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Oil Trade: रूस से तेल खरीद पर यूरोपीय संघ का प्रतिबंध, भारत के 15 अरब डॉलर के निर्यात पर मंडरा रहा खतरा

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला Published by: शुभम कुमार Updated Sun, 20 Jul 2025 07:49 PM IST
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सार

यूरोपीय संघ ने रूस के कच्चे तेल से बने परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर नई पाबंदी लगाई है, जिससे भारत, तुर्की और यूएई जैसे देशों को बड़ा झटका लग सकता है। इस फैसले से भारत के पेट्रोलियम उत्पादों का यूरोपीय बाजार में निर्यात लगभग 5 अरब डॉलर तक घटने का खतरा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम भारत की ऊर्जा व्यापार नीति और आर्थिक रणनीति पर भी असर डाल सकता है।

European Union curbs on Russian oil could impact India'€™s USD15 billion fuel exports News In Hindi
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : FreePik
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विस्तार
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यूरोपीय संघ (ईयू) ने रूस को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। इसके तहत ईयू ने रूस से परोक्ष रूप से आने वाले तेल पर नई पाबंदिया लगाई हैं। ऐसे में अब इसका असर भारत पर भी देखने को मिल सकता है। रिपोर्ट की माने तो यूरोपीय संघ के इस कदम से भारत के पेट्रोलियम उत्पादों के 15 अरब डॉलर के निर्यात पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। यह जानकारी आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने दी है।

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बता दें कि ईयू के 27 देशों ने अपने 18वें प्रतिबंध पैकेज के तहत यह फैसला लिया है, जिसमें रूस के ऊर्जा क्षेत्र की आय को कम करने के लिए कड़े कदम उठाए गए हैं। अब यूरोपीय संघ किसी भी तीसरे देश से ऐसे पेट्रोलियम उत्पादों का आयात नहीं करेगा, जो रूसी कच्चे तेल से बने हों। इससे भारत, तुर्की और यूएई जैसे देश प्रभावित होंगे, जो रूस से तेल खरीदकर रिफाइन कर यूरोप को डीजल, पेट्रोल और जेट ईंधन बेचते हैं।
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भारत पर कितना होगा असर?
यूरोपीय संघ के इस कदम से भारत पर पड़ने वाले असर की बात करें तो जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने बताया कि भारत के लगभग 5 अरब डॉलर मूल्य के पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात पर सीधा असर पड़ेगा। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने यूरोपीय संघ को 19.2 अरब डॉलर का पेट्रोलियम निर्यात किया था, जो 2024-25 में 27.1% गिरकर 15 अरब डॉलर रह गया।


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जीटीआरआई के अनुसार, भारत ने एफवाई2025 में रूस से 50.3 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात किया, जो कुल तेल आयात (143.1 अरब डॉलर) का एक तिहाई है। श्रीवास्तव ने कहा कि भारत रूस के साथ वैध व्यापार कर रहा है, लेकिन पश्चिमी देशों में इसका राजनीतिक असर बढ़ रहा है। आने वाले समय में भारत को आर्थिक हित और भू-राजनीतिक दबाव के बीच संतुलन बनाना होगा। 

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