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Air India: 'एअर इंडिया हादसे की हो पारदर्शी जांच', विमान के कैप्टन के पिता की सुप्रीम कोर्ट से गुहार

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कुमार विवेक Updated Thu, 16 Oct 2025 02:53 PM IST
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सार

Air India:जून में हादसे का शिकार हुए एअर इंडिया विमान के पायलट इन कमांड दिवंगत कैप्टन समित सभरवाल के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर हादसे की निष्पक्ष, पारदर्शी और तकनीकी रुप से सुदृढ जांच की मांग की है। उन्होंने अपनी अपील में क्या कहा है, आइए विस्तार से जानते हैं।

Father of late Captain Sumeet Sabharwal has approached the Supreme Court seeking fair probe
एअर इंडिया - फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
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जून में हादसे का शिकार हुए एअर इंडिया विमान के पायलट इन कमांड दिवंगत कैप्टन समित सभरवाल के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर हादसे की निष्पक्ष, पारदर्शी और तकनीकी रुप से सुदृढ जांच की मांग की है। दिवंगत कैप्टन सुमीत सभरवाल जून में अहमदाबाद में हुई एयर इंडिया की दुर्घटना में पायलट-इन-कमांड थे। हादसे में 260 लोग मारे गए थे। उनके पिता ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और मांग की है कि एयर इंडिया बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान की दुर्घटना की सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में निष्पक्ष, पारदर्शी और तकनीकी रूप से सुदृढ़ जांच करवाई जाए।

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अहमदाबाद में एआई-171 विमान दुर्घटना में 260 लोगों की मौत के चार महीने बाद दिवंगत कैप्टन सुमित सभरवाल के पिता ने दुर्घटना की न्यायिक निगरानी में जांच की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
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88 वर्षीय पुष्करराज सभरवाल इस मामले में पहला याचिकाकर्ता है। वहीं,   फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स इस मामले में दूसरा याचिकाकर्ता है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि दुर्घटना की प्रारंभिक जांच "बेहद दोषपूर्ण" है। उनका कहना है कि जांच दल मुख्य रूप से पायलटों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो अब अपना बचाव करने में असमर्थ हैं। यह बात विमान दुर्घटना जांच बोर्ड की प्रारंभिक रिपोर्ट के बाद सामने आई है, जिसमें कहा गया था कि मानवीय भूल के कारण यह त्रासदी हुई।

याचिका में कहा गया है, "जांच के मौजूदा तरीके के कारण इस त्रासदी के लिए ज़िम्मेदार अन्य अधिक विश्वसनीय तकनीकी और प्रक्रियात्मक कारकों की पर्याप्त जांच या उन्हें खारिज करने में विफलता हुई है।" याचिका में आगे कहा गया है, "याचिकाकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि चुनिंदा खुलासों के जरिए तथ्यात्मक गलत जानकारी, ख़ासकर उन चालक दल के सदस्यों के खिलाफा जो अपना बचाव नहीं कर सकते, मूल कारण की खोज में बाधा डालती है और भविष्य में उड़ान सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करती है- इसलिए एक निष्पक्ष न्यायिक दृष्टिकोण की जरूरत है।"

याचिका में पांच सदस्यीय जांच दल की संरचना पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि यह प्राकृतिक न्याय के उस मूल सिद्धांत का उल्लंघन करता है जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को अपने मामले में स्वयं न्यायाधीश नहीं बनना चाहिए। "इस दल में डीजीसीए और राज्य विमानन प्राधिकरणों के अधिकारियों का वर्चस्व है, जिनकी प्रक्रियाएं, निगरानी और संभावित चूक सीधे तौर पर जांच से जुड़ी हैं। इसके अलावा, ये अधिकारी एएआईबी के महानिदेशक के नियंत्रण में हैं, जिससे ऐसी स्थिति पैदा हो रही है कि नागरिक उड्डयन के नियमन और निगरानी के लिए ज़िम्मेदार संस्थाएँ ही प्रभावी रूप से स्वयं जांच कर रही हैं।"

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