईरान में शिया मुसलमान अधिक हैं, सऊदी अरब में सुन्नी मुसलमाानों की संख्या अधिक है और सालों से इस्लाम के इन दो पंथों को मानने वालों के बीच तनाव है।

सऊदी अरब दुनिया के सबसे बड़े तेल संसाधनों का भी मालिक है। उसे इसका भी डर है कि ईरान का प्रभुत्व बढ़ा तो शियाओं का प्रभाव बढ़ेगा और इस इलाके में ईरान का सैन्य प्रभुत्व रोकने की सऊदी पूरी कोशिश कर रहा है।

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